Wednesday, November 5, 2025


दो दिल मिले

सजी नयी दुनिया

प्रेम पथ में।

                            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, November 4, 2025


इतिहास हम बदल नहीं सकते,

लेकिन आज औ' कल तो हाथ में है ।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, November 3, 2025


लौंग

डॉ. मंजूश्री गर्ग

लौंग एक कलिका है। लौंग का वानस्पतिक नाम Syzygium aromaticum है। अंग्रेजी में इसे clove कहते हैं जो लैटिन भाषा के क्लैवस(clavus) से आया है। लौंग एक प्रकार का गरम मसाला है जो भारतीय पकवानों व औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। पूजा में भी लौंग का प्रयोग किया जाता है। नवरात्रों में दुर्गाजी की पूजा में ज्योत में लौंग जोड़ा चढ़ाने का विधान है।

चीन में लौंग का प्रयोग ईसा से तीन शताब्दी पूर्व से होता आ रहा है लेकिन यूरोप में इसका प्रयोग सोलहवीं शताब्दी में पुर्तगाल में मलैका द्रीप खोज के बाद शुरू हुआ। प्रायः सभी उष्ण कटिबंध देशों में लौंग का उत्पादन होता है- भारत, जमैका, ब्राजील, सुमात्रा, पोबा, वेस्ट इंडीज, आदि।

लौंग के बीज से पौधे धीरे-धीरे पनपते हैं, इसलिये नर्सरी से चार फुट ऊँचे पौधे लाकर लगाना अच्छा रहता है। बर्षा के मौसम में 20 फुट से 30 फुट की दूरी पर यह पौध लगानी चाहिये। पहले वर्ष तेज हवा व धूप से पौधों को बचाना चाहिये। लौंग के पेड़ पर छठे वर्ष फूल लगने आरंभ हो जाते हैं और 12 से 25 वर्ष तक अधिक उपज होती है पर 150 वर्ष तक थोड़ा-बहुत लौंग मिलता रहता।

लौंग के फूल गुच्छों सें सुर्ख लाल खिलते हैं, लेकिन फूल खिलने से पहले ही कलियाँ तोड़ ली जाती हैं। ताजी कलियों का रंग ललाई लिये हुये या हरा होता है। अच्छे मौसम में इन्हें धूप में सुखा लेते हैं और बदली होने पर आग पर सुखाते हैं। सुखाने के बाद लगभग 40% लौंग ही बचती हैं।

 

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Sunday, November 2, 2025

 

'दूध' प्रेम का प्रतीक है जिस प्रकार दूध में जरा सी भी खटास आ जाये तो वह दूध दूध नहीं रहता, उसी प्रकार आपसी रिश्तों में जरा सी भी खटास आ जाये तो प्रेम प्रेम नहीं रहता।

                                                        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Saturday, November 1, 2025


मन तो बाबरा पंछी है।

जिस डाल से उड़ाओ, उसी पे आ बैठता है।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग


       

Friday, October 31, 2025


चंद श्रीहीन

सूरज सुषमामय

प्रातः बेला में।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Thursday, October 30, 2025


जब भी छेड़ा, खिलखिलाया हरसिंगार।

चाँदनी  सी  बिछी तरू  तले।। 

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, October 29, 2025


दूर से सही

पैगाम तो भेजिये

बँधेगी आस।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, October 28, 2025

 

कालिदास! सच-सच बतलाना

इन्दुमती के मृत्यु शोक से

अज रोया या तुम रोये थे?

कालिदास! सच-सच बतलाना

X             X             X             X

पर पीड़ा से पूर-पूर हो

थक-थक कर और चूर-चूर हो

अमल-धवल गिरि के शिखरों पर

प्रियवर! तुम कब तक सोये थे?

रोया यक्ष कि तुम रोये थे?

कालिदास! सच-सच बतलाना

 

                                                नागार्जुन


Monday, October 27, 2025


पग-धूली से

माँग सजूँ अपनी

चाह में तेरी.


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, October 26, 2025


तुम मुस्कुराये

हजार दीप जले

मन-आँगन.


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, October 25, 2025


 

मन उजाला

जैसे खिली कपास

देख तुझको.


        डॉ. मंजूूश्री गर्ग 

Friday, October 24, 2025


आँखों ही आँखों कटी हरसिंगार की रात।

और महावर रच रई फूलों वाली बात।।


            पूर्णिमा वर्मन 

Thursday, October 23, 2025


तुम मुस्काओ

मुरझाये फूल भी

खिल उठेंगे.

         डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, October 22, 2025

 


ये किसने!

 

ये किसने!

सिलेटी रंग की स्लेट पर

सुनहरे आखर लिख डाले।

जगमगाने  लगे   तारे,

महकने लगी  रात-रानी,

मुस्कुराने   लगी  रात।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Tuesday, October 21, 2025


मन में बजी

रूनझुन पायल

तुम आईं क्या?


