Monday, September 28, 2020


पत्थर दिल

टूटेंगें, बिखरेंगे

झुकेंगे नहीं।


                                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, September 22, 2020


आकाश छूने

चले यूकलिप्टस

धरती सोख।


                                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, September 17, 2020


वह नहीं नूतन कि जो प्राचीनता की जड़ हिला दे

भूल के इतिहास का आभास ही मन से मिटा दे।

जो पुरातन को नया कर दे मैं उसे नूतन कहूँगा। 

                                         बलवीर सिंह रंग

 

Sunday, September 13, 2020

 


नफरत की तपती धरती में

कहीं छिपे हैं बीज प्रेम के।

आओ नेह का मेह बरषायें

उगेगी हरियाली अपनेपन की।

 

                   डॉ. मंजूश्री गर्ग

 


Saturday, September 12, 2020

 


मस्त गगन में उड़ता पंछी

मत पिंजरे में कैद करो।

जीते जी मर जायेगा

गर पिंजरे में कैद हुआ।

 

                   डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, September 11, 2020

 


विक्रमी संवत्-हिन्दू नव-वर्ष

(अधिक मास विशेष)

डॉ. मंजूश्री गर्ग

विक्रम संवत् हिन्दू पंचांग में समय गणना की प्रणाली का नाम है. यह संवत् 57 ई.पू. आरम्भ हुआ था. इसके प्रणेता उज्जैन के राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य थे. बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रमी सम्वत् से ही शुरू हुआ. महीने का हिसाब सूर्य और चन्द्रमा की गति पर रखा जाता है. बारह राशियाँ बारह सौर मास हैं. जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्राति होती है. पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है, जैसे-

महीनों के नाम    पूर्णिमा के दिन नक्षत्र, जिसमें चन्द्रमा होता है

1.चैत्र                    चित्रा, स्वाति

2.बैशाख                  विशाखा, अनुराधा

3. ज्येष्ठ                 ज्येष्ठा, मूला

4.आषाढ़                  पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, सतभिषा

5.श्रावण                  श्रवण, धनिष्ठा

6. भाद्रपद                पूर्वाभाद्र, उत्तराभाद्र

7. आश्विन, क्वार          अश्विन, रेवती, भरणी

8.कार्तिक                 कृतिका, रोहिणी                                         9.मार्गशीर्ष(अगहन)          मृगशिरा, उत्तरा

10. पौष(पूस)              पुनर्वसु, पुण्य

11. माघ                 मघा, अश्लेषा

12. फाल्गुन                   पूर्वाफाल्गुन, उत्तर फाल्गुन, हस्त

 

चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा 26.3 दिन में पूरी करता है. सौर वर्ष का मान 365 दिन, 15 घड़ी, 22 पल और 57 विपल है. चंद्र वर्ष का मान 354 दिन, 22 घड़ी, एक पल और 23 विपल है. इस प्रकार चंद्र वर्ष सौर वर्ष से 11 दिन 3 घाटी 48 पल छोटा है. इसीलिये हर तीसरे वर्ष विक्रमी संवत् में एक महीना जोड़ दिया जाता है, जिसे अधिक मास, पुरूषोत्तम मास या मल मास के नाम से जाना जाता है. अधिक मास शुक्ल पक्ष की पड़वा से शुरू होता है और कृष्ण पक्ष की अमावस तक माना जाता है. अधिक मास में कोई भी शुभ कार्य नहीं होता, जैसे- गृह प्रवेश, नामकरण संस्कार, विवाह संस्कार, आदि. अधिक मास में कोई व्रत, त्यौहार भी नहीं मनाये जाते हैं. जिस वर्ष जिस महीने में अधिक मास होता है उसके कृष्ण पक्ष के व्रत व त्यौहार अधिक मास से पहले मनाये जाते हैं और शुक्ल पक्ष के व्रत व त्यौहार अधिक मास के बाद मनाये जाते हैं. इस वर्ष विक्रमी संवत् 2077, सन् 2020 ई. में  अधिक मास आश्विन(क्वार) का महीना है. अतः श्राद्ध पक्ष अधिक मास से पहले मनाया जा रहा है(2 सितंबर से 17 सितंबर तक) और नवरात्र अधिक मास के बाद 16 अक्टूबर से शुरू होंगे. अधिक मास में पूजा अर्चना, भगवत् भजन करने का विशेष महत्व है, इसलिये इसे पुरूषोत्तम मास भी कहते हैं. अधिक मास के कारण ही दीपावली का त्यौहार हर तीसरे वर्ष लगभग 20 दिन आगे हो जाता है.

