Thursday, June 30, 2022


प्रेम एक दीप है,

जो रोशन करता है जीवन।

प्रेम एक नदी है,

जो भिगोती है हमें अन्दर तक।

प्रेम खुशबू है,

जो महकाती है हमें हर पल।


               डॉ.मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, June 29, 2022


मत अधीर हो धरा, आ पहुँचे पाहुने बादल।

रससिक्त तुम्हें कर, पहनायेंगे चूनर धानी।।


   डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, June 28, 2022



ये तुम्हारे प्यार की तासीर थी,

कि जून की तपती धूप में भी,

खिलता रहा सुर्ख लाल गुलाब,

तुमहारी चाहतों की तरह मुरझाया नहीं।



डॉ.मंजूश्री गर्ग 

 

आप सभी को यह जानकर हर्ष होगा कि साहित्यिक निबन्धों का संग्रह सूरदास का वात्सल्य वर्णन पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो गया है जिसमें सूरदास का वात्सल्य वर्णन के साथ ही विद्यार्थियों के लिये लाभप्रद अन्य साहित्यिक निबन्ध-बिहारी और बिहारी सतसई, हिन्दी कहानी का विकास, प्रगतिवाद, छायावाद, अस्तित्ववाद, उर्वशी महाकाव्य में प्रेम दर्शन, आदि संग्रहीत हैं।

https://store.pothi.com/book/dr-manjushree-garg-surdas-ka-vataslaya-varnan/

Sunday, June 26, 2022


बाबुल.......

बाबुल तेरे अँगना की

हम थीं सोन चिरैया रे

क्यूँ कनक-तीलियों में

कैद किया।

 

जून महीने में

नहीं यहाँ अमराईयाँ

कमरे में कैद

जिंदगानी रे।

 

अब के सावन में

बाबुल पास बुला लेना                             

बरसों बीत गये

झूला नहीं झूले आँगन में।


              डॉ. मंजूश्री गर्ग  


हमने जीना सीख लिया है,

झूठ बोलना सीख लिया है।

महफिल में परिधानों सा,

मुस्कान पहनना सीख लिया है।।


                           डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

Saturday, June 25, 2022


सम्बन्धों की देहरी पर खिले प्यार के फूल।

रखना कदम आगे विश्वासों के साथ।।


                     डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, June 24, 2022


 शुक्रिया आपका,

बेबफाई की आपने।

जीने की नयी राह,

दिखा दी आपने।।


डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

Thursday, June 23, 2022


मुठ्ठी भर धूप,

उछाल दो।

गम के बादलों पे,

गम भी मुस्कुरायेंगे।।


          डॉ. मंजूश्री गर्ग

      

Wednesday, June 22, 2022


कितनी निर्मोही, निर्दयी नदी हो गयी।

वनांचल छोड़ सागर की हो गयी।।


                                 डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, June 21, 2022


कब लौटा है बहता पानी, बिछड़ा साजन, रूठा दोस्त।

हमने उसको अपना जाना जब तक हाथ में दामाँ था।।


                                       इब्ने इंशा 

Monday, June 20, 2022



एक किरण फैली और फैलती चली गयी।

उसमें महक थी बही और बहती चली गयी।।


                  डॉ.मंजूश्री गर्ग 

Sunday, June 19, 2022


कौन है जो, मुझको मुझसे मिला दे।

बरसों बीत गये मेरी मुझसे बात नहीं हुई।


                              डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

Saturday, June 18, 2022

 

पता है----

बारिश रोज लिखती है

तुम्हार नाम

हरे पत्तों पर,

कोमल पंखुड़ियों पर,

खुशी से नाचते

नन्हें पौधों पर,

सोंधी मिट्टी पर,

यहाँ तक कि

मेरे चेहरे पर-----।

और----भीग जाता है

ह्रदय मेरा,

सावन तो,

दूर से बस

मुस्कराता ही रहता है।


           पवन कुमार सिंह

Friday, June 17, 2022


सारे इत्रों की खुशबू, आज मन्द पड़ गयी।

मिट्टी में बारिश की बूँदें, जो चन्द पड़ गयीं ।।


                                         पायल वर्मा

Thursday, June 16, 2022

 

