प्रद्युम्न की कथा
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
प्रद्युम्न
श्रीकृष्ण और रूक्मिणी के पुत्र थे. जब वह अठारह दिन के थे तो शम्बासुर नामक राक्षस
प्रद्युम्न को उठा कर ले गया और उन्हें समुद्र में फेंक दिया. समुद्र में एक मछली
ने उन्हें निगल लिया. एक बार वह मछली मछेरे के जाल में आ गयी और शम्बासुर के
रसोईघर में लाई गयी. जब मछली का पेट चीरा गया तो उसमें से एक सुन्दर बालक निकला.
उस अत्यन्त सुन्दर बालक का मायावती( जो शम्बासुर के यहाँ रसोइया बनकर रह रही थी) ने
पालन-पोषण किया. मायावती प्रद्युम्न के प्रति रति भाव रखती थी. धीरे-धीरे
प्रद्युम्न बड़ा होने लगा और सांसारिक बातों को समझने लगा. एक दिन प्रद्युम्न ने
मायावती से पूछा, “हे माता! तुम मेरी माँ होकर मुझे पति भाव से क्यों देखती हो.” तब मायावती ने कहा, “तुम पूर्वजन्म में मेरे पति कामदेव थे और मैं
तुम्हारी पत्नी रति. एक बार कामदेव ने देवताओं के हित के लिये शिवजी की तपस्या भंग
की थी. तब शिवजी ने क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया था. किन्तु बाद में
उन्हें बोध हुआ कि कामदेव निर्दोष है तब रति का विलाप सुन, उसे आर्शीवाद देते हुये
शिवजी ने रति से कहा, हे रति! तू चिन्तित मत हो. तेरा पति द्वापर सुग में जब कृष्णावतार
होगा और श्रीकृष्ण-रूक्मिणी का विवाह होगा तो रूक्मिणी के गर्भ से जन्म लेगा और
तुझे शम्बासुर की रसोई में मिलेगा. पन्द्रह वर्ष की आयु में वह शम्बासुर को मारकर तुझे
द्वारिका ले जायेगा. वहाँ तेरा और उसका विधिवत विवाह होगा.” एक दिन प्रद्युम्न ने शम्बासुर को युद्ध के लिये ललकारा और
द्वन्द्व युद्ध करते हुये शम्बासुर को मार दिया. फिर प्रद्युम्न और रति विमान में
बैठकर द्वारिका जा पहुँचे. वहाँ बड़ी धूमधाम के साथ दोनों का विधिवत विवाह हुआ.
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