Sunday, December 21, 2025


अक्षर ज्ञान

ब्रह्म ज्ञानमय, जो

क्षर ना होता।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

Saturday, December 20, 2025


सूरज नहीं

देखो उजाले लिये

आये हैं हम।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, December 19, 2025


तेरी मुस्कान

कड़कती सर्दी में

धूप सरीखी।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, December 18, 2025


हकीकत में उन्हें पहचान अवसर की नहीं कुछ भी,

जिन्होंने ये कहा अक्सर, हमें अवसर नहीं मिलते।

                नित्यानंद तुषार 

Wednesday, December 17, 2025


छोड़ दो तुम हाथ,

चलने दो, दो कदम,

डगमगाते ही सही।

दृढ़ता वही देंगे,

मीलों के सफर की।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

Tuesday, December 16, 2025


चाहतें हों खूबसूरत

अधूरी भी अच्छी।

रोज रंगीन सपने

सजाती जीवन में।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, December 15, 2025


हकीकत में ना सही,

ख्वाबों में ही सही।

पल भर जी लेते हैं, 

मुस्कुरा लेते हैं पल भर।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, December 14, 2025


ताँबा बिना ना सोना गढ़ता।

फिर भी ताँबा ताँबा ही रहता।।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, December 13, 2025

 

'अग्नि पुराण' में 'भगवान' का प्रयोग विष्णु के लिये किया गया है क्योंकि उसमें 'भ' से भर्त्ता के गुण विद्यमान हैं और 'ग' से गमन अर्थात् प्रगति या सृजन कर्त्ता का बोध होता हैं। विष्णु को सृष्टि का पालन कर्त्ता और श्रीवृद्धि का देवता माना गया है। 'भग' का पूरा अर्थ ऐश्वर्य, श्री, वीर्य, शक्ति, ज्ञान, वैराग्य और यश होता है जो कि विष्णु में निहित है। 'वान' का प्रयोग प्रत्यय के रूप में हुआ है, जिसका अर्थ धारण करनें वाला अथवा चलाने वाला होता है अर्थात् जो सृजनकर्त्ता, पालन कर्त्ता हो, श्रीवृद्धि करने वाला हो, यश और ऐश्वर्य देने वाला हो, वह भगवान है। विष्णु में ये सभी गुण विद्यमान हैं।

                                                            -अग्नि पुराण से

Friday, December 12, 2025


ऊँट जहाज

रेत का समन्दर

चले शान से।

                   डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, December 11, 2025


धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो।

जिंदगी क्या है किताबों को हटा कर  देखो।।

                    डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, December 10, 2025


बंद मुठ्ठी में

अनगिन सपने

लेकर आये।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, December 9, 2025


 सम्बन्धों की देहरी पर, 

खिले प्रेम के फूल।

रखना कदम आगे,

विश्वासों  के साथ।.

                डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, December 8, 2025

 

किनारे-किराने चलोगे तो कैसे  पार जाओगे।

पार जाना है तो बीच धार में नाव चलाओ।।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, December 7, 2025


प्रीत की रूनझुन सी पायल बँधी जिंदगी से,

मुस्कुराने लगी सुबह, गुनगुनाने लगी रात।

                    डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

Saturday, December 6, 2025


 पल भर को तुम मुस्कुराये,

छा गया बसंत जीवन में।

खिलने लगे फूल खुशी के, 

महकने सी लगी हवायें,

बहकने लगे कदम मेरे।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, December 5, 2025


चलें दो कदम,

चलें निरन्तर,

मंजिल की ओर।

पा लेंगे हम, 

मंजिल एक दिन।


                     डॉ. मंंजूश्री गर्ग 

Thursday, December 4, 2025


'ओस' की बूँद

'मोती' का सा आभास

पल भर को।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, December 3, 2025


हर बार मिलन अधूरा ही रहा।

चाह कर भी चाह कह नहीं पाये।।

                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, December 2, 2025

 

कोविदार वृक्ष/कचनार

 

डॉ. मंजूश्री गर्ग

अयोध्या में राम मंदिर के ध्वज में तीन प्रतीक चिह्न हैं-चमकता हुआ सूर्य, ओम् और कोविदार वृक्ष। कोविदार वृक्ष देव वृक्ष है जिसे ऋषि कश्यप ने मंदार और पारिजात के वृक्षों से बनाया था। यह रामचन्द्रजी के समय भी अयोध्या के राजध्वज में अंकित था। इसे कचनार के नाम से भी जाना जाता है। अयोध्या के राम मंदिर परिसर में भी यह वृक्ष लगाया गया है। श्रीकृष्ण को भी कचनार का वृक्ष बहुत प्रिय था, वृंदावन में बहुतायत से ये वृक्ष पाये जाते हैं।

 

कचनार का वृक्ष सड़क किनारे या उपवनों में अधिकांशतः पाया जाता है। नवंबर से मार्च तक के महीनों में अपने गुलाबी व जामुनी रंगों के फूलों से लदा ये वृक्ष अपनी सुंदरता से सहज ही सबका मन मोह लेता है।

 

सन् 1880 ई. में हांगकांग के ब्रिटिश गवर्नर सर् हेनरी ब्लेक(वनस्पतिशास्त्री) ने अपने घर के पास समुद्र किनारे कचनार का वृक्ष पाया था। उन्हीं के सुझाये हुये नाम पर कचनार का वानस्पतिक नाम बहुनिया ब्लैकियाना पड़ गया। कचनार हांगकांग का राष्ट्रीय फूल है और इसे आर्किड ट्री के नाम से भी जाना जाता है। भारत में मुख्यतः कचनार के नाम से ही जाना जाता है। संस्कृत भाषा में कन्दला या कश्चनार कहते हैं। भारत में यह उत्तर से दक्षिण तक सभी जगह पाया जाता है।

 

कचनार के पेड़ की लंबाई 20 फीट से 40 फीट तक होती है। कचनार अपनी पत्तियों के आकार के कारण सहज ही पहचान में आ जाता है। पत्तियाँ गोलाकार होती हैं और अग्रभाग से दो भागों में बँटी होती हैं। मध्य रेखा से आपस में जुड़ी होती हैं। इसकी पत्तियों की तुलना ऊँट के खुर से भी की जाती है। कचनार के गुलाबी रंग के फूल के पेड़ों में जब फूल आने शुरू होते हैं तो अधिकांशतः पत्तियाँ झड़ जाती हैं। जामुनी रंग के कचनार के पेड़ों में प्रायः फूलों के साथ पत्तियाँ भी रहती हैं। कचनार के फूलों में पाँच पँखुरियां होती हैं और फूलों से भीनी सुगंध आती है।

 

कचनार के पेड़ भूस्खलन को भी रोकते हैं। कचनार के फूल की कली देखने में भी सुंदर होती है और खाने में स्वादिष्ट भी। कचनार के वृक्ष अनेक औषधि के काम आते हैं व इससे गोंद भी निकलता है। कचनार की पत्तियाँ दुधारू पशुओं के लिये अच्छा आहार होती हैं।

----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------


Monday, December 1, 2025


बरस रही है चाँदनी,

चमक रहे हैं रेतीले तट।

नदी और  सागर हों,

चाहें कितनी दूरी पे,

एक गगन की छाया में

धड़कने हैं एक दोनों की।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, November 28, 2025


वो निगाहों में ही इकरार किया, करते रहे,

उस निगाहे यार को ही पहचान नहीं पाया मैं।

                    संजीव कुमार सुधांशु 

Thursday, November 27, 2025


तुमसे  बँधी प्रीत, अनगिन रिश्ते बन गये।

किसी की मामी, किसी की चाची, किसी की भाभी बन गये ।।

                        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, November 26, 2025


प्यार की बूँदों से सरसते हैं हम,

मृदु मुस्कान से निखरते हैं हम।

नजरों ही नजरों मे करते हैं बातें,

और दिन-दिन सँवरते हैं हम। 

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Tuesday, November 25, 2025


मुठ्ठी भर धूप उछाल दो,

गम के बादलों पे।

गम भी मुस्कुरायेंगे।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, November 24, 2025


 ओस की बूँदें

हरियाली घास पे

मोती सी सजीं।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, November 23, 2025


मंजिल पानी है  'गर

अवरोधों से डरना कैसा।

कौन है? जिसने ताप सहा नहीं

सूरज जैसा चमका जो भी।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Saturday, November 22, 2025


दूर रहने से ना नजदीकियाँ कम होंगी।

आप बढ़ायें दूरियाँ नजदीकियाँ बढ़ जायेंगी।।

                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, November 21, 2025

कितना भी फूलों सा मुस्काना चाहें,

टकरा ही जाते हैंं गम के पत्थर।

                डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, November 20, 2025


मोहक दृश्य

गंगा की धारा पर

तैरते दीप।

                     डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, November 19, 2025


मैं जुगनू हूँ अपनी ही रोशनी से जगमगाता हूँ।

उधारी रोशनी नहीं ली सूरज से तारों की तरह।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, November 18, 2025


राह तकते

बीत गये बरसों

राह ना सूझे।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

            

Monday, November 17, 2025


कल-कल, छल-छल बहती, गंगा की निर्मल धारा।

सुबह सूरज बिखेरे, स्वर्णिम किरणें उस पर।।


रेतीले तट पर लगते, मेले मावस-पूनों। 

जलते अनगिन दीप, गंगा की धारा पर।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, November 16, 2025

 

हर चीज एक-दूसरे से

घुली-मिली हैं

जड़ें रोशनी में हैं

रोशनी गंध में

गंध विचारों में

विचार स्मृतियों में

स्मृतियाँ रंगों में------

            केदारनाथ सिंह


Saturday, November 15, 2025


यादों के शहर से फिर चली हैं हवायें,

छेड़ रहीं हैं मन के कोने-कोने।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, November 14, 2025


क्या मेरा? क्या तेरा साथी?

जो कुछ है इस जग का साथी।

क्या पाया? क्या खोया हमने?

जो पाया, जो खोया हमने,

जो कुछ है इस जग का साथी।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, November 13, 2025


किसी को रंगने से पहले हाथ रगेंगे तुम्हारे।

देने से पहले खुशी किसी को खुशियों से भरेगा आँचल तुम्हारा।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, November 12, 2025


प्यार के रिश्ते बड़े अनमोल।

सहेज के रखें दिल की तिजोरी में।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, November 11, 2025


जब लौ प्रभु से लौ लगी है,

मन ठौर ना और कहुँ पाता।

सुबह श्री चरणों में होती

शाम श्री चरणों में होती ।

        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, November 10, 2025


कुछ पल साथ चलने की इजाजत दे दो।

उम्र-भर तुम्हारा साथ हम न छोड़ेंगे।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, November 9, 2025


धूमिल न होने दें सुनहरे पलों की यादें।

यादों के चिरागों से ही रोशन है जिंदगी।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, November 8, 2025


जीवन में जब आईं तुम

लगी भोर की किरण सी।

जीवन की कड़ी धूप में

मुस्काईं गुलमोहर सी।

जीवन की सांध्य बेला में

लगती हो चाँदनी सी।

 

                     डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, November 7, 2025


राह अँधेरी है, दिखती नहीं राह है।

थामे रहना हाथ कान्हा, मंजिल दूर है।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, November 6, 2025


खिलते देख फूल हर्षित हुये हैं सूखे पात।

मानों दीवाली पे मुस्कायी हो मावस की रात।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, November 5, 2025


दो दिल मिले

सजी नयी दुनिया

प्रेम पथ में।

                            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, November 4, 2025


इतिहास हम बदल नहीं सकते,

लेकिन आज औ' कल तो हाथ में है ।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, November 3, 2025


लौंग

डॉ. मंजूश्री गर्ग

लौंग एक कलिका है। लौंग का वानस्पतिक नाम Syzygium aromaticum है। अंग्रेजी में इसे clove कहते हैं जो लैटिन भाषा के क्लैवस(clavus) से आया है। लौंग एक प्रकार का गरम मसाला है जो भारतीय पकवानों व औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। पूजा में भी लौंग का प्रयोग किया जाता है। नवरात्रों में दुर्गाजी की पूजा में ज्योत में लौंग जोड़ा चढ़ाने का विधान है।

चीन में लौंग का प्रयोग ईसा से तीन शताब्दी पूर्व से होता आ रहा है लेकिन यूरोप में इसका प्रयोग सोलहवीं शताब्दी में पुर्तगाल में मलैका द्रीप खोज के बाद शुरू हुआ। प्रायः सभी उष्ण कटिबंध देशों में लौंग का उत्पादन होता है- भारत, जमैका, ब्राजील, सुमात्रा, पोबा, वेस्ट इंडीज, आदि।

लौंग के बीज से पौधे धीरे-धीरे पनपते हैं, इसलिये नर्सरी से चार फुट ऊँचे पौधे लाकर लगाना अच्छा रहता है। बर्षा के मौसम में 20 फुट से 30 फुट की दूरी पर यह पौध लगानी चाहिये। पहले वर्ष तेज हवा व धूप से पौधों को बचाना चाहिये। लौंग के पेड़ पर छठे वर्ष फूल लगने आरंभ हो जाते हैं और 12 से 25 वर्ष तक अधिक उपज होती है पर 150 वर्ष तक थोड़ा-बहुत लौंग मिलता रहता।

लौंग के फूल गुच्छों सें सुर्ख लाल खिलते हैं, लेकिन फूल खिलने से पहले ही कलियाँ तोड़ ली जाती हैं। ताजी कलियों का रंग ललाई लिये हुये या हरा होता है। अच्छे मौसम में इन्हें धूप में सुखा लेते हैं और बदली होने पर आग पर सुखाते हैं। सुखाने के बाद लगभग 40% लौंग ही बचती हैं।

 

 --------------------------------------------------------------------------------------------------------


Sunday, November 2, 2025

 

'दूध' प्रेम का प्रतीक है जिस प्रकार दूध में जरा सी भी खटास आ जाये तो वह दूध दूध नहीं रहता, उसी प्रकार आपसी रिश्तों में जरा सी भी खटास आ जाये तो प्रेम प्रेम नहीं रहता।