सम्बन्धों के मोती

 

जीवन के धागे में पिरे

सम्बन्धों के मोती

देते हैं आभा

प्रेम की, अनुराग की

मान की, सम्मान की।

कभी जो पड़ी गाँठ

जीवन की सहजता

रहती है जाती

वाद में, प्रतिवाद में

टूट जाती हैं गाँठ

बिखर जाते हैं मोती।

कभी समय बीतते

धीरे-धीरे

होती है सहज गाँठ भी

और बनी रहती है आभा

सम्बन्धों के मोती की।


              डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

 

 

 

 

 

 


Wednesday, June 15, 2022


कुछ दूर साथ चलो, उस मोड़ तक ही।

जब वो मोड़ आएगा तो मैं बताऊँगा नहीं।।


                                         आयुष्मान 

Tuesday, June 14, 2022


अँधियारा जाता नहीं, जब तक मन से दूर।

कैसे उजियारा करे, अंतस से सत्कार।।


                      मधुसूदन साहा

Monday, June 13, 2022



सरस रसाल से ह्रदय उद्गार तुम्हारे।

सरस जाता है तन-मन हमारा।।


डॉ.मंजूश्री गर्ग 

Sunday, June 12, 2022


मैं चातक हूँ, तू बादल है,

मैं लोचन हूँ, तू काजल है।

मैं आँसू हूँ, तू आँचल है,

मैं प्यासा हूँ, तू गंगाजल है।

तू चाहे दीवाना कह ले,

जिसने मेरा परिचय पूछा, मैं तेरा नाम बता बैठा। 


          उदय भानु हंस


 


माँ, माँ ही नहीं होती,

माँ सहेली होती है।

माँ शिक्षिका होती है।

माँ पूरा संसार होती है,

हम बच्चों के लिये।


        डॉ.मंजूश्री गर्ग

Saturday, June 11, 2022


कविता मानवता की उच्चतम अनुभूति की अभिव्यक्ति है।


         हजारी प्रसाद द्विवेदी 

Friday, June 10, 2022



चाहतें हों खूबसूरत

अधूरी ही अच्छी।

नित रंगीन सपने

सजाती हैं जीवन में।


          डॉ.मंजूश्री गर्ग 

Thursday, June 9, 2022


कभी तुम टूटी छत, कभी दीवार देखते हो।

देखते इधर तो दिल का जर्जर हाल देखते।।


     डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, June 8, 2022


यूँ ही नहीं महकती हैं दिल की क्यारियाँ

जरूर तेरी आवा-जाही रही होगी।


           डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, June 7, 2022

 

अप्रतिम रूप सौंदर्य की मल्लिका

लौह जैसा हूँ मैं और पारस हो तुम

बेरूखी में तुम्हारी बिखर जाऊँगा

मुझको छू लोगी तुम तो निखर जाऊँगा।


                      राज शुक्ल नम्र

Monday, June 6, 2022


चाँदनी रात है और तुम साथ हो।

नदी का किनारा और हाथों में हाथ है।

जिंदगी में ये सुहाने पल हैं,

और क्या चाहिये जीने के लिये।


डॉ.मंजूश्री गर्ग 

 

दुष्यन्त कुमार


डॉ. मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 1सितम्बर, सन् 1933 .

पुण्य-तिथि- 30 दिसम्बर, सन् 1975 .


