प्रेम एक दीप है,
जो रोशन करता है जीवन।
प्रेम एक नदी है,
जो भिगोती है हमें अन्दर तक।
प्रेम खुशबू है,
जो महकाती है हमें हर पल।
डॉ.मंजूश्री गर्ग
आप सभी को यह जानकर हर्ष होगा कि साहित्यिक निबन्धों का संग्रह सूरदास का वात्सल्य वर्णन पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो गया है जिसमें सूरदास का वात्सल्य वर्णन के साथ ही विद्यार्थियों के लिये लाभप्रद अन्य साहित्यिक निबन्ध-बिहारी और बिहारी सतसई, हिन्दी कहानी का विकास, प्रगतिवाद, छायावाद, अस्तित्ववाद, उर्वशी महाकाव्य में प्रेम दर्शन, आदि संग्रहीत हैं।
https://store.pothi.com/book/dr-manjushree-garg-surdas-ka-vataslaya-varnan/
सम्बन्धों के मोती
जीवन के धागे में पिरे
सम्बन्धों के मोती
देते हैं आभा
प्रेम की, अनुराग की
मान की, सम्मान की।
कभी जो पड़ी गाँठ
जीवन की सहजता
रहती है जाती
वाद में, प्रतिवाद में
टूट जाती हैं गाँठ
औ’ बिखर जाते हैं मोती।
कभी समय बीतते
धीरे-धीरे
होती है सहज गाँठ भी
और बनी रहती है आभा
सम्बन्धों के मोती की।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
दुष्यन्त कुमार
डॉ. मंजूश्री गर्ग
जन्म-तिथि- 1सितम्बर, सन् 1933 ई.
पुण्य-तिथि- 30 दिसम्बर, सन् 1975 ई.
दुष्यंत कुमार का पूरा नाम दुष्यंत कुमार त्यागी था। दुष्यंत कुमार ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से (एम. ए. -हिन्दी)शिक्षा प्राप्त की और कुछ दिन आकाशवाणी भोपाल में असिस्टेंट प्रोड्यूसर रहे। आप वास्तविक जीवन में बहुत सहज और मनमौजी स्वभाव के थे। प्रारम्भ में आपने परदेशी नाम से लिखना शुरू किया। आपने अपनी रचनाओं में बोल-चाल की भाषा का प्रयोग किया।
25 जून, सन् 1975 ई. को प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल घोषित कर दिया। आम जनों की- पत्रकारों, लेखकों, साहित्यकारों की सहज अभिव्यक्ति पर रोक लगा दी गई। हर एक को संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा था। आम जनता सरकार के प्रतिबंधों व तानाशाही से परेशान थी। ऐसे समय में दुष्यंत कुमार ने अपनी बात आम जन तक पहुँचाने के लिये गजल विधा को चुना और सीमित शब्दों में, परोक्ष रूप से अपनी बात आम जन तक पहुँचाई। दुष्यंत कुमार ने अपनी गजलों में आम जन की बात को आम जन की भाषा में सड़क से संसद तक पहुँचाने का काम किया। आम जनता के मन में आत्म-विश्वास जगाने का व सामाजिक चेतना जगाने का काम किया. आदमी की बेबसी और लाचारी का इतना सशक्त व चुभने वाला स्वर दिया कि लोगों के सीधे दिल में उतर गया-
कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिये।
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिये।।
दुष्यंत कुमार
दुष्यन्त कुमार की गजलें हिन्दी गजल विधा में मील का पत्थर बन गयी. तत्कालीन कवियों का रूझान नये तेवर की गजल विधा की ओर गया, जिनमें सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, आदि विविध संवेदनाओं को अभिव्यक्ति मिली।
दुष्यंत कुमार ने गजल विधा के अतिरिक्त हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में भी रचनायें की हैं जैसे-
