Thursday, December 31, 2015

साल 2016 की हार्दिक शुभकामनायें

प्यारी सी मुस्कान
खुशियाँ हजार
मुठ्ठी में बंद लेकर
आया नया साल।
     
       डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Thursday, December 17, 2015

हाइकु

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

बीज रूप में
संचित संस्कृति
हम सब में।

ईर्ष्या नहीं
प्रतिस्पर्धा करो
जीतोगे तुम।

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भाषा-  अक्षर-  भाषा की सबसे छोटी इकाई अक्षर होती है. वर्ण में स्वर मिलकर अक्षर बनता है. बिना स्वर का वर्ण आधा अक्षर माना जाता है. कभी-कभी स्वर बिना वर्ण के स्वतन्त्र  रूप से शब्द में आता है तब उसे अक्षर ही माना जाता है.
शब्द- सार्थक शब्दों के समूह को शब्द कहते हैं.
पद- शब्द अपने आप में एक छोटा पद है जो वाक्य में प्रयुक्त होता है.इसके अतिरिक्त ऐसे पद समूह को जो वाक्य में प्रयुक्त होने के योग्य होता है, पद कहा जाता है.
वाक्य- व्याकरण सम्मत निश्चित अर्थ की अभिव्यक्ति करने वाले शब्द-समूह को वाक्य कहा जाता है.

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Monday, December 14, 2015

वेदमाता गायत्री का जन्म

डॉ0 मंजूश्री गर्ग


एक बार ब्रह्मा जी पुष्कर तीर्थ में यज्ञ करने के लिये सरस्वती जी( ब्रह्मा जी की पत्नी ) की प्रतीक्षा कर रहे थे। यज्ञ का समय निकला जा रहा था और सरस्वती जी को आने में देर हो गयी। अतः ब्रह्मा जी ने गायत्री जी के साथ यज्ञ प्रारम्भ कर दिया। सरस्वती जी ने जब ब्रह्मा जी की पत्नी के रूप में गायत्री जी को देखा तो उन्हें बहुत क्रोध आया और उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि संसार के मनुष्य तुम्हारी पूजा करना भूल जायेंगे। आज भी केवल पुष्कर तीर्थ में ही ब्रह्मा जी का मंदिर है। यज्ञ सम्पूर्ण करने के लिये उत्पन्न हुई गायत्री माँ को यज्ञ की देवी व वेदमाता के रूप में जाना जाता है। बिना गायत्री मंत्र( ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितु वरर्णेयं भर्गो देवस्य धीमहिः धियो योः नः प्रचोदयात्) के कोई भी यज्ञ सम्पन्न नहीं होता है। 

Monday, December 7, 2015

जिंदगी ख्बाबों का कलैण्डर
तारीखों से बदलते ख्बाब पर दिन।
      डॉ0 मंजूश्री गर्ग
जिंदगी ख्बाबों का कलैण्डर
ख्बाबों से बदलते ख्बाब हर दिन।
                  डॉ0मंजूश्री गर्ग

फूल भी देंगे, फल भी देंगे
तपी धूप में छाँव भी देंगे.
बेमौसम काटोगे तो
कैसे रैन बसेरा देंगे.
           डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Saturday, December 5, 2015

अव्यय- जिसका क्षय या नाश न हो, अविकारी. जैसे- अव्यय आत्मा, अव्यय ब्रह्म, अव्यय शब्द.
संज्ञा, सर्वनाम, बिशेषण और क्रिया के शब्द - वचन, लिंग, काल, कारक, आदि के अनुसार भिन्न-भिन्न रूप में मिलते हैं किन्तु कुछ शब्द अविकारी होते हैं अर्थात् उनमें लिंग, वचन, काल, आदि के आधार पर कोई परिवर्तन नहीं होता है, जैसे- यथा, अति, प्रति, यद्यपि, तथापि, आदि. ऐसे शब्द अव्यय शब्द कहलाते हैं.
अव्ययी भाव- वह समास जिस में पहला पद अव्ययी हो, जैसे- प्रतिदिन, यथाशक्ति.