दुष्यंत कुमार का पूरा नाम दुष्यंत कुमार त्यागी था। दुष्यंत कुमार ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से (एम. . -हिन्दी)शिक्षा प्राप्त की और कुछ दिन आकाशवाणी भोपाल में असिस्टेंट प्रोड्यूसर रहे। आप वास्तविक जीवन में बहुत सहज और मनमौजी स्वभाव के थे। प्रारम्भ में आपने परदेशी नाम से लिखना शुरू किया। आपने अपनी रचनाओं में बोल-चाल की भाषा का प्रयोग किया।


25 जून, सन् 1975 . को प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल घोषित कर दिया। आम जनों की- पत्रकारों, लेखकों, साहित्यकारों की सहज अभिव्यक्ति पर रोक लगा दी गई। हर एक को संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा था। आम जनता सरकार के प्रतिबंधों व तानाशाही से परेशान थी। ऐसे समय में दुष्यंत कुमार ने अपनी बात आम जन तक पहुँचाने के लिये गजल विधा को चुना और सीमित शब्दों में, परोक्ष रूप से अपनी बात आम जन तक पहुँचाई। दुष्यंत कुमार ने अपनी गजलों में आम जन की बात को आम जन की भाषा में सड़क से संसद तक पहुँचाने का काम किया। आम जनता के मन में आत्म-विश्वास जगाने का व सामाजिक चेतना जगाने का काम किया. आदमी की बेबसी और लाचारी का इतना सशक्त व चुभने वाला स्वर दिया कि लोगों के सीधे दिल में उतर गया-


कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिये।

कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिये।।


दुष्यंत कुमार




दुष्यन्त कुमार की गजलें हिन्दी गजल विधा में मील का पत्थर बन गयी. तत्कालीन कवियों का रूझान नये तेवर की गजल विधा की ओर गया, जिनमें सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, आदि विविध संवेदनाओं को अभिव्यक्ति मिली।


दुष्यंत कुमार ने गजल विधा के अतिरिक्त हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में भी रचनायें की हैं जैसे-

काव्य नाटक- एक कंठ विषपायी(1965)

काव्य-संग्रह- सूर्य का स्वागत, आवाजों के घेरे, जलते हुये वन का बसंत।

गजल-संग्रह- साये में धूप(1975)

उपन्यास-छोटे-छोटे सवाल, आँगन में एक वृक्ष, दुहरी जिंदगी।

नाटक-और मसीहा मर गया।

लघु कथायें- मन के कोण।


सन् 2009 . में भारत सरकार ने आपके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया।

