Tuesday, May 17, 2016

नल-दमयंती की प्रेम कथा


डॉ0 मंजूश्री गर्ग

नल निषाद देश का योग्य शासक था. उसके शासन काल में राज्य में सुख-समृद्धि छायी हुई थी. साथ ही नल सुन्दर, वीर और बलशाली था. एक दिन एक ब्राह्मण नल के दरबार में आया और उसको विदर्भ देश के राजा भीम की पुत्री दमयन्ती के बारे में बताया, जो बहुत ही सुन्दर, सुशील व गुणवान थी. ब्राह्मण ने कहा कि तुम्हारे योग्य दमयन्ती ही है, दमयन्ती का एक चित्र भी बनाया. राजा नल दमयन्ती के चित्र को देखकर व गुणों को सुनकर उस पर मोहित हो गये. एक दिन अपने बाग में दमयन्ती के ध्यान में मग्न राजा नल घूम रहे थे तभी एक सुनहरे पंख वाला हंस उनके पास आया. राजा नल ने यह जानने के लिये कि क्या दमयन्ती भी उन्हें चाहती है हंस को विदर्भ देश भेज दिया. दमयंती पहले से ही राजा नल के गुणों को सुनकर उन पर मुग्ध थीं और उन्हें पतिरूप में पाना चाहती थीं. जब हंस ने आकर राजा नल का संदेश दमयन्ती को दिया तो दमयन्ती नल का संदेश पाकर बहुत खुश हुईं. दमयन्ती ने अपने मन के उद्गार भी हंस के द्वारा राजा नल के पास भिजवाये, जिन्हें सुनकर राजा नल बहुत प्रसन्न हुये.
राजा भीम ने दमयन्ती के लिये स्वयंवर का आयोजन किया. स्वयंवर में भाग लेने के लिये विभिन्न देशों के राजकुमारों के साथ नल भी आये. साथ ही स्वर्ग के देवता –इन्द्र, वरूण, अग्नि और यम भी स्वयंवर में भाग लेने के लिये आये. जब स्वयंवर कक्ष में दमयन्ती अपने हाथों में वरमाला लेकर आयीं तो देखा कि अन्य राजकुमारों के साथ पाँच नल रूप के राजकुमार वर के रूप में खड़े हैं, क्योंकि चारों देवताओं ने भी नल का रूप धारण किया हुआ था. दमयंती ने उस समय धैर्य से काम लिया और ध्यानपूर्वक देखा. चारों देवता जो नल रूप में खड़े थे उनकी पलकें नहीं झपक रहीं थीं, जबकि वास्तविक नल की पलकें बराबर झपक रहीं थीं. दमयंती ने उसी को वरमाला पहना दी. तब देवता अपने असली रूप में आ गये और नल-दमयंती को आर्शीवाद देकर स्वर्ग को चले गये.

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