Friday, December 4, 2015

हाइकु

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

रिश्ते उलझे
तोड़ो या छोड़ो यूँ ही
बिन सुलझे।

अत्याचार
जो सहे, या जो करे
दोनों ही दोषी।

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Saturday, November 28, 2015

संगम

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

श्वेत, श्याम, रतनार
गंगा, यमुना, सरस्वती
मिलें तीन धारायें
होवे संगम न्यारा।

इलाहाबाद में संगम में स्नान करने का अपना अलग ही अनूठा आनंद है. हर जगह गंगा हो या यमुना स्नान नदी के तट पर ही किया जाता है लेकिन संगम में स्नान के लिये नाव द्वारा बीच धार में जाया जाता है, जहाँ गंगा-यमुना का मिलन होता है. सफेद और साँवली दो धारायें बहती हुई अलग-अलग दिखाई देती हैं. सरस्वती का मिलन लुप्त रूप से होता है. किले के नीचे से जहाँ धारायें बहती हैं, कहते हैं वहीं गुलाबी रंग की सरस्वती की धारा को देखा जा सकता है.
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Friday, November 27, 2015

विवाह-उत्सव

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

विवाह दो दिन का उत्सव नहीं
उल्लास  है  जीवन  भर  का
समर्पण एक दूजे को वर-वधू का
निभानी हैं परम्परा दोनों कुलों की।

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Wednesday, November 25, 2015

ऊषा वैसे पौ फटने को कहते हैं किंतु वेदों में इसका अभिप्राय है वह देवी जो मनुष्य के दिमाग के अँधेरे में दैवी प्रकाश लाती है। इसी प्रकार अग्नि शब्द का अर्थ है आग। वेदों में इसका तात्पर्य केवल भस्म करने और शुद्ध करने वाली अग्नि से नहीं उस ऊर्जा और उस संकल्प शक्ति से भी है जो मनुष्य को सत्य की ओर ले जाती है।
गजल
डॉ0 मंजूश्री गर्ग

दीपक की तरह जलना है हमें,
उजाले के लिये लड़ना है हमें।

मंजिल की ओर चले हैं अभी,
बहुत दूर तक चलना है हमें।

दामन है फँसा काँटों में चाहे,
बहारों के लिये खिलना है हमें।

जीवन-भर लुटा कर खुशबुयें
हर-सिंगार सा झरना है हमें।

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Sunday, November 22, 2015

कामना

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

बारिशों के बाद
जैसे छाये हरियाली
पतझड़ के बाद
जैसे खिले बसंत
ऐसे ही जीवन में
फिर आयें खुशियाँ
उदासी का एक पल
सपने में भी ना आये.
चेहरे पे चमक
मन में उल्लास
दस्तक देते हुये
आये इस साल।

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Wednesday, November 18, 2015

धीरे से उठाइये, सँभाल के पढ़िये,
जिंदगी आँसू से गीली किताब है।

                                          डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Tuesday, November 10, 2015

आराधना

श्री गणेश जी
रिद्धि-सिद्धि के संग
सदा विराजें।

श्री लक्ष्मी जी
धन बर्षा करके
सब सुख दें।

श्री सरस्वती
कलाओं में निपुण
विद्या दान दें।

श्री रामचन्द्र
सीता संग धनुष
सदा विराजें।

श्री बिष्णु जी
लक्ष्मी संग चक्र
सदा विराजें।

         डॉ0 मंजूश्री गर्ग

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Saturday, November 7, 2015

दीये झिलमिलाये दीवाली की रात
मानों धरा पे आये गगन से तारे।
           डॉ0 मंजूश्री गर्ग



श्रम से भरें
जीवन सरोवर
खिलें कमल।
      डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Thursday, November 5, 2015

दीवाली

तोरण सजे
देहरी सजी
सजी दीवाली
घर-आँगन
छाया उजाला
घुली मिठास
बतासे सी
मन में छूटें
फुलझड़ियाँ
खिले अनार
खुशियों के।
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     डॉ0 मंंजूश्री गर्ग

Wednesday, November 4, 2015

काँटों भरी डाल खुश,
           फूलों के साथ।

अँधेरी रात खुश,
         तारों के साथ।

सूनी पहाड़ी खुश,
         निर्झर के साथ।

भीगी जिंदगी खुश,
           अपनों के साथ।

                    डॉ0मंजूश्री गर्ग

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Sunday, November 1, 2015

इंसानियत की धरा में
      प्यार के बीज बो दो।
आज नहीं तो कल
       मानवता के फूल खिलेंगे।
        
               डॉ0 मंजूश्री गर्ग
मस्त गगन में उड़ता पंछी
मत पिंजरे में कैद करो
जीते  जी  मर  जायेगा
'गर पिंजरे में कैद हुआ.