प्रस्तुत काव्य अंश में कवि ने अपनी व्यैक्तिक संवेदना को अभिव्यक्त किया है-



सूने घर में किस तरह सहेजूँ मन को।


पहले तो लगा कि अब आईं तुम, आकर

अब हँसी की लहरें काँपी दीवारों पर

खिड़कियाँ खुलीं अब लिये किसी आनन को।


पर कोई आया गया न कोई बोला

खुद मैंने ही घर का दरवाजा खोला

आदतवश आवाजें दीं सूनेपन को।


फिर घर की खामोशी भर आई मन में

चूड़ियाँ खनकती नहीं आँगन में

उच्छ्वास छोड़कर ताका शून्य गगन को।


पूरा घर अँधियारा, गुमसुम साये हैं

कमरे के कोने पास खिसक आये हैं


सूने घर में किस तरह सहेजूँ मन को।


दुष्यन्त कुमार


Sunday, June 5, 2022


क्यों किसी की राह के रोड़े बने हम,

बन सकें तो मील के पत्थर बनें हम।

किसी को पर हम दे नहीं सकते,

दे सकें तो हौंसलों की उड़ान दें हम।


डॉ.मंजूश्री गर्ग 

Saturday, June 4, 2022




कल-कल, छल-छल बहती, गंगा की निर्मल धारा।

सुबह सूरज बिखेरे, स्वर्णिम किरणें उस पर।।


रेतीले तट पे लगते मेले मावस-पूनों।

जलते अनगिन दीप गंगा की धारा पर।।


                                       डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, June 3, 2022

सूने घर में


सूने घर में किस तरह सहेजूँ मन को।


पहले तो लगा कि अब आईं तुम, आकर

अब हँसी की लहरें काँपी दीवारों पर

खिड़कियाँ खुलीं अब लिये किसी आनन को।


पर कोई आया गया न कोई बोला

खुद मैंने ही घर का दरवाजा खोला

आदतवश आवाजें दीं सूनेपन को।


फिर घर की खामोशी भर आई मन में

चूड़ियाँ खनकती नहीं आँगन में

उच्छ्वास छोड़कर ताका शून्य गगन को।


पूरा घर अँधियारा, गुमसुम साये हैं

कमरे के कोने पास खिसक आये हैं

सूने घर में किस तरह सहेजूँ मन को।


दुष्यन्त कुमार 


जीवन में जब आई तुम,

लगीं भोर की किरण सी।

जीवन की कड़ी धूप में,

मुस्काईं गुलमोहर सी।

जीवन की सांध्य बेला में,

लगती हो चाँदनी सी।


     डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, June 2, 2022


ठाकुर श्रीनाथ सिंह

डॉ. मंजूश्री गर्ग


जन्म-तिथि-  सन् 1901 ई. मानपुर(इलाहाबाद)

पुण्य-तिथि- सन् 1996 ई.

  

श्रीनाथ सिंह द्विवेदी युग के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपका व्यक्तित्व बहुत ही सीधा और सरल था। आपने सरस्वती पत्रिका का संपादन किया। आपने स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया। महात्मा गाँधी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन के इंदौर अधिवेशन में आपको प्रबंधमंत्री नियुक्त किया था। कुछ समय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति भी रहे। आप संयुक्त प्रांत सरकार-उत्तर प्रदेश(1946-47) द्वारा गठित समाचार पत्र उद्योग जाँच समिति के सदस्य भी रहे।

 

इलाहाबाद में आप ठाकुर साहब के नाम से प्रसिद्ध थे और अनुशासन प्रिय थे। आपने बच्चों के लिये बहुत ही उपयोगी रचनायें लिखी हैं जैसे-

कवितायें- बाल कवितावली, खेलघर, बालभारती, पिपेहरी, गुब्बारा, मीठी तानें।
कथायें- गरूण कन्या, सुनहरी नदी का देवता, परीदेश की सैर, आविष्कारों की कथायें।

श्रीनाथ सिंह की अन्य प्रमुख रचनायें है- उलझन, क्षमा, एकाकिनी या अकेली स्त्री, प्रेम परीक्षा, जागरण, प्रजामण्डल, एक और अनेक, आदि। आपने देशबंधु(दैनिक) व देशदूत(साप्ताहिक) समाचार पत्रों का संपादन किया। साथ ही शिशु, बाल सखा, बालबोध, दीदी, हल, आदि मासिक पत्रिकाओं का भी संपादन किया।

 

फूलों से नित हँसना सीखो, भौंरों से नित गाना।

तरू की झुकी डालियों से नित, सीखो शीश झुकाना।।

 

सीख हवा के झोंको से लो, हिलना, जगत हिलाना।

दूध और पानी से सीखो, मिलना और मिलाना।।

 

     श्रीनाथ सिंह

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

  


यही इंसाफ है कुछ सोचो तो अपने दिल में

तुम तो सौ कह लो, मेरी एक न सुनो और सुनो।।


                                      इंशा अल्ला खाँ 

Wednesday, June 1, 2022

 

अँधेरा है कैसे तिरा खत पढ़ूँ।

लिफाफे में कुछ रोशनी भेज दे।।


                मोहम्मद अल्वी


गीत

 

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

चाँदनी रात में फिर-फिर के आया करो,

सो भी जाऊँ मैं अगर, तुम जगाया करो,

      गीत प्यार के गाया करो।

 

हर-सिंगार सी बिछकर जीवन में,

सूने मन को महकाया करो,

      गीत प्यार के गाया करो।

 

निर्झर सी बहकर जीवन में

तन की  तपन बुझाया करो,

     गीत प्यार के गाया करो।

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