हिन्दू धर्म के सभी व्रत और त्यौहार विक्रमी संवत् के कलैण्डर के अनुसार ही होते हैं.

आजकल अधिकांश ज्योतिषी हिन्दू नव वर्ष का प्रारम्भ चैत्र मास में अमावस के दूसरे दिन गुड़ी पड़वा से मानते हैं जबकि विक्रमी संवत् प्रारम्भ हुये आधा महीना बीत चुका होता है. उनका मानना है कि गुड़ी पड़वा बहुत शुभ दिन है- इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी और चैत्री नवरात्र भी इसी दिन से शुरू होते हैं. दोनों ही बातें सही हैं, लेकिन जब ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की तब ना हम थे ना तुम. ना पृथ्वी थी, ना चन्द्र और सूर्य. फिर कौन चन्द्र-सूर्य की गणना करता और कैसे. जब ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की तब तो ब्रह्मांड में पूर्ण अंधकार ही होगा. धीरे-धीरे करके एक-एक ज्योति पिंड प्रकाशित हुये होंगे.

फिर विक्रमी संवत् की शुरूआत तो उज्जैन के महाराजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने की थी, वो भी कितने शुभ दिन जब चारों ओर रंगों की धूम मची है. बच्चे-बूढ़े, अमीर-गरीब सभी सूखे-गीले रंगों से सरोबार हर्षोल्लास से होली का पर्व मना रहे हैं. प्रकृति ने भी जी भर कर रंग बिखेरे हैं. जहाँ जंगलों में टेसू के फूल खिल रहे हैं, वहीं उपवनों में गुलाब, गेंदा न जाने कितने प्रकार के रंग-बिरंगे फूल खिल रहे हैं. वृक्षों में होड़ लगी है खड़-खड़ पुराने वस्त्र बदल नये वस्त्र धारण करने की. आम के बागों में बौर की महक है और कोयल ने फिर से नव राग में कुहुकना शुरू कर दिया है------

नये साल ने दस्तक दी

हवाओं ने करवट ली

चाँद फिर लगा मुस्कुराने

सूरज ने फैलाईं नव किरणें

पक्षी नव राग में गायें

फूल नव सौरभ बरसायें।

     डॉ. मंजूश्री गर्ग

                            ----------------

 

 

 


Thursday, September 10, 2020


मनुज-मनुज में प्यार हो, फैले स्नेह सुगंध।

आओ मिलजुल हम करें, ऐसा नव अनुबंध।।

                       डॉ. आनन्द

  

Sunday, September 6, 2020

 

दुःख की पिछली रजनी बीच

विकसता सुख का नवल प्रभात।

एक परदा यह झीना यह नील

छिपाए हैं जिसमें सुख गात।।


                                                   जयशंकर प्रसाद

Thursday, September 3, 2020



रख न अभी हथियार लड़ाई लम्बी है

रह चौकस, हुशियार लड़ाई लम्बी है।

निर्णय होना शेष, स्पष्ट हो न सकी

अभी जीत या हार लड़ाई लम्बी है।

अभी कवच मत खोल अभी ही दुश्मन का

हो सकता है वार लड़ाई लम्बी है।

अभी समर है शेष, न हो संघर्ष विरत

रख खुद को तैयार लड़ाई लम्बी है।

वृत्ति जुझारू बनी रहे इस कारण तू

युद्ध-युद्ध उच्चार लड़ाई लम्बी है।

अभी कहाँ विश्राम की उठ निज शस्त्रों की

और तेज कर धार लड़ाई लम्बी हैः

लड़ता है हौसला सिपाही का केवल

शस्त्र नहीं आधार लड़ाई लम्बी है।

योद्धा का संकल्प, शौर्य, उत्सर्ग, अभय

जीता है हर बार लड़ाई लम्बी है।

                         चन्द्रसेन विराट 

Tuesday, September 1, 2020


बूढ़ी देहरी मौन है

सहमी अँगनाईयाँ।

घर के सामान की तरह

बँट गये माँ-बाबूजी।।

             डॉ. मंजूश्री गर्ग