                  डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Wednesday, October 28, 2015

न जाने---------
    डॉ0 मंजूश्री गर्ग


शब्द ना होते, भाव ना होते
ना जाने साहित्य कैसा होता.

फूल ना होते, रंग ना होते
ना जाने उपवन  कैसा होता.

सुर ना होते, वाद्य ना होते
ना जाने संगीत कैसा होता.

तुम ना होते, मुस्कान ना होती
ना जाने जीवन कैसा होता.

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Thursday, October 15, 2015

विजय-पर्व

डॉ0 मंजूश्री गर्ग


विजय-पर्व है
मनाओ दशहरा
जलाओ रावण.
पर पहले
अपने मन की
(ईर्ष्या, द्वेष,
कुंठा, भय,
लोभ, मोह,
अहम्, क्रोध,)
बुराईयों को 
जलाओ, फिर
जलाओ रावण।

और पहले
समाज में 
सिर उठाये
पनपती कुरीतियों
(अपहरण, हत्या,
भ्रष्टाचार, घूसखोरी,)
को भस्म करो, फिर
जलाओ रावण।

विजय-पर्व है
मनाओ धूमधाम से
पर पहले विजयी
स्वयं बनो, फिर
जलाओ रावण।

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Wednesday, October 7, 2015

हाइकु

      डॉ0 मंजूश्री गर्ग

दीनता छाये
लेने बढ़े जो हाथ
मुख मंडल।

प्रभुता छाये
देने बढ़े जो हाथ
मुख मंडल।

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Saturday, October 3, 2015

फल देने को वृक्ष झुके, जल देने को बादल।
तुम क्यों तने खड़े, हुये जो देने लायक।।
        डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Friday, October 2, 2015

उम्र भर
लिखते रहे
जिंदगी का
चिट्ठा
लगवाने
मृत्यु का
अँगूठा
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डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Wednesday, September 30, 2015

हाइकु
      डॉ0 मंजूश्री गर्ग

दर्पण जैसे
आईना बनो तुम
रूप निहारूँ।

दिखेगा तुम्हें
अक्स अपना ही
मेरी आँखों में।
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Monday, September 28, 2015

जीवन की चार अवस्थायें
हाइकु


       डॉ0 मंजूश्री गर्ग

उम्र बारह
छूटता बचपन
आता कौमार्य

उम्र बीस में
जोश, उमंग पूरा
आयी जवानी.

उम्र चालीस
उतरती जवानी
आता बुढ़ापा.

उम्र अस्सी
लाठी टेक जिन्दगी
परबस सी.
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Monday, September 21, 2015

राधा रानी के जन्म-दिन पर हार्दिक शुभकामनायें
 
 
शुक्ल पक्ष
भादों मास अष्टमी
राधा जन्मी.
 
 
यमुना तीरे
कदंब तरू तले
बाजे बाँसुरी
 
            डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Wednesday, September 16, 2015

श्री गणेश जन्म-उत्सव की हार्दिक शुभकामनायें

शुक्ल पक्ष
भादों मास चतुर्थी
गणेश जन्मे.

मोदक प्रिय
मोद से भरें सदा
घर-आँगन.

         डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Monday, September 14, 2015

हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें-
14 सितम्बर, 1949 को भारत के संविधान में अनुच्छेद-343 के अनुसार हिंदी को भारत संघ की राजभाषा के रुप में मान्यता दी गयी है. हिंदी-उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली की राजभाषा है और अण्डमान निकोबार, पंजाब, गुजरात और महाराष्ट्र राज्य में हिंदी को द्वितीय भाषा के रुप में स्वीकार किया गया है.

