Thursday, March 20, 2025

 

 एक समय ऐसा भी आता है कि व्यक्ति स्वयं अपनी चुप्पी तोड़ता है और उसका जीवन ऐसे ही निखर जाता है जैसे सीपी से मोती निकलें. इसी भाव की अभिव्यक्ति कवयित्री ने प्रस्तुत पंक्तियों में की है-

भीतर छिपे सन्नाटे

कब तक रहते खामोश

उम्रें तमाम होती रहीं

चुप्पी टूटी आया होश।

जुबां पाई खामोशियों ने

सावन की बूँदे बरसीं

सीपी में छिपी स्वाति-बूँद

अमूल्य मोती बन निकली।


        वीना विज उदित


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