Saturday, March 15, 2025


समर्पण लो सेवा का भार, सजल संस्कृति की यह पतवार,

आज से यह जीवन उत्सर्ग, इसी पदतल में विगत विकार।

दया, माया, ममता, लो आज, मधुरिमा लो अगाध विश्वास,

हमारा ह्रदय रत्ननिधि स्वच्छ, तुम्हारे लिये खुला है पास।

                                       जयशंकर प्रसाद 

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