Monday, March 30, 2020
Monday, March 23, 2020
Thursday, March 19, 2020
Wednesday, March 11, 2020
जब तक कवि और लेखक किसी और
व्यक्ति के अधिकारों में हस्तक्षेप किये बिना, बिना किसी अन्य व्यक्ति के दबाब में
आये हुये लिखता है तब तक उसकी कलम स्वाधीन होती है और कवि और लेखक के लिये उससे
बड़ा सुख कोई नहीं होता. इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में
की है-
राजा बैठे सिंहासन
पर, यह ताजों पर आसीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन
कलम
जिसने तलवार शिवा को
दी
पतवार थमा दी लहरों
को
खंजर की धार हवा को
दी
अग-जग के उसी विधाता
ने, कर दी मेरे आधीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन
कलम।
गोपाल सिंह नेपाली
Friday, March 6, 2020
भवानी प्रसाद मिश्र
डॉ. मंजूश्री गर्ग
जन्म-तिथि- 29 मार्च, सन् 1913 ई.
पुण्य-तिथि- 20 फरवरी, सन् 1985 ई.
भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म
टिगरिया गाँव होशंगाबाद(मध्य प्रदेश) में हुआ था. आपने हिन्दी, संस्कृत और
अंग्रेजी विषय लेकर बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी. आप गाँधीवादी विचारों से
प्रेरित थे और गाँधीवादी विचारों की शिक्षा देने के उद्देश्य से आपने एक स्कूल
खोला जहाँ आपको सन् 1942 ई. में गिरफ्तार किया गया. आप सन् 1949 ई. में जेल से
रिहा हुये.
भवानी प्रसाद मिश्र ने सन्
1930 ई. से कवितायें लिखनी शुरू कर दी थीं. हिन्दू पंच, कर्मवीर, हंस में
आपकी कवितायें प्रकाशित होती रहीं. अज्ञेय जी द्वारा सम्पादित दूसरे सप्तक के सात
कवियों में से एक आप थे. आपने सिनेमा के लिये संवाद लिखे व मद्रास एबीएम में संवाद
निर्देशन भी किया.
भवानी प्रसाद मिश्र की कवितायें बहुत ही सरल और
सादगी भरी हैं. आपने कविता को ही अपना धर्म माना जैसे कि प्रस्तुत कविता में कहते
भी हैं-
मैं जो हूँ
मुझे वही रहना चाहिये
मुझे अपना
होना
ठीक ठीक सहना चाहिये
तपना चाहिये
अगर लोहा हूँ
तो हल बनने के लिये
बीज हूँ
गड़ना चाहिये
फल बनने के लिये
मैं जो हूँ
मुझे वही बनना चाहिये
धारा हूँ अन्तःसलिला
तो मुझे कुएं के रूप में
खनना चाहिये
ठीक जरूरत मंद हाथों में.
भवानी प्रसाद मिश्र
भवानी प्रसाद मिश्र ने नयी कविता पर लगे
आक्षेपों(पीड़ा, वेदना, शोक, निराशा, कुंठा) को निरस्त करते हुये आशा, विश्वास और
आस्था से पूरित कवितायें लिखीं. आपात काल में आप सुबह, दोपहर, शाम नियमित रूप से
कवितायें लिखते थे जो त्रिकाल संध्या के नाम से प्रकाशित हुईं. सन् 1972 ई.
में बुनी हुई रस्सी(काव्य-संग्रह) के लिये आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार
मिला. उत्तर प्रदेश का हिन्दी संस्थान सम्मान व मध्य प्रदेश का शिखर सम्मान भी
आपको मिला. आपके अन्य कविता संग्रह हैं- गीत फरोश, चकित है दुख, गाँधी पंचशती,
खुशबू के शिलालेख, फसलें और फूल, मानसरोवर, दिन, संप्रति, नीली रेखा तक, अनाम तुम
आते हो, अँधेरी कवितायें.
आपके द्वारा लिखी बाल
कवितायें तुकों के खेल में संग्रहित हैं. जिन्होंने मुझे रचा में
संस्मरण और कुछ नीति कुछ राजनीति में निबंध संग्रहित हैं.
धरती का पहला प्रेमी नामक कविता में भवानी
प्रसाद मिश्र ने सच्चे प्रेमी के विषय में कहा है-
प्रेमी के मन में
प्रेमिका से अलग एक लगन
होती है
एक बैचेनी होती है
एक अगन होती है
सूरज जैसी लगन और अगन
धरती के प्रति
और किसी में नहीं है।
रोज चला आता है
पहाड़ पार करके
उसके द्वारे
और रूका रहता है
दस-दस बारह-बारह घंटों
मगर वह लौटा देती है उसे
शाम तक शायद लाज के मारे.
और चला जाता है सूरज
चुपचाप
टाँक कर उसकी चुनरी में
अनगिनत तारे
इतनी सारी उपेक्षा के
बाबजूद।
Wednesday, March 4, 2020
सम्बन्धों के मोती
जीवन के धागे में पिरे
सम्बन्धों के मोती
देते हैं आभा
प्रेम की, अनुराग की
मान की, सम्मान की।
कभी जो पड़ी गाँठ
जीवन की सहजता
रहती है जाती
वाद में, प्रतिवाद में
टूट जाती हैं गाँठ
औ’ बिखर जाते हैं मोती।
कभी समय बीतते
धीरे-धीरे
होती है सहज गाँठ भी
और बनी रहती है आभा
सम्बन्धों के मोती की।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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