Thursday, September 29, 2022

 

आराधना माँ दुर्गा की

 

शारदीय नवरात्र

प्रकृति सुन्दरी

कर रही आराधना

माँ दुर्गा की।

 

नदी का निर्मल जल

अमृत तुल्य चाँदनी

कर रही अभिषेक

माँ दुर्गा का।

 

झर-झर झरते

फूल हारसिंगार के

सजा रहे भवन

माँ दुर्गा का।

 

नाना रंग गुड़हल,

गुलमेंहदी, गुलदाऊदी

कर रहे श्रृंगार

माँ दुर्गा का।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग


Wednesday, September 28, 2022


नारी हो----

डॉ. मंजूश्री गर्ग


 

नारी हो, सबसे करती हो प्यार,

स्वयं से भी सीखो करना प्यार।

 

नारी हो, सबका करती हो सम्मान,

स्वयं का भी सीखो करना सम्मान।

 

तभी परिवार, समाज, देश, विश्व

तुम्हें देंगे प्यार और सम्मान।

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Tuesday, September 27, 2022

 

पुरूरवा की कलम से

 डॉ. मंजूश्री गर्ग

देवलोक की परी हो तुम

जानता हूँ, इसी से

चाहकर भी कभी

पाने की कोशिश नहीं की।

 

मुस्कानों के फूल

खिलाता रहा

और गंध की स्याही में

डुबो-डुबो कर लिखता रहा।

 

भेजता रहा संदेशे

पवन के हाथ।

गंध तुम्हें पसन्द थी

आखिर तुम बेचैन हो गयीं

पाने को उसी गंध को।

 

प्यार मेरा सच्चा था

इसी से मजबूर हो गयीं

आने को भूलोक पर।

 

 

उर्वशी! सच कहूँ

तुम्हे पाकर

जीवन मेरा

सार्थक हुआ है

बरसों की तपस्या का फल

आज मुझे मिला है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 


Monday, September 26, 2022


शारदीय नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें

 

Sunday, September 25, 2022

 

महाराजा अग्रसेन जी को शत्-शत् नमन





सूर्यवंशी महाराजा अग्रसेन समाजवाद के प्रवर्तक, युगपुरूष, अग्रकुल की स्थापना करने वाले, हिंसा विरोधी, रामराज्य के समर्थक, अग्रोदय नामक गणराज्य के महाराजा थे, जिनकी राजधानी अग्रोहा थी।


 

26 सितंबर, 2022शारदीय नवरात्र के प्रथम दिन अग्रकुल के संस्थापक

महाराजा अग्रसेन की जयंती पर सभी अग्रवाल कुल के सदस्यों को

हार्दिक बधाई व शुभकामनायें



जीवन खिले तो खिले ऐसे जैसे खिले डाल पर फूल,

उपवन को सजाये और पवन को महकाये।

यश फैले तो फैले ऐसे जैसे फैलें प्रातः की किरणें

अंधकार को दूर करें और उजियारा फैलायें।।


                  डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

 

 

 

 

  

Saturday, September 24, 2022


तुम साथ हो तो हर रात है उजाली।

वरना पूनम की रात भी है अँधेरी।।


       डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, September 23, 2022


                                                                  नहीं ये मौसमी प्यार है प्रिये!

ऋतु बदले और उतर जाये।

हर ऋतु को जो महका दे,

                                                                   ऐसा खुमार है ये मेरे प्रिये!

                                 डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, September 22, 2022


नजरों के नजर से मिलते ही

छा गया प्रीत रंग ऐसे ही

जैसे आकाश समुद्र के मिलते ही

छा जाये नील रंग नजरों में।


          डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, September 21, 2022

 


बीत रहे हैं

दिन सतरंगी

केवल ख्वाबों में

चले मुश्किलों

 का हल ढ़ूँढ़े

खुली किताबों में।

 

इन्हीं किताबों में

जन-गण-मन

तुलसी की चौपाई,

इनमें गालिब,

मीर, निराला

रहते हैं परसाई

इनके भीतर

जो खुशबू वो

नहीं गुलाबों में।

   जय कृष्ण राय तुषार

Tuesday, September 20, 2022

 

अक्षर तो केवल

गूँदी कच्ची मिट्टी हैं

हम उनसे

नई-नई मूर्तियाँ बनाते हैं

        गीत तभी

        होठों से होंठों तक जाते हैं।

                   माहेश्वर तिवारी


Monday, September 19, 2022


 शुक्रिया आपका,

बेबफाई की आपने।

जीने की नयी राह,

दिखा दी आपने।।


              डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, September 18, 2022


अभी अपना चेहरा आँचल में छुपा लो तुम।

ख्वाबों में मिले हो हमसे ये राज छुपा लो तुम।।


              डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

              

