एक समय ऐसा भी आता है कि व्यक्ति स्वयं
अपनी चुप्पी तोड़ता है और उसका जीवन ऐसे ही निखर जाता है जैसे सीपी से मोती
निकलें. इसी भाव की अभिव्यक्ति कवयित्री ने प्रस्तुत पंक्तियों में की है-
भीतर छिपे
सन्नाटे
कब तक रहते
खामोश
उम्रें तमाम
होती रहीं
चुप्पी टूटी
आया होश।
जुबां पाई
खामोशियों ने
सावन की बूँदे
बरसीं
सीपी में छिपी स्वाति-बूँद
अमूल्य मोती बन
निकली।
वीना विज उदित
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