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, October 20, 2025


 

प्यार की छुअन जब-जब मिली,

 

स्नेहिल स्पर्श पा श्री राम का,

जड़ अहिल्या बनी फिर नारी।

 

अधरों की छुअन पा श्री कृष्ण की,

जड़ बाँसुरी बजी सप्तम स्वर में।

 

प्यार की छुअन जब-जब मिली,

नाच उठा मन-मयूर वन में।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, October 19, 2025


20 अक्टूबर 2025, दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनायें

                             एक दीप

 

एक दीप

मन्दिर में

श्रद्धा का।

 

एक दीप

तुलसी पे

विश्वास का।

 

एक दीप

आँगन में

प्रेम का।

 

एक दीप

ज्ञान का

दिल में

जलाये रखना।

    डॉ. मंजूश्री गर्ग


Saturday, October 18, 2025


पारखी नजरें--

 

हर गोल चीज चाँद नहीं होती।

हर पीली चीज सोना नहीं होती।

हर पत्थर नगीना नहीं होता।

परख ही लेती हैं पारखी नजरें,

जिसको जिसकी चाहत होती है।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग



 

Friday, October 17, 2025

 

आ जाओ सनम!

 

आ जाओ सनम!

महावर कर रही इंतजार,

पायल की छम-छम रूठी है।

 

आ जाओ सनम!

मेंहदी कर रही इंतजार,

कंगन की खन-खन रूठी है।

 

आ जाओ सनम!

बिंदिया कर रही इंतजार,

अधरों की मुस्कान रूठी है।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग


Thursday, October 16, 2025


कन्हैया हो तुम

तुम्हीं कान्हा हो, कन्हैया हो तुम।

तुम्हीं नन्दलाला, वासुदेव हो तुम।

तुम्हीं माखनचोर, चितचोर हो तुम।

तुम्हीं बाँसुरी वादक, सुदर्शन चक्रधारी हो तुम।

गोपों संग ग्वाला, गोपियों की प्रीत हो तुम।

राधा के मनमीत, द्वारकाधीश रूक्मिणी के।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

  

Wednesday, October 15, 2025

 

डायनासोर

 

डायनासोर से

कंक्रीट के जंगल

धीरे-धीरे खाने लगे

नदी से रेत

पर्वत से पत्थर

वन से लकड़ी

खानों से लोहा।

 

धीरे-धीरे धरती पे

बढ़ने लगा प्रकृति का कोप

आने लगीं बाढ़ें

होने लगे झंझावात

भूकंप, सुनामी

रोज की सी बातें।

        डॉ. मंजूश्री गर्ग


Tuesday, October 14, 2025


संघर्षमय जीवन

डॉ. मंजूश्री गर्ग 

संघर्षों की गाथा पूछो,

नदी की मीठी धारा से।

पग-पग पे सहती आयी,

चट्टानों की चोटें।

 

संघर्षों की गाथा पूछो,

मुस्काती कली से।

पली, बढ़ी, खिली,

काँटों भरी डाली संग।

 

संघर्षों की गाथा पूछो,

देदीप्यमान दीप से।

अड़िग अस्तित्व बनाये,

लड़ रहा अंधकार से।

 

अमृतम, सुगंधमय,

ज्ञानमय बनना है तो

नदी, कली, दीप सा

जीवन जीना सीखो।


  

Monday, October 13, 2025

 

अलौकिक प्रेम......

सिय-राम का प्रेम अलौकिक

धनुष-यज्ञ शाला में देख अधीर सिय को

नयनों से ही करते हैं आश्वस्त श्री राम।

क्षण भर में कर धनुष भंग, जानकी की ही नहीं,

हरते हैं पीड़ा जनक परिवार की श्री राम।

पर राम!

राम! सच-सच बतलाना

यदि तुमसे पहले कोई और

राजकुमार धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा लेता।

तो तुम क्या करते?

तुम तो पुष्प-वाटिका में धनुष-यज्ञ से पहले ही

सीता को ह्रदय समर्पित कर चुके थे।

सीता तो राजा जनक के प्रण से बँधी थीं;

विवाह उसी से होना था जो यज्ञशाला में रखे

प्राचीन शिवधनुष पर प्रत्यंचा चढ़ायेगा।

राम सच-सच बतलाना

तो तुम क्या करते?

तुम कैसे सीता के प्रति अपना एकनिष्ठ प्रेम

निभाते!

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, October 12, 2025

 

पृथ्वीराज की कलम से

 

बैर बीज बो दिये परिवारों के बीच

नाना ने देकर सिंहासन दिल्ली का।

क्यों जयचंद देशद्रोही बनते, गर

मिलता उन्हें राजपद दिल्ली का।

क्यों आक्रमणकारी का वो साथ देते।

हर संभव प्रयास वो करते दिल्ली की रक्षा का।

और मैं भी सहर्ष साथ देता उनका।

संयोगिता भी सहज प्राप्त होती मुझे.

अजमेर ही बहुत था हम दोनों के लिये।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Saturday, October 11, 2025

 

पुरूरवा की कलम से

 

देवलोक की परी हो तुम

जानता हूँ, इसी से

चाहकर भी कभी

पाने की कोशिश नहीं की।

 

मुस्कानों के फूल

खिलाता रहा

और गंध की स्याही में

डुबो-डुबो कर लिखता रहा।

 

भेजता रहा संदेशे

पवन के हाथ।

गंध तुम्हें पसन्द थी

आखिर तुम बेचैन हो गयीं

पाने को उसी गंध को।

 

प्यार मेरा सच्चा था

इसी से मजबूर हो गयीं

आने को भूलोक पर।

 

 

उर्वशी! सच कहूँ

तुम्हें पाकर

जीवन मेरा

सार्थक हुआ है

बरसों की तपस्या का फल

आज मुझे मिला है।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग