आदि काल में व्यैक्तिक संवेदनाओं की अभिव्यक्ति-
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने पृथ्वीराज की वीरता का वर्णन किया है-
उद्ठि राज
पृथिराज मनौ लग्ग वीरनट्ट।
कढ़त तेग मनो
वेग लगत मनो बीज झट घट्ट।।
चन्द्रवरवायी
पृत्थीराज रासो के अनुसार जब शहाबुद्दीन गौरी
पृत्थीराज को कैद करके गजनी ले गया, तब कुछ दिनों के बाद चन्द्रवरदायी भी गजनी चले गये. जाते समय अपनी पुस्तक अपने
पुत्र जल्हण को सौंप दी थी और अपने पुत्र से पृथ्वीराज रासो को पूर्ण करने के लिये
कहा था-
पुस्तक जल्हण हाथ दई चलि गज्जन नृपकाज।
रघुनाथ चरित
हनुमंत कृत भूप भोज उद्धिरिय जिमि।
पृथिराज सुजस कवि चंद कृत चंदनंद उद्धिरिय तिमि।
चन्द्रवरदायी
एक बार जयचंद ने कवि चन्द्रवरदायी से व्यंग्यात्मक प्रश्न किया-
मुँह दरिद्र अरू तुच्छ तन, जंगल राव सुह्द्।
वन उजार पशु तन चरन, क्यों दूबरो वरद्द।
चन्द्रवरदायी
कवि ने भी व्यंग्यात्मक ढ़ंग से उत्तर दिया-
चढ़ि तुरंग चहुआन, आन फेरीत परद्धर।
तास जुद्ध मंड़यो, जस जान्यो सबर बर।।
केइक तकि गहि पात, केई गहि डारि मूर तरू।
केईक दन्त तुछ भिन्न, गए दस दिसि निभाजि डर।।
भुज लोकत दिन अचिर रिन, गए दस दासिनि भाजि डर।
पृथिराज खलन खदधौ जुखर, मान सबर बर भरद्दौ पर।।
चन्द्रवरदायी
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अपने शब्दों के
माध्यम से पृथ्वीराज को शहाबुद्दीन गौरी की सही स्थिति बताकर उस पर बाण साधने के
लिये कहा है –
चार बाण, चौबीस
गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता उपर सुल्तान
है, चूके मत चौहान।।
चन्द्रवरदायी
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने ऊदल के जन्म का
वर्णन किया है और उसकी वीरता का वर्णन किया है-
जौन घड़ी यहु
लड़िका जन्मो दूसरो नाय रचो करतार
सेतु बन्ध और रामेश्वर
लै करिहै जग जाहिर तलवार।
किला जीती ले
यह मांडू का बाप का बदला लिहै चुकाय
जा कोल्हू में
बाबुल पेरे जम्बे को ठाड़ो दिहे पिराय।
किला किला पर
परमाले की रानी दुहाई दिहे फिराय
सारे गढ़ों पर
विजय ये करिके जीत का झंडा दिहे गड़ाय।
तीन बार गढ़
दिल्ली दाबे मारे मान पिथौरा क्यार
नामकरण जाको
ऊदल है भीमसेन क्यार अवतार।
जगनिक
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने विरहणी की मनोदशा
का वर्णन किया है-
रिमझिम-रिमझिम बरसन लागी छाई री चहुँ ओर।
आज वन बोलन लागे मोर।
कोयल बोले डार-डार पपीहा मचाये शोर।
X x x x x
ऐसे समय साजन परदेस गये विरहन छोर।
अमीर खुसरो
जब प्रिया अपने प्रियतम से मिलने जाती है तो
अपनी छवि भूल जाती है. इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में
की है-
अपनी छवि बनाई के जो मैं पी के पास गई।
जब छवि देखी पीहू की तो अपनी भूल गई।
अमीर खुसरो
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने प्रिय के बिना
प्रिया की दशा का वर्णन किया है-
रैन बिना जग
दुखी और चन्द्र बिन रैन।
तुम बिन साजन
मैं दुखी और दुखी दरस बिन नैन।।
अमीर खुसरो
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