Thursday, November 30, 2017


पतंग



धरती से उड़ चली पतंग
आकाश को छूने चली पतंग.
इतराई, मंडराई, भूली
धरती से है गहरा नाता.
डोर कटी तो पट से
धरती पर आन गिरी।

                      डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Tuesday, November 28, 2017


पहचान

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

फूलों के खिलने से पेड़ों की पहचान होती है निराली
अम्बर में तने लाल वितान तो होता है गुलमोहर.

पीले पुष्प गुच्छ झूमें तो होता है अमलतास.
रात को महकाये वात तो कहलाये रजनीगंधा.

झरें फूल झर-झर और बिछे चाँदनी चादर
महकाये शरद की रात तो होता है हारसिंगार.

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Monday, November 27, 2017


जीवन खिले तो खिले ऐसे जैसे खिले डाल पर फूल,
उपवन को सजाये और पवन को महकाये।
यश फैले तो फैले ऐसे जैसे फैलें प्रातः की किरणें
अंधकार को दूर करें और उजियारा फैलायें।

                                डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Saturday, November 25, 2017


ऐसा क्यों?

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

एक साधु के दो शिष्य थे. एक शिष्य का नाम सदानन्द था और दूसरे शिष्य का नाम विपुल था. सदानन्द सदाचारी व्यक्ति था, हमेशा दूसरों की सेवा करना, सदा सच बोलना, उसके दिन-प्रतिदिन के आचरण में शामिल था. विपुल का आचरण साधु के लाख समझाने पर भी नहीं सुधरा, उसे हमेशा दूसरों को सताने में, चोरी करने में ही आनन्द आता था. एक दिन सुबह दोनों शिष्य साधु का अभिवादन कर अपने-अपने कर्म के लिये कुटिया से बाहर निकले, लेकिन थोड़ी देर बाद दोनों शिष्य कुटिया में वापस आ गये. सदानन्द का चेहरा उदास था, क्योंकि पैर में काँटा चुभ जाने के कारण पीड़ा हो रही थी. जबकि विपुल खुश था, कयोंकि उसके हाथ बिना परिश्रम के ही गिन्नी से भरी थैली हाथ लग गयी थी. विपुल के हाथ में गिन्नी की थैली देखकर सदानन्द को पीड़ा के साथ-साथ क्रोध भी आ गया और उससे नहीं रहा गया. सदानन्द ने साधु से पूछा कि  साधु जी मेरे आचरण आपके बताये अनुसार सद्कर्मों की ओर हैं जबकि विपुल के आचरण आपके लाख समझाने पर भी दुष्कर्मों की ओर हैं. फिर भी आज सुबह-सबह मेरे पाँव में काँटा चुभ गया और विपुल को गिन्नी सो भरी थैली मिली, ऐसा क्यों?

साधु ने शान्त मन से अपने दोनों शिष्यों को अपने पास बैठने के लिये कहा और स्वयं ने अपनी दिव्य दृष्टि से दोनों शिष्यों के भाग्य को जाना. तब साधु ने कहा, सदानन्द तुम्हारे भाग्य फल के अनुसार आज के दिन तुम्हें फाँसी होनी थी किन्तु तुम्हारे सद्कर्मों के फल से केवल तुम्हारे पाँव में काँटा चुभा है और विपुल को उसके भाग्य फल के अनुसार आज के दिन राज सिंहासन प्राप्त होना था किन्तु उसके दुष्कर्मों के फल से केवल गिन्नी से भरी थैली ही मिली है.
















Tuesday, November 21, 2017



दायरे

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

खिड़की से देखोगे तो
आकाश हो या हो
सागर, छोटा ही लगेगा.
देखना है अगर तुम्हें
आकाश-सा विस्तार.
संकुचित दायरों से
बाहर आ के देखो.

Sunday, November 19, 2017



दावते-श्रीराज

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

गाँव में दो दोस्त थे रमेश और दिनेश. रमेश पढ़-लिख कर शहर में नौकरी करने चला गया और दिनेश गाँव में खेती का काम देखने लगा. कुछ समय पश्चात् दिनेश को अपने दोस्त की बहुत याद आयी और वह रमेश से मिलने शहर चला गया. रमेश अपने पुराने दोस्त से मिलकर बहुत खुश हुआ. रमेश अपने दोस्त के आदर-सत्कार के लिये बाजार से स्वादिष्ट खाना व मिठाई लेकर आया. दिनेश को खाना बहुत अच्छा लगा, लेकिन उसे इस तरह रमेश का बाजार से खाना लाना अच्छा नहीं लगा जबकि रमेश को घर पर भी खाना बनाना आता था. रमेश के पूछने पर दिनेश ने खाने के विषय में कहा दावत बहुत अच्छी रही लेकिन दावते- श्रीराज की बात ही कुछ और है. दूसरे दिन रमेश अपने दोस्त के लिये और मँहगा खाना व मिठाई लेकर आया उसने सोचा कि आज मेरा दोस्त खाना खाकर अवश्य खुश होगा. दिनेश को अपने दोस्त का इस तरह पैसा खर्च करना अच्छा नहीं लगा और खाना खाकर फिर उसने वही उत्तर दिया कि दावते-श्रीराज की बात ही कुछ और है. दिनेश का उत्तर सुनकर रमेश को निराशा हुई. दिनेश ने भी सोचा कि यदि वह कुछ और दिन शहर में रूकेगा तो उसके दोस्त पर इस तरह खर्च का बहुत बोझ बढ़ जायेगा और महीने का वेतन कुछ ही दिनों में खर्च हो जायेगा. दिनेश अपने दोस्त को गाँव आने की दावत देकर वापस अपने घर आ गया.
  
