4.
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
राजा
बलि प्रहलाद के पौत्र थे. उसने अपने पराक्रम से तीनों लोकों में अपना शासन स्थापित
किया था. उसने विश्व विजयी बनने के लिये सौ यज्ञ करने का संकल्प किया था.
निन्नियानवें यज्ञ तो भली प्रकार सम्पन्न हो गये किंतु जब सौंवा यज्ञ करने लगा तो
देवताओं की माता अदिति, जो देवताओं
का राज्य छिन जाने से अति दुखित थी और भी दुःखी हुई. तब उन्होंने अपने को निःसहाय
पा विष्णु भगवान की आराधना की कि किसी तरह मेरे पुत्रों का राज्य वापस मिल जाये.
विष्णु
भगवान ने अदिति की आराधना से प्रसन्न हो अदिति और कश्यप के यहाँ पुत्र रूप में
जन्म लिया. थोड़ा बड़े होने पर ब्रह्मचारी का वेश बना, हाथ में दण्ड-कमण्डल ले राजा बलि के सौंवे यज्ञ में चले गये. उनके तेज से
पूरी यज्ञशाला प्रकाशमान हो गयी. राजा बलि ने वामन भगवान को उच्च आसन पर बैठाया और
कुछ दान माँगने के लिये अनुग्रह किया. तब वामन भगवान ने केवल तीन पग धरती माँगी.
राजा बलि ने कहा, “प्रभु! आप जहाँ से चाहें भूमि नाप लें.”
तब वामन भगवान ने अपना विराट रूप रखकर एक पग में स्वर्गलोक के सातों भुवन और दूसरे
पग में पाताललोक के सातों भुवन नाप लिये. तब राजा बलि शर्मिंदा होकर हाथ जोड़कर
उनके सामने खड़े हो गये तो वामन भगवान ने राजा बलि के मस्तक पर पैर रखकर तीसरे पग
की धरती मापी. इस प्रकार वामन भगवान ने देवताओं को उनका राज्य वापस दिलाया और राजा
बलि को सुतल लोक का राज्य दिया.
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