Tuesday, September 8, 2015



रानी पद्मिनी
                    डॉ0 मंजूश्री गर्ग
रानी पद्मिनी सिंघल द्वीप(श्रीलंका) की राजकुमारी व चित्तौड़ के राजा रतनसेन की पत्नी थी. रानी पद्मिनी अत्यंत सुंदर,     वीर व बुद्धिमान थी. दूर-दूर तक राना पद्मिनी के रूप-गुण की चर्चायें हुआ करती थीं. जब आक्रमणकारी अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी के बारे में सुना, तो उसके मन में रानी पद्मिनी से मिलने की तीव्र अभिलाषा जाग्रत हुई, उसने राजा रतनसेन के पास प्रस्ताव रखा कि वह आपको भाई मानता है और एक  बार रानी पद्मिनी से मिलना चाहता है. जब राजा रतनसेन ने अलाउद्दीन खिलजी का प्रस्ताव रानी पद्मिनी से कहा तो वह सुल्तान  अलाउद्दीन खिलजी की कुटिल चाल समझ गयी. उसने कहा, “अलाउद्दीन खिलजी केवल मेरा प्रतिबिम्ब शीशे में देख सकता है.”
     अलाउद्दीन खिलजी अपने सीमित सैनिकों के साथ चित्तौड़ गया और वहाँ रानी पद्मिनी के अपूर्व सौंदर्य को आईने में देखकर ही इतना मोहित हो गया कि उसको पाने के लिये बेचैन हो गया. धोखे से राजा रतनसेन को बंदी बनाकर अपने खेमे(कैम्प) में ले आया और रानी पद्मिनी को संदेश भिजवाया कि यदि अपने पति राजा रतनसेन को जीवित देखना चाहती हो तो स्वंय खेमे में आकर अपने आप को समर्पित करें. पद्मिनी ने बुद्दिमानी से काम लेते हुये दूसरे दिन एक सौ पचास पालकियाँ तैय्यार कराई. उनमें अपनी सखी व नौकरानियों की जगह नारी वेश में चित्तौड़ के जाबांज सिपाहियों को लेकर अलाउद्दीन खिलजी के खेमे में गयीं और राजा रतनसेन को आजाद कराकर चित्तौड़ वापस आ गयी.

1.


तब अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ के किले पर सीधे आक्रमण बोल दिया. राजा रतनसेन अपने सिपाहियों के साथ किले के अंदर से ही वीरता के साथ अलाउद्दीन खिलजी और उसकी सेना का सामना करते रहे. धीरे-धीरे चित्तौड़ की सेना कम होती जा रही थी. दूसरे अलाउद्दीन खिलजी ने वह मार्ग भी बंद कर दिया था जिससे रसद किले में पहुँचाई जा रही थी. किले के अंदर का सामान धीरे-धीरे कम होता गया. तब राजा रतनसेन और उसकी सेना ने केसरिया पगड़ी बाँध कर, किले के द्वार खोलकर सीधे अलाउद्दीन खिलजी की सेना से युद्ध किया और किले के अंदर रानी पद्मिनी के साथ सभी नारियों ने संपूर्ण श्रंगार कर सामूहिक रूप से अग्नि प्रज्वलित कर अपने आपको अग्नि में समर्पित कर जौहरकिया. जब चित्तौड़ की सेना पर विजय प्राप्त कर अलाउद्दीन खिलजी व उसकी सेना ने किले में प्रवेश किया तो उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ. मानों जीत के भी हार गये हों.

Friday, September 4, 2015

कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें

कृष्ण-पक्ष
भादों मास अष्टमी
कृष्ण जन्मे.

राधा ही नहीं
रुप, रस, माधुरी
कान्हा के साथ.

          डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Thursday, August 27, 2015

वृक्ष की व्यथा

किसलिये? किसके लिये जी रहे हैं हम?
ताप, शीत, झंझायें  सह  रहे  हैं  हम.
विष  पीकर  अमृत  दे  रहे  हैं  हम.
फिर  भी  चोटें  सह  रहे  हैं  हम.



                                      डॉ0 मंजूश्री गर्ग



Saturday, August 22, 2015

हाइकु


पर काट के
उड़ने को कहते
और क्या कहें!

तीर से चुभे
व्यंग्य तुम्हारे
जब भी मिले.

                                         डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Thursday, August 20, 2015

कौन रोकेगा
सूरज की चमक
औ' कब तक

                                      डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Sunday, August 16, 2015

सावन-गीत


राजा दिल्ली को जाना  जी
कि वहाँ से लाना धनुषपुरी.

रानी हम नहीं जाने जी
कि कैसी तेरी धनुषपुरी
राजा ऊदो-ऊदो डंडिया जी
किनारी चारों ओर लगी.

