15 सितंबर,2022, अभियन्ता दिवस(इंजीनियर्स डे) पर देश के इंजीनियरों को हार्दिक शुभकामनायें
भारत
रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया
डॉ.
मंजूश्री गर्ग
जन्म-तिथि-
15 सितम्बर,
सन् 1860
ई.मैसूर
रियासत (आधुनिक
कर्नाटक राज्य)
पुण्य-तिथि-
14 अप्रैल,
सन् 1962
ई.
भारत रत्न मोक्षगुंडम
विश्वेश्वरैया भारत के महान
इंजीनियरों मे से एक थे,
इन्होंने ही आधुनिक
भारत की रचना की और भारत को
नया रूप दिया। इन्होंने
इंजीनियरिंग के क्षेत्र में
असाधारण योगदान दिया और अपने
समकालीन व आगामी नवयुवकों को
इंजीनियरिंग के क्षेत्र में
देश का विकास करने की प्रेरणा
दी। इसी कारण प्रतिवर्ष
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया
के जन्म दिन 15
सितम्बर को अभियन्ता
दिवस(इंजीनियर्स
डे) मनाया
जाता है।
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया
के पिता श्री निवास शास्त्री
संस्कृत विद्वान और आयुर्वैदिक
चिकित्सक थे। इनकी माँ वेंकचाम्मा
एक धार्मिक महिला थीं। मोक्षगुंडम
विश्वेश्वरैया ने प्रारंभिक
शिक्षा चिकबल्लापुर से प्राप्त
की और फिर आगे की पढ़ाई के लिये
बैंगलोर चल गये। सन् 1881
ई.
में मोक्षगुंडम
विश्वेश्वरैया ने मद्रास
यूनीवर्सिटी के सेंट्रल कॉलेज
से बी. ए.
की परीक्षा पास की।
इसके बाद मैसूर सरकार से इन्हें
सहायता मिली और इन्होंने पूना
के साइंस कॉलेज में इंजीनियरिंग
में प्रवेश किया। सन् 1883
में LCE
और FCE
की परीक्षाओं में
इनको प्रथम स्थान प्राप्त
हुआ। ये परीक्षायें आज के BE
की तरह ही हैं।
सर्वप्रथम नासिक में
सहायक इंजीनियर की नौकरी की।
मैसूर को विकसित व समृद्धशाली
बनाने में मोक्षगुंडम
विश्वेश्वरैया का महत्वपूर्ण
योगदान है। अंग्रेजों का शासन
होने के उपरान्त भी कृष्ण राज
सागर बाँध,
भद्रावती आयरन एवम्
स्टील वर्क्स,
मैसूर संदल ऑयल एंड
सोप फैक्ट्री,
मैसूर विश्वविद्यालय,
बैंक ऑफ मैसूर,
आदि की स्थापना
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया
के भगीरथ प्रयास का ही प्रतिफल
है।
कृष्ण राज सागर बाँध
के समय देश में सीमेंट नहीं
बनता था, इसके
लिये इंजीनियरों ने मोर्टार
तैय्यार किया जो सीमेंट से
ज्यादा मजबूत था। मोक्षगुंडम
विश्वेश्वरैया नें सिंधु नदी
से सुक्कुर कस्बे को पानी
भेजने का प्लान बनाया जो सभी
इंजीनियरों को पसंद आया। सरकार
ने सिंचाई व्यवस्था को उत्तम
बनाने के लिये एक समिति का गठन
किया। मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया
ने स्टील के दरवाजे बनाये जो
बाँध के पानी को रोकने में
सहायक होते हैं। अंग्रेज
अधिकारियों ने इस सिस्टम की
प्रशंसा की। आज यह प्रणाली
पूरे विश्व में प्रयोग में
लाई जा रही है। मोक्षगुंडम
विश्वेश्वरैया ने मूसा और
इसा नामक दो नदियों के पानी
को बाँधने के लिये योजना बनायी।
इसके बाद उन्हें मैसूर का चीफ
इंजीनियर नियुक्त किया गया।
मैसूर में लड़कियों
के लिये पहला हॉस्टल तथा पहला
फर्स्ट ग्रेड कॉलेज(महारानी
कॉलेज) खुलवाने
का श्रेय भी मोक्षगुंडम
विश्वेश्वरैया को ही जाता
है।
सन् 1912
ई.
में मैसूर के महाराजा
ने मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया
को दीवान(मुख्यमंत्री)
के पद पर नियुक्त
किया। सन् 1918
ई.
में दीवान के पद से
सेवा निवृत्त हो गये। बंगलौर
स्थित हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स
तथा प्रीमियर ऑटोमोबाइल
फैक्ट्री उन्हीं के प्रयासों
का फल है। इंजीनियरिंग के
साथ-साथ
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया
सौंदर्य प्रेमी भी थे। मैसूर
के पास वृन्दावन गार्डन इसका
सशक्त उदाहरण है।
सन् 1955
ई.
में भारत सरकार नें
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया
को भारत रत्न से सम्मानित
किया व जब वह 100
वर्ष के हुये तो
भारत सरकार ने मोक्षगुंडम
विश्वेश्वरैया के सम्मान में
डाक टिकट जारी किया।
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