Friday, September 16, 2022

 

17 सितंबर, 2022, विश्वकर्मा दिवस की हार्दिक शुभकामनायें


विश्वकर्मा जी


डॉ. मंजूश्री गर्ग


विश्वकर्मा जी सृजन, निर्माण, वास्तुकला, औजार, शिल्पकला, मूर्तिकला एवम् वाहनों समेत समस्त सांसारिक वस्तुओं के अधिष्ठात्र देवता हैं।


प्रत्येक वर्ष 17 सितंबर को विश्वकर्मा जी दिवस मनाया जाता है। अधिकांशतः औधौगिक इकाइयों में इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। बंगाल में दुर्गा पूजा के अवकर पर भी विश्वकर्मा जी की मूर्ति स्थापित की जाती है। पंडाल में स्टेज पर बीच में दुर्गा जी की मूर्ति होती है और उनके दोनों तरफ सरस्वती जी, लक्ष्मी जी, गणेश जी और विश्वकर्मा जी की मूर्तियाँ होती हैं। कहीं-कहीं विश्वकर्मा दिवस पर भी विश्वकर्मा जी की मूर्ति स्थापित करके पूजा अर्चना की जाती है।


महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना(जो ब्रह्म विद्या जानने वाली थीं) का विवाह अष्टम् वसु महर्षि प्रभास से हुआ और उन्होंने सम्पूर्ण शिल्प विद्या के ज्ञाता विश्वकर्मा को जन्म दिया। सतयुग में विश्वकर्मा जी ने इन्द्र की नगरी स्वर्गलोक को बनाया। त्रेता युग में विश्वकर्मा जी ने लंका में स्वर्ण महल बनाया। द्वापर युग में विश्वकर्मा जी ने द्वारकापुरी का निर्माण किया। कलियुग के प्रारम्भ के पचास वर्ष पूर्व हस्तिनापुर और इन्द्रप्रस्थ का निर्माण किया। विश्वकर्मा जी ने ही जगन्नाथपुरी में जगन्नाथ मन्दिर व मन्दिर में स्थापित भगवान श्रीकृष्ण, सुभद्रा जी व बलराम जी की विशाल मूर्तियों का निर्माण किया।


विश्वकर्मा जी के तीन पुत्रियाँ थीं- ऋद्धि, सिद्धि व संज्ञा। ऋद्धि-सिद्धि का विवाह भगवान शिव और पार्वती जी के पुत्र गणेश जी से हुआ. संज्ञा का विवाह महर्षि कश्यप और देवी अदिति के पुत्र भगवान सूर्यनारायण से हुआ। इनसे यमराज, यमुना, कालिंदी और अश्विनी कुमारों का जन्म हुआ।










Wednesday, September 14, 2022

 

15 सितंबर,2022, अभियन्ता दिवस(इंजीनियर्स डे) पर देश के इंजीनियरों को हार्दिक शुभकामनायें


भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया


डॉ. मंजूश्री गर्ग


जन्म-तिथि- 15 सितम्बर, सन् 1860 .मैसूर रियासत (आधुनिक कर्नाटक राज्य)

पुण्य-तिथि- 14 अप्रैल, सन् 1962 .


भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया भारत के महान इंजीनियरों मे से एक थे, इन्होंने ही आधुनिक भारत की रचना की और भारत को नया रूप दिया। इन्होंने इंजीनियरिंग के क्षेत्र में असाधारण योगदान दिया और अपने समकालीन व आगामी नवयुवकों को इंजीनियरिंग के क्षेत्र में देश का विकास करने की प्रेरणा दी। इसी कारण प्रतिवर्ष मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जन्म दिन 15 सितम्बर को अभियन्ता दिवस(इंजीनियर्स डे) मनाया जाता है।


मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के पिता श्री निवास शास्त्री संस्कृत विद्वान और आयुर्वैदिक चिकित्सक थे। इनकी माँ वेंकचाम्मा एक धार्मिक महिला थीं। मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने प्रारंभिक शिक्षा चिकबल्लापुर से प्राप्त की और फिर आगे की पढ़ाई के लिये बैंगलोर चल गये। सन् 1881 . में मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने मद्रास यूनीवर्सिटी के सेंट्रल कॉलेज से बी. . की परीक्षा पास की। इसके बाद मैसूर सरकार से इन्हें सहायता मिली और इन्होंने पूना के साइंस कॉलेज में इंजीनियरिंग में प्रवेश किया। सन् 1883 में LCE और FCE की परीक्षाओं में इनको प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। ये परीक्षायें आज के BE की तरह ही हैं।