                                                        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Saturday, November 1, 2025


मन तो बाबरा पंछी है।

जिस डाल से उड़ाओ, उसी पे आ बैठता है।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग


       

Friday, October 31, 2025


चंद श्रीहीन

सूरज सुषमामय

प्रातः बेला में।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Thursday, October 30, 2025


जब भी छेड़ा, खिलखिलाया हरसिंगार।

चाँदनी  सी  बिछी तरू  तले।। 

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, October 29, 2025


दूर से सही

पैगाम तो भेजिये

बँधेगी आस।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, October 28, 2025

 

कालिदास! सच-सच बतलाना

इन्दुमती के मृत्यु शोक से

अज रोया या तुम रोये थे?

कालिदास! सच-सच बतलाना

X             X             X             X

पर पीड़ा से पूर-पूर हो

थक-थक कर और चूर-चूर हो

अमल-धवल गिरि के शिखरों पर

प्रियवर! तुम कब तक सोये थे?

रोया यक्ष कि तुम रोये थे?

कालिदास! सच-सच बतलाना

 

                                                नागार्जुन


Monday, October 27, 2025


पग-धूली से

माँग सजूँ अपनी

चाह में तेरी.


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, October 26, 2025


तुम मुस्कुराये

हजार दीप जले

मन-आँगन.


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, October 25, 2025


 

मन उजाला

जैसे खिली कपास

देख तुझको.


        डॉ. मंजूूश्री गर्ग 

Friday, October 24, 2025


आँखों ही आँखों कटी हरसिंगार की रात।

और महावर रच रई फूलों वाली बात।।


            पूर्णिमा वर्मन 

Thursday, October 23, 2025


तुम मुस्काओ

मुरझाये फूल भी

खिल उठेंगे.

         डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, October 22, 2025

 


ये किसने!

 

ये किसने!

सिलेटी रंग की स्लेट पर

सुनहरे आखर लिख डाले।

जगमगाने  लगे   तारे,

महकने लगी  रात-रानी,

मुस्कुराने   लगी  रात।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Tuesday, October 21, 2025


मन में बजी

रूनझुन पायल

तुम आईं क्या?


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, October 20, 2025


 

प्यार की छुअन जब-जब मिली,

 

स्नेहिल स्पर्श पा श्री राम का,

जड़ अहिल्या बनी फिर नारी।

 

अधरों की छुअन पा श्री कृष्ण की,

जड़ बाँसुरी बजी सप्तम स्वर में।

 

प्यार की छुअन जब-जब मिली,

नाच उठा मन-मयूर वन में।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, October 19, 2025


20 अक्टूबर 2025, दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनायें

                             एक दीप

 

एक दीप

मन्दिर में

श्रद्धा का।

 

एक दीप

तुलसी पे

विश्वास का।

 

एक दीप

आँगन में

प्रेम का।

 

एक दीप

ज्ञान का

दिल में

जलाये रखना।

    डॉ. मंजूश्री गर्ग


Saturday, October 18, 2025


पारखी नजरें--

 

हर गोल चीज चाँद नहीं होती।

हर पीली चीज सोना नहीं होती।

हर पत्थर नगीना नहीं होता।

परख ही लेती हैं पारखी नजरें,

जिसको जिसकी चाहत होती है।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग



 

Friday, October 17, 2025

 

आ जाओ सनम!

 

आ जाओ सनम!

महावर कर रही इंतजार,

पायल की छम-छम रूठी है।

 

आ जाओ सनम!

मेंहदी कर रही इंतजार,

कंगन की खन-खन रूठी है।

 

आ जाओ सनम!

बिंदिया कर रही इंतजार,

अधरों की मुस्कान रूठी है।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग


Thursday, October 16, 2025


कन्हैया हो तुम

तुम्हीं कान्हा हो, कन्हैया हो तुम।

तुम्हीं नन्दलाला, वासुदेव हो तुम।

तुम्हीं माखनचोर, चितचोर हो तुम।

तुम्हीं बाँसुरी वादक, सुदर्शन चक्रधारी हो तुम।

गोपों संग ग्वाला, गोपियों की प्रीत हो तुम।

राधा के मनमीत, द्वारकाधीश रूक्मिणी के।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

  

Wednesday, October 15, 2025

 

डायनासोर

 

डायनासोर से

कंक्रीट के जंगल

धीरे-धीरे खाने लगे

नदी से रेत

पर्वत से पत्थर

वन से लकड़ी

खानों से लोहा।

 

धीरे-धीरे धरती पे

बढ़ने लगा प्रकृति का कोप

आने लगीं बाढ़ें

होने लगे झंझावात

भूकंप, सुनामी

रोज की सी बातें।

        डॉ. मंजूश्री गर्ग