Wednesday, May 4, 2016

2. नृसिंह अवतार
डॉ0 मंजूश्री गर्ग


हिरण्याक्ष के वध से उसका भाई हिरण्यकश्यप और माता दिति बहुत दुःखी हुईं. तब हिरण्यकश्यप ने माँ को सांत्वना दी और नारायण को हराने के लिये असीम शक्ति प्राप्त करने की कामना ले, मंदराचल पर्वत पर जा ब्रह्मा की आराधना की. कठोर तप करते हुये सौ वर्ष बीत गये , तब ब्रह्मा जी ने उसे दर्शन दिये और वर माँगने को कहा. तब हिरण्यकश्यप ने वर माँगा कि, “हे ब्रह्मा जी! मुझे ऐसी शक्ति दो कि तीनों लोको में कोई भी मुझे न मार सके. न मनुष्य न पशु, ना दिन को मरूँ ना रात को, ना अस्त्र से ना शस्त्र से मरूँ अर्थात तीनों लोक मेरे आधीन हों.” वर सुनकर ब्रह्मा जी बड़े असमंजस में पड़ गये, फिर मन में सोचा कि यदि इसे वर नहीं देता तो यह और तपस्या करेगा अर्थात वर देना ही सही है, नारायण ही इस समस्या का कुछ हल निकालेंगे. ब्रह्मा जी हिरण्यकश्यप को मन चाहा वर दे, ब्रह्मलोक को चले गये.
ब्रह्मा जी से असीम शक्ति प्राप्त कर हिरण्यकश्यप ने देवता, मनुष्य सबको जीतकर अपने आधीन कर लिया  और तीनों लोको में अपने ही नाम का जप करवाने लगा. कोई भी उसके डर से नारायण का नाम नहीं लेता था. किंतु हिरण्यकश्यप के ही घर उसका पुत्र प्रहलाद हरिभक्त पैदा हुआ, जो दिन-रात नारायण के ही नाम का जप करता था. इसीलिये हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे को मारने के अनेक प्रयत्न किये. कभी पहाड़ों से नीचे फेंका, कभी आग में जलाकर मारने की कोशिश की; श्री नारायण ने हर समय, हर जगह अपने प्रिय भक्त  प्रहलाद की रक्षा की और उसका बाल भी बाँका नहीं हुआ. तब स्वयं हिरण्यकश्यप तलवार ले प्रहलाद को मारने के लिये उठा, वो समय शाम का था. तभी खंभे में से नृसिंह भगवान प्रकट हुये और उन्होंने अपने तेज नाखुनों से हिरण्यकश्यप का वध कर दिया. इस तरह आधा मनुष्य, आधा सिंह का रूप रख, शाम के समय बिना अस्त्र-शस्त्र से हिरण्यकश्यप का वध कर नृसिंह भगवान ने ब्रह्मा जी के वर का मान भी रख दिया और आतंकी दैत्य हिरण्यकश्यप का वध भी कर दिया. तब सभी देवताओं ने नृसिंह भगवान की स्तुति की और प्रहलाद उनके चरणों में गिर गया, जिसे उन्होंने प्रेमवश अपनी गोद में बैठा लिया.
             ------------------------------------------------------------






                            

No comments:

Post a Comment