सर्वप्रथम नासिक में सहायक इंजीनियर की नौकरी की। मैसूर को विकसित व समृद्धशाली बनाने में मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का महत्वपूर्ण योगदान है। अंग्रेजों का शासन होने के उपरान्त भी कृष्ण राज सागर बाँध, भद्रावती आयरन एवम् स्टील वर्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्ट्री, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ मैसूर, आदि की स्थापना मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के भगीरथ प्रयास का ही प्रतिफल है।


कृष्ण राज सागर बाँध के समय देश में सीमेंट नहीं बनता था, इसके लिये इंजीनियरों ने मोर्टार तैय्यार किया जो सीमेंट से ज्यादा मजबूत था। मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया नें सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी भेजने का प्लान बनाया जो सभी इंजीनियरों को पसंद आया। सरकार ने सिंचाई व्यवस्था को उत्तम बनाने के लिये एक समिति का गठन किया। मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने स्टील के दरवाजे बनाये जो बाँध के पानी को रोकने में सहायक होते हैं। अंग्रेज अधिकारियों ने इस सिस्टम की प्रशंसा की। आज यह प्रणाली पूरे विश्व में प्रयोग में लाई जा रही है। मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने मूसा और इसा नामक दो नदियों के पानी को बाँधने के लिये योजना बनायी। इसके बाद उन्हें मैसूर का चीफ इंजीनियर नियुक्त किया गया।


मैसूर में लड़कियों के लिये पहला हॉस्टल तथा पहला फर्स्ट ग्रेड कॉलेज(महारानी कॉलेज) खुलवाने का श्रेय भी मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को ही जाता है।


सन् 1912 . में मैसूर के महाराजा ने मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को दीवान(मुख्यमंत्री) के पद पर नियुक्त किया। सन् 1918 . में दीवान के पद से सेवा निवृत्त हो गये। बंगलौर स्थित हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स तथा प्रीमियर ऑटोमोबाइल फैक्ट्री उन्हीं के प्रयासों का फल है। इंजीनियरिंग के साथ-साथ मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया सौंदर्य प्रेमी भी थे। मैसूर के पास वृन्दावन गार्डन इसका सशक्त उदाहरण है।


सन् 1955 . में भारत सरकार नें मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को भारत रत्न से सम्मानित किया व जब वह 100 वर्ष के हुये तो भारत सरकार ने मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के सम्मान में डाक टिकट जारी किया।


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14 सितंबर, 2022 हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें


संस्कृत की एक लाड़ली बेटी है ये हिन्दी।

बहनों को साथ लेकर चलती है ये हिन्दी।

सुंदर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है,

ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिन्दी।

पाथेय है, प्रवास में, परिचय का सूत्र है,

मैत्री को जोड़ने की सांकल है ये हिन्दी।

पढ़ने व पढ़ाने में सहज है, ये सुगम है,

साहित्य का असीम सागर है ये हिन्दी।

तुलसी, कबीर, मीरा ने इसमें ही लिखा है।

कवि सूर के सागर की गागर है ये हिन्दी।

वागेश्वरी का माथे पर वरदहस्त है,

निश्चय ही वंदनीय माँ-सम है ये हिन्दी।

अंग्रेजी से भी इसका कोई बैर नहीं है,

उसको भी अपनेपन से लुभाती है ये हिन्दी।

यूं तो देश में कई भाषायें और हैं,

राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी।

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Tuesday, September 13, 2022

 

हर रिश्ते को थोड़ी परवरिश चाहिये,

थोड़ी धूप, थोड़ी छाँव चाहिये।

स्नेह का जल, प्यार के छींटे चाहिये,

अपनेपन की थोड़ी हवा चाहिये।।

  

             डॉ. मंजूश्री गर्ग


Monday, September 12, 2022

 

सहेजा

डॉ. मंजूश्री गर्ग

सहेजा शब्द सहेजना से बना है जिस का अर्थ है सँभालकर रखना. सामान्यतः सहेजा शब्द दही के लिये प्रयोग होता है. जब हमें दूध का दही बनाना होता है तो हम उसमें थोड़ा सा दही मिला देते हैं यही थोड़ा सा दही सहेजा कहलाता है. यदि हम दही प्रयोग करते समय थोड़ा सा दही ना बचायें तो आगे स्वयं दही बनाना मुश्किल हो जायेगा. फिर हमें या तो बाजार से दही लाना होगा या किसी पड़ोसी से सहेजा लेना होगा.

दही तो एक उदाहरण है. यदि हमें किसी भी वस्तु को पुनः प्राप्त करना है तो उसे सहेज कर रखना होता है- जैसे बिना बीजों को सहेजे आगे नई पैदावर उत्पन्न करना मुश्किल है. वस्तुयें ही नहीं; संबंधों को भी सहेज कर रखना होता है जो हमारे सुख-दुःख में काम आते हैं.-------------------------------------------------------------------


Sunday, September 11, 2022


 

मंजिल पानी है गर

अवरोधों से डरना कैसा!