काव्य नाटक- एक कंठ विषपायी(1965)।
काव्य-संग्रह- सूर्य का स्वागत, आवाजों के घेरे, जलते हुये वन का बसंत।
गजल-संग्रह- साये में धूप(1975)।
उपन्यास-छोटे-छोटे सवाल, आँगन में एक वृक्ष, दुहरी जिंदगी।
नाटक-और मसीहा मर गया।
लघु कथायें- मन के कोण।
सन् 2009 ई. में भारत सरकार ने आपके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया।
प्रस्तुत काव्य अंश में कवि ने अपनी व्यैक्तिक संवेदना को अभिव्यक्त किया है-
सूने घर में किस तरह सहेजूँ मन को।
पहले तो लगा कि अब आईं तुम, आकर
अब हँसी की लहरें काँपी दीवारों पर
खिड़कियाँ खुलीं अब लिये किसी आनन को।
पर कोई आया गया न कोई बोला
खुद मैंने ही घर का दरवाजा खोला
आदतवश आवाजें दीं सूनेपन को।
फिर घर की खामोशी भर आई मन में
चूड़ियाँ खनकती नहीं आँगन में
उच्छ्वास छोड़कर ताका शून्य गगन को।
पूरा घर अँधियारा, गुमसुम साये हैं
कमरे के कोने पास खिसक आये हैं
सूने घर में किस तरह सहेजूँ मन को।
दुष्यन्त कुमार
सूने घर में
सूने घर में किस तरह सहेजूँ मन को।
पहले तो लगा कि अब आईं तुम, आकर
अब हँसी की लहरें काँपी दीवारों पर
खिड़कियाँ खुलीं अब लिये किसी आनन को।
पर कोई आया गया न कोई बोला
खुद मैंने ही घर का दरवाजा खोला
आदतवश आवाजें दीं सूनेपन को।
फिर घर की खामोशी भर आई मन में
चूड़ियाँ खनकती नहीं आँगन में
उच्छ्वास छोड़कर ताका शून्य गगन को।
पूरा घर अँधियारा, गुमसुम साये हैं
कमरे के कोने पास खिसक आये हैं
सूने घर में किस तरह सहेजूँ मन को।
दुष्यन्त कुमार
ठाकुर श्रीनाथ सिंह
डॉ. मंजूश्री गर्ग
जन्म-तिथि- सन् 1901 ई.
मानपुर(इलाहाबाद)
पुण्य-तिथि- सन् 1996 ई.
श्रीनाथ सिंह द्विवेदी युग के
प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपका व्यक्तित्व बहुत ही सीधा और सरल था। आपने सरस्वती
पत्रिका का संपादन किया। आपने स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया। महात्मा गाँधी
ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन के इंदौर अधिवेशन में आपको प्रबंधमंत्री नियुक्त किया था।
कुछ समय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति भी रहे। आप संयुक्त प्रांत सरकार-उत्तर प्रदेश(1946-47)
द्वारा गठित समाचार पत्र उद्योग जाँच समिति के सदस्य भी रहे।
इलाहाबाद में आप ठाकुर साहब
के नाम से प्रसिद्ध थे और अनुशासन प्रिय थे। आपने बच्चों के लिये बहुत ही उपयोगी रचनायें
लिखी हैं जैसे-
कवितायें- बाल कवितावली, खेलघर, बालभारती,
पिपेहरी, गुब्बारा, मीठी तानें।
कथायें- गरूण कन्या, सुनहरी नदी का देवता, परीदेश की सैर, आविष्कारों
की कथायें।
श्रीनाथ सिंह की अन्य प्रमुख
रचनायें है- उलझन, क्षमा, एकाकिनी या अकेली स्त्री, प्रेम परीक्षा, जागरण, प्रजामण्डल,
एक और अनेक, आदि। आपने देशबंधु(दैनिक) व देशदूत(साप्ताहिक) समाचार पत्रों
का संपादन किया। साथ ही शिशु, बाल सखा, बालबोध, दीदी, हल, आदि मासिक पत्रिकाओं
का भी संपादन किया।
फूलों से नित हँसना सीखो, भौंरों से नित गाना।
तरू की झुकी डालियों से नित, सीखो शीश झुकाना।।
सीख हवा के झोंको से लो, हिलना, जगत हिलाना।
दूध और पानी से सीखो, मिलना और मिलाना।।
श्रीनाथ सिंह