3.
कच्छ्प(कछुआ) अवतार
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
भाई
होते हुये भी देवताओं और दानवों मे प्रायः आपस में युध्द होते रहते थे. कभी देवता
दानवों को हराकर उनका राज्य, शक्ति,
आदि छीन लेते थे और कभी दानव देवताओं को हराकर उनका राज्य, आदि छीनकर उन्हें श्रीहीन कर देते थे. एक बार सब देवताओं ने मिलकर नारायण
भगवान से प्रार्थना की कि, “हे प्रभु! कोई ऐसा उपाय बताइये
कि हम कभी भी दानवों से पराजित न हों. हम, हमारा राज्य अमर
हो जाये.” तब नारायण भगवान ने कहा कि तुम दानवों के साथ मिल समुद्र-मंथन करो.
उसमें से जो अमृत निकलेगा उसे पीकर तुम अमर हो जाओगे. तब देवताओं ने दानवों से
मित्रवत् बात करते हुये समुद्र-मंथन के लिये राजी किया और मंदराचल पर्वत को मथानी
बनाने के लिये क्षीरसागर में रखा किंतु अपने वजन के कारण मंदराचल पर्वत सागर में
डूबने लगा. तब नारायण भगवान ने कच्छप का रूप रखा और मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर
स्थित किया. जब तक समुद्र-मंथन हुआ मंदराचल पर्वत कच्छप भगवान की पीठ पर स्थित
रहा. समुद्र-मंथन के बाद वह समुद्र में डूब
गया. समुद्र-मंथन से चौदह रत्नों के साथ जब अमृत निकला तो छल से मोहिनी रूप रखकर
नारायण भगवान ने अमृत देवताओं को पिला दिया.
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