कौन है? जिसने ताप सहा नहीं

सूरज जैसा चमका जो भी।।


      डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

Saturday, September 10, 2022


                                                          भीग गये आज तन-मन के छोर सारे।

भीगे हैं आज खुली बारिश की बाहों में।।


          डॉ. मंजूश्री गर्ग

Thursday, September 8, 2022

 


9 सितंबर, 2022 भारतेन्दु हरिश्चन्द्रजी की जयंती पर शत्-शत् नमन


नये जमाने की मुकरी


सीटी देकर पास बुलावै।

रूपया ले तो निकट बिठावै।

ले भागे मोहिं खेलहिं खेल।

क्यों सखि सज्जन नहिं सखि रेल।।1।।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र




सुंदर बानी कहि समुझावै।

विधवागन सो नेह बढ़ावै।

दयानिधान परम गुन-आगर।

क्यों सखि सज्जन नहिं विद्यासागर।।2।।


भारतेन्दु हरिश्चन्द्र



भीड़ में रहकर भी हम अकेले ही रहे।

क्योंकि तन्हाई में तुम साथ-साथ रहे।।


                डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, September 7, 2022

 

रानी पद्मिनी

डॉ. मंजूश्री गर्ग

रानी पद्मिनी सिंघल द्वीप(श्रीलंका) की राजकुमारी व चित्तौड़ के राजा रतनसेन की पत्नी थी. रानी पद्मिनी अत्यंत सुंदर, वीर व बुद्धिमान थी. दूर-दूर तक रानी पद्मिनी के रूप-गुण की चर्चायें हुआ करती थीं. जब आक्रमणकारी अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी के बारे में सुना, तो उसके मन में रानी पद्मिनी से मिलने की तीव्र अभिलाषा जाग्रत हुई, उसने राजा रतनसेन के पास प्रस्ताव रखा कि वह आपको भाई मानता है और एक  बार रानी पद्मिनी से मिलना चाहता है. जब राजा रतनसेन ने अलाउद्दीन खिलजी का प्रस्ताव रानी पद्मिनी से कहा तो वह सुल्तान  अलाउद्दीन खिलजी की कुटिल चाल समझ गयी. उसने कहा, “अलाउद्दीन खिलजी केवल मेरा प्रतिबिम्ब शीशे में देख सकता है.”

     अलाउद्दीन खिलजी अपने सीमित सैनिकों के साथ चित्तौड़ गया और वहाँ रानी पद्मिनी के अपूर्व सौंदर्य को आईने में देखकर ही इतना मोहित हो गया कि उसको पाने के लिये बेचैन हो गया. धोखे से राजा रतनसेन को बंदी बनाकर अपने खेमे(कैम्प) में ले आया और रानी पद्मिनी को संदेश भिजवाया कि यदि अपने पति राजा रतनसेन को जीवित देखना चाहती हो तो स्वंय खेमे में आकर अपने आप को समर्पित करें. पद्मिनी ने बुद्धिमानी से काम लेते हुये दूसरे दिन एक सौ पचास पालकियाँ तैय्यार कराईं. उनमें अपनी सखी व नौकरानियों की जगह नारी वेश में चित्तौड़ के जाबांज सिपाहियों को लेकर अलाउद्दीन खिलजी के खेमे में गयीं और राजा रतनसेन को आजाद कराकर चित्तौड़ वापस आ गयी.

 

1.

 

 

तब अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ के किले पर सीधे आक्रमण बोल दिया. राजा रतनसेन अपने सिपाहियों के साथ किले के अंदर से ही वीरता के साथ अलाउद्दीन खिलजी और उसकी सेना का सामना करते रहे. धीरे-धीरे चित्तौड़ की सेना कम होती जा रही थी. दूसरे अलाउद्दीन खिलजी ने वह मार्ग भी बंद कर दिया था जिससे रसद किले में पहुँचाई जा रही थी. किले के अंदर का सामान धीरे-धीरे कम होता गया. तब राजा रतनसेन और उसकी सेना ने केसरिया पगड़ी बाँध कर, किले के द्वार खोलकर सीधे अलाउद्दीन खिलजी की सेना से युद्ध किया और किले के अंदर रानी पद्मिनी के साथ सभी नारियों ने संपूर्ण श्रंगार कर सामूहिक रूप से अग्नि प्रज्वलित कर अपने आपको अग्नि में समर्पित कर जौहरकिया. जब चित्तौड़ की सेना पर विजय प्राप्त कर अलाउद्दीन खिलजी व उसकी सेना ने किले में प्रवेश किया तो उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ. मानों जीत के भी हार गये हों.

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