Thursday, May 14, 2015

ramramji

हाइकु
डॊ0 मंजू गर्ग


मैं,तुम और
मीठी सी मुस्कान
दोनों के बीच.


सारा बदन
गुलाब सा महका
तुम से मिल.

महके घर 
धूप, चंदन सम
तेरे आने से.

तेरे ध्यान में
या गुम अपने में
मालूम नहीं.

हिना बिना ही
रच गयी हथेली
तेरे प्यार में.

श्रम से भरे
जीवन सरोवर
खिलें कमल.

सोना, मानुष
जितना तपता है
खरा होता है.

बिदूषक ही
पर्दे के पीछे रो के 
हँसा जायेगा.

जलता दिया
मिट्टी का या सोने का
एक समान.

देव,मानव
अपनी सीमाओं में
बँधे दोनों ही.