राजा दिल्ली को जाना जी
कि वहाँ से लाना धनुषपुरी

रानी हम कैसे देखें जी
कि कैसी लागे धनुषपुरी
राजा 'तीजों' को आना जी 
कि वहीं देखो धनुषपुरी

राजा दिल्ली को जाना जी
कि वहाँ से लाना धनुषपुरी

रानी पहन के निकलीं जी
कि अँगना में फिसल पड़ी.
हम नहीं जाने जी 
कि रानी तेरी चाल बुरी
हम नहीं जाने जी
कि राजा तेरी नज़र बुरी.
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Friday, August 14, 2015

बाबूजी की पुण्य-तिथि पर
15 अगस्त, 2015

तुम हो सूरज
तुम से ही
सब दीप जले
तुम से ही दमके
माँ चंदा सी.

                          डॉ0 मंजूश्री गर्ग
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं

लाल किले पे
लहराये तिरंगा
शान हमारी.
 
                                          डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Sunday, August 9, 2015

टूटने लगीं, रिश्तों की कड़ियाँ,
मन की गाँठें, सुलझती ही नहीं.

                                               डॉ0 मंजूश्री गर्ग






लकीरें नहीं
अनुभव-आखर
लिखे माथे पे.
--------डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Thursday, August 6, 2015

गरल पी कर जो मुस्काये,
वही तो शिव कहलाये.
     -डॉ0 मंजूश्री गर्ग


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'कौर' भी स्वर्ण!
अभिशाप बना है
वरदान पा.

    -डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Friday, July 31, 2015

सुबह का करें स्वागत
सूरज की किरणों से.
करें श्रृंगार कुसुमों से
औ' वंदन कलरव से.

     डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Wednesday, July 29, 2015

टूटे नीड़
भीगे पंख
गुमसुम पक्षी
कैसी बारिश?

         डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Sunday, July 26, 2015

चंदन हम
काटोगे तो भी हम
देंगे सुगंध.

डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Thursday, July 23, 2015

कविता बिना भाव
व्यंग्य बिना धार
गीत बिना लय
शोभा नहीं देते.

    डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Wednesday, July 22, 2015

कुछ तो तैरेंगी
कागजी नावें!
चाहतें बच्चों ने
उतारीं पानी पे.
 
 डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Sunday, July 19, 2015

शब्द
प्रकृति के कण-कण में लय है, ध्वनि है. पत्ते भी हिलते हैं तो सरगम सी बजती है, नदी का जल कल-कल की ध्वनि करता है, झरनों का जल झर-झर कर बहता है. हर पशु-पक्षी की अपनी बोली है. इन्हीं ध्वनियों के अनुकरण से कुछ शब्द निर्मित होते हैं, जो ध्वनि अनुकरण से निर्मित शब्द कहलाते हैं.

                                                                                                                      डॉ0 मंजूश्री गर्ग
 

Saturday, July 18, 2015

हर रिश्ते को थोड़ी परवरिश चाहिये
थोड़ी     धूप, थोड़ी   छाँव   चाहिये.
स्नेह का जल, प्यार के छींटे  चाहिये
अपनेपन  की  थोड़ी  हवा  चाहिये.
    --------------  डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Monday, July 13, 2015

डायनासोर
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
'डायनासोर' से
कंक्रीट के जंगल
धीरे-धीरे खाने लगे
नदी से रेत
पर्वत से पत्थर
वन से लकड़ी
खानों से लोहा.
धीरे-धीरे धरती पे
बढ़ने लगा
प्रकृति का कोप
आने लगीं बाढ़े
होने लगे झंझावात.
भूकंप, सुनामी
रोज की सी बातें.
 
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Sunday, July 12, 2015



'मैं' ही 'बूँद' में,
'मैं' ही 'समुद्र' में,
'मैं' ही जल में 'तरंग',
'मै' ही हवा में 'खुशबू',
'मैं' ही धरा पे 'जीवन',
'मैं' ही व्योम में 'शब्द',
'मैं' ही अग्नि में 'ऊर्जा',
'मैं' ही रखता 'नाना रूप'
'मैं' ही 'यत्र तत्र सर्वत्र'.
            डॉ0 मंजूश्री गर्ग
 
 
'मै' ईश्वर के लिये प्रयुक्त हुआ है.


