देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से
सिंचित करो धरा समता की भाव वृष्टि से
जाति भेद की, धर्म वेश की
काले गोरे रंग-द्वेष की
ज्वालाओं से जलते जग में
इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है।
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
No comments:
Post a Comment