Thursday, March 6, 2025


गजल

 डॉ. मंजूश्री गर्ग

 यादों के दिये, जब-जब जले,

निशान और भी, गहरे हुये।

 

उजालों के लिये, जब-जब लड़े,

अँधेरे  और  भी, गहरे हुये ।

 

फूलों के लिये, जब-जब बढ़े,

उपवन ने दिये, चुभते हुये।

 

पानी के लिये, जब-जब झुके,

नदी  ने  दिया, सहमे हुये।

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