Wednesday, July 8, 2015

भाषा

भाषा
भाषा की सबसे छोटी इकाई 'अक्षर' है, लेकिन बिना किसी स्वर या व्यंजन के अक्षर किसी भाव को अभिव्यक्त करने में असमर्थ है.अक्षर या अक्षरों में स्वर या व्यंजन मिलकर 'शब्द' का निर्माण करते हैं. प्रत्येक शब्द का एक या एक से अधिक सार्थक अर्थ होता है. सार्थक शब्दों का समूह जब वाक्य में प्रयुक्त होता है तो किसी सार्थक भाव की अभिव्यक्ति करता है. प्रत्येक भाषा का अपना व्याकरण होता है, उसी के अनुसार उस भाषा का वाक्य विन्यास होता है. जैसे----हिंदी भाषा में क्रिया वाक्य के अंत में आती है जबकि अंग्रेजी भाषा में क्रिया वाक्य के बीच में आती है.
जब कोई शब्द वाक्य में प्रयुक्त होने के योग्य हो जाता है, तो 'पद' कहलाता है. पद एक शब्द का भी हो सकता है और एक से अधिक शब्दों का भी.

Monday, July 6, 2015

भाषा

भाषा हमारे विचारों की संवाहिका है. जहाँ भाषा का मौखिक रूप हमारे विचारों का श्रोता पर तात्कालिक प्रभाव डालता है, वहीं भाषा का लिखित रूप हमारे विचारों को देशकाल की सीमाओं से अलग कर सार्वदेशिक, सार्वभौमिक, सार्वकालिक बनाते हैं.
                    डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Sunday, July 5, 2015

शिल्पी हैं वो
पत्थर बने मूर्ति
हाथ आते ही.
----डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Tuesday, June 30, 2015

वृत्त बनातीं
पानी में पानी से ही
पानी की बूँदें.

--डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Friday, June 26, 2015


बनते वृत्त
केंद्र में हम ही हैं
पाते चुभन.
-----------मंजू गर्ग

केंद्र में व्यक्ति ही रहता है और वृत्त बनते जाते हैं, परिवार, समाज, देश, विश्व के. इन्हें बंधन कहें या सुरक्षा 
कवच. इन्हीं से अस्तित्व है अपना और यही देते हैं चुभन.

Wednesday, June 17, 2015

भीगी यादें

(डॉ0 मंजू गर्ग)

सावन की
भीगी यादें
भीगा मन
भीगा तन
भीगे हम
भीगे तुम
और भीगा
जहाँ सारा.
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Tuesday, June 9, 2015

26 दिसम्बर, 2004

(डॉ0 मंजू गर्ग)

26 दिसम्बर, 2004
पलभर का पृथ्वी का हिलना
औ' ताश के पत्तों की तरह
सुमात्रा का बहना
देखते ही देखते
सुनामी का तांडव
छः देशों के तट पर
ढाता  रहा कहर.

दक्षिण एशिया का नक्शा ही
विश्व के मानचित्र में बदल गया.
यह शहरों या गावों का नहीं
द्वीपों की तबाही का दिन था
तटीय जिंदगी की नीरवता का दिन था.

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Sunday, June 7, 2015

पृथ्वीराज की कलम से

(डॉ0 मंजू गर्ग)

बैर बीज बो दिये परिवारों के बीच
नाना ने देकर सिंहासन दिल्ली का.
क्यों जयचंद देशद्रोही बनते, 'गर
मिलता उन्हें राजपद दिल्ली का.
क्यों आक्र्मणकारियों का वो साथ देते.
हर संभव प्रयास वो करते दिल्ली की रक्षा का
और मैं भी सहर्ष साथ देता उनका.
संयोगिता भी सहज प्राप्त होती मुझे
अजमेर ही बहुत था हम दोनों के लिये.
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Thursday, May 14, 2015

ramramji

हाइकु
डॊ0 मंजू गर्ग


मैं,तुम और
मीठी सी मुस्कान
दोनों के बीच.


सारा बदन
गुलाब सा महका
तुम से मिल.

महके घर 
धूप, चंदन सम
तेरे आने से.

तेरे ध्यान में
या गुम अपने में
मालूम नहीं.

हिना बिना ही
रच गयी हथेली
तेरे प्यार में.

श्रम से भरे
जीवन सरोवर
खिलें कमल.

सोना, मानुष
जितना तपता है
खरा होता है.

बिदूषक ही
पर्दे के पीछे रो के 
हँसा जायेगा.

जलता दिया
मिट्टी का या सोने का
एक समान.

देव,मानव
अपनी सीमाओं में
बँधे दोनों ही.