कुछ समय पश्चात् रमेश अपने दोस्त से मिलने गाँव गया. दिनेश अपने दोस्त को देखकर बहुत खुश हुआ, उसने बड़े प्रेम से अपने दोस्त के लिये सरसों का साग और मक्के की रोटी बनायी. रमेश को खाना बहुत स्वादिष्ट लगा लेकिन वो तो मन में दावते-श्रीराज की चाह लेकर आया था. दूसरे दिन भी दिनेश ने अपने हाथ से साधारण खाना बनाया, खाना खाते हुये दिनेश ने अपने दोस्त से पूछा कि खाना कैसा लगा. रमेश ने संकोच करते हुये कहा कि खाना तो अच्छा है लेकिन तुम वो दावते-श्रीराज की बात कर रहे थे किसी दिन वो बनाओ ना. रमेश की बात सुनकर दिनेश मुस्कुराया और उसने कहा अरे भाई! यही तो दावते-श्रीराज है जब तक तुम्हारा जी चाहे यहाँ रहो तुम्हारे आदर-सत्कार में कोई कमा नहीं आयेगी.










Monday, November 13, 2017


ठोकर नहीं कहती कि रोक दो बढ़ते कदम,
कहती है बढ़ते रहो आगे सँभल-सँभल कर।

                                 डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Sunday, November 12, 2017



कमल-पुष्प


डॉ0 मंजूश्री गर्ग

कमल हमारा राष्ट्रीय पुष्प है. कमल का फूल देखने में मनमोहक व अधिकांशतः गुलाबी रंग का अति सुन्दर फूल होता है. हिन्दी साहित्य में प्रारम्भिक काल से कवि नायक या नायिका के सुन्दर नयनों की, अधरों की, करों की, पदों की उपमा कमल से देते रहे हैं. भक्तिकाल के कवि सूर और तुलसी ने भी अपने-अपने आराध्य देव कृष्ण और राम के रूप का वर्णन करते समय कमल की उपमा का प्रयोग किया है.

उत्तर प्रदेश में काशीपुर में द्रोणासागर नामक स्थान पर ग्रीष्म काल में कमल-सरोवर का सौन्दर्य देखते ही बनता है, जब द्रोणासागर में कमल के फूल अपने पूर्ण यौवन के साथ खिले होते हैं. इस समय मन्दिरों में भगवान की मूर्तियों पर प्रायः कमल के फूल ही चढ़े हुये देखने को मिलते हैं.

कमल के फूल सुन्दर होने के साथ-साथ बहुपयोगी भी होते हैं. कमल के फूलों के तने जहाँ कमल ककड़ी के नाम से जाने जाते हैं वहीं कमल के फल भी खाने में स्वादिष्ट होते हैं. फलों के अन्दर के बीज कमल गट्टे कहलाते हैं जो पककर काले और भूरे रंग के हो जाते हैं. एक तरफ कमल गट्टे भगवान शिव की पूजा करते समय शिव-लिंग पर चढ़ाये जाते हैं तो दूसरी तरफ कमल गट्टों से ही मखाने बनाये जाते हैं.

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Saturday, November 11, 2017

हाइकु

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

नये-पुराने
रिश्ते तोड़कर
तेरे साथ मैं.


तुम मुस्काओ
मुरझाये फूल भी
खिल उठेंगे.

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Friday, November 10, 2017


हाइकु

डॉ0 मंजूश्री गर्ग 

दिल की बात
समझे साजन जी
बिन कहे ही.


अटूट बँधे
मन के फेरे लिए
हम दोनों ने.

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Thursday, November 9, 2017



हाइकु

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

तुमसे मिल
खनकती आवाज
बिन कंगन.


अरमानों को
पंख लगे हैं आज
तुमसे मिल.

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Tuesday, November 7, 2017


हाइकु

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

सब कह दे
चेहरा है आईना
लाख छुपायें.


ख्बाब सजे
नींद की टहनी पे
जागे तो टूटे.

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Monday, November 6, 2017

हाइकु

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

चंद्र-कलायें
एक रात में देखी
घूँघट उठा.


चाँद हमारा
घूँघट में चमका
खिली चाँदनी.

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Saturday, November 4, 2017


हाइकु

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

तुम आईं तो
खिला गुलाब अभी
मेरी साँसों में.

चंद्र-मुख
सीपी में मोती सम
देखा है मैंने.

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Thursday, November 2, 2017

कौन कहता है...............

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

कौन कहता है
दीपक सिर्फ
प्रकाश देता है,
कालिख भी 
देता है.
लेकिन
हमें चाह सिर्फ
रोशनी की होती है
और दीपक हम
इसीलिये जलाते हैं.

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Wednesday, November 1, 2017



हाइकु

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

वेदों की रक्षा
मत्स्य-रूप रख
प्रभु ने की थी.

अखंड पाठ
रामचरित गान
आनंदमय.

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