भगवान बिष्णु
दस अवतारों की कथा
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
1.
वाराह अवतार
ब्रह्मा जी ने नारायण की आज्ञानुसार सृष्टि की
रचना की, मानव जीवन के लिये पृथ्वी की उत्पत्ति की, जिस पर विभिन्न वनस्पति, पर्वत, नदी, वन, विभिन्न जीव-जंतुओं का विस्तार किया; दिति के पुत्र
व हिरण्यकश्यप के भाई हिरण्याक्ष पृथ्वी को उठाकर पाताल लोक ले गया. पृथ्वी के
बिना सारी सृष्टि आधार हीन हो गयी. इससे ब्रह्मा जी बहुत दुःखी हुये और उन्होंने
बिष्णु भगवान की आराधना की. कहा कि, “हे प्रभु! मैंने आपकी
आज्ञानुसार सृष्टि की रचना की, संसार को बसाने के लिये ‘पृथ्वी’ का निर्माण किया, किंतु
हिरण्याक्ष दैत्य ‘पृथ्वी’ को उठाकर
पाताल लोक ले गया है. बिना पृथ्वी संसार कैसे बसेगा.
बिष्णु भगवान ने ब्रहमा
जी की आर्त वाणी सुनकर तुरंत ही वाराह(शूकर) का रूप धारण किया और पाताल लोक जाकर अपने दो दातों पर पृथ्वी को
उठा लिया. जब हिरण्याक्ष ने यह दृश्य देखा तो अपनी गदा से पृथ्वी लिये हुये वाराह
भगवान पर प्रहार किया; किंतु वाराह भगवान ने हिरण्याक्ष के प्रहार को बीच में ही रोक
दिया और अपनी गदा के तेज प्रहार से हिरण्याक्ष का वध कर, पृथ्वी
को पाताल लोक से बाहर ला अपनी कुछ शक्ति के साथ जल पर स्थापित कर दिया. पृथ्वी को
जल पर स्थापित देखकर ब्रह्मा जी सहित सभी देवता अत्यंत प्रसन्न हुये और सबने वाराह
भगवान की स्तुति करते हुये पुष्प वर्षा की.
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