Monday, March 30, 2020



सफेद मोर
संगमरमर सा
नाचते देखा।

                        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, March 27, 2020


चौरासी घंटे
मुस्काती मूरत
भवन सजे।

                                डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, March 23, 2020



विश्व-बन्धुत्व की कामना मन में लेकर,
जी रहे हैं आज अकेले-अकेले।
हराकर कोरोना वायरस सब मिल,
मनायेंगे उत्सव सभी जन मिलकर।

                      डॉ. मंजूश्री गर्ग



Saturday, March 21, 2020



हर पड़ाव
देते हमें विश्राम
राह में बने।

                                  डॉ. मंजूश्री गर्ग


Thursday, March 19, 2020



समसामयिक शेअर-

            कोरोना वायरस पर आमजन की पीड़ा को अभिव्यक्त करता हुआ प्रस्तुत शेअर-


वक्त के साथ 'सदा' बदले तअल्लुक कितने
तब गलेे मिलते थे अब हाथ मिलाया न गया।

                                                   सदा अम्बालवी

Tuesday, March 17, 2020



'प्रिज्म' हो तुम
इन्द्रधनुषी रंग
बिखेरती हो।

                                 डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, March 16, 2020



नया संघर्ष
नई ऊँचाई पे ही
जन्म है लेता।

                       डॉ. मंजूश्री गर्ग

Saturday, March 14, 2020



बसन्त ऋतु
पीली-पीली सरसों
मनभावन।

                           डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, March 13, 2020



साँझ ने दिये
तुम, चाँद, तारे औ'
पल सुहाने।

                         डॉ. मंजूश्री गर्ग


Thursday, March 12, 2020



फासला बस
पग भर, मिलेगी
हार या जीत।

                                  डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, March 11, 2020




जब तक कवि और लेखक किसी और व्यक्ति के अधिकारों में हस्तक्षेप किये बिना, बिना किसी अन्य व्यक्ति के दबाब में आये हुये लिखता है तब तक उसकी कलम स्वाधीन होती है और कवि और लेखक के लिये उससे बड़ा सुख कोई नहीं होता. इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में की है-
राजा बैठे सिंहासन पर, यह ताजों पर आसीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम
जिसने तलवार शिवा को दी
पतवार थमा दी लहरों को
खंजर की धार हवा को दी
अग-जग के उसी विधाता ने, कर दी मेरे आधीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम।
              गोपाल सिंह नेपाली



संवेदनायें
ललित कलाओं की
हैं जन्मदात्री।

                                   डॉ. मंजूश्री गर्ग


Monday, March 9, 2020

10 मार्च, 2020 होली के रंगमय पर्व पर
हार्दिक शुभकामनायें



ढ़ोल की थाप पे,
भाँग के नशे में,
झूमें सभी मिल,
होली के रंग में।

              डॉ. मंजूश्री





10 मार्च 2020, हिन्दू नव वर्ष विक्रमी संवत् 2077 की हार्दिक शुभकामनायें


Friday, March 6, 2020




भवानी प्रसाद मिश्र

डॉ. मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 29 मार्च, सन् 1913 ई.
पुण्य-तिथि- 20 फरवरी, सन् 1985 ई.

भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म टिगरिया गाँव होशंगाबाद(मध्य प्रदेश) में हुआ था. आपने हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी विषय लेकर बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी. आप गाँधीवादी विचारों से प्रेरित थे और गाँधीवादी विचारों की शिक्षा देने के उद्देश्य से आपने एक स्कूल खोला जहाँ आपको सन् 1942 ई. में गिरफ्तार किया गया. आप सन् 1949 ई. में जेल से रिहा हुये.

भवानी प्रसाद मिश्र ने सन् 1930 ई. से कवितायें लिखनी शुरू कर दी थीं. हिन्दू पंच, कर्मवीर, हंस में आपकी कवितायें प्रकाशित होती रहीं. अज्ञेय जी द्वारा सम्पादित दूसरे सप्तक के सात कवियों में से एक आप थे. आपने सिनेमा के लिये संवाद लिखे व मद्रास एबीएम में संवाद निर्देशन भी किया.

 भवानी प्रसाद मिश्र की कवितायें बहुत ही सरल और सादगी भरी हैं. आपने कविता को ही अपना धर्म माना जैसे कि प्रस्तुत कविता में कहते भी हैं-

मैं जो हूँ
मुझे वही रहना चाहिये
मुझे अपना
होना
ठीक ठीक सहना चाहिये
तपना चाहिये

अगर लोहा हूँ
तो हल बनने के लिये
बीज हूँ
गड़ना चाहिये
फल बनने के लिये

मैं जो हूँ
मुझे वही बनना चाहिये

धारा हूँ अन्तःसलिला
तो मुझे कुएं के रूप में
खनना चाहिये
ठीक जरूरत मंद हाथों में.

           भवानी प्रसाद मिश्र

   भवानी प्रसाद मिश्र ने नयी कविता पर लगे आक्षेपों(पीड़ा, वेदना, शोक, निराशा, कुंठा) को निरस्त करते हुये आशा, विश्वास और आस्था से पूरित कवितायें लिखीं. आपात काल में आप सुबह, दोपहर, शाम नियमित रूप से कवितायें लिखते थे जो त्रिकाल संध्या के नाम से प्रकाशित हुईं. सन् 1972 ई. में बुनी हुई रस्सी(काव्य-संग्रह) के लिये आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला. उत्तर प्रदेश का हिन्दी संस्थान सम्मान व मध्य प्रदेश का शिखर सम्मान भी आपको मिला. आपके अन्य कविता संग्रह हैं- गीत फरोश, चकित है दुख, गाँधी पंचशती, खुशबू के शिलालेख, फसलें और फूल, मानसरोवर, दिन, संप्रति, नीली रेखा तक, अनाम तुम आते हो, अँधेरी कवितायें.
आपके द्वारा लिखी बाल कवितायें तुकों के खेल में संग्रहित हैं. जिन्होंने मुझे रचा में संस्मरण और कुछ नीति कुछ राजनीति में निबंध संग्रहित हैं.

धरती का पहला प्रेमी नामक कविता में भवानी प्रसाद मिश्र ने सच्चे प्रेमी के विषय में कहा है-

प्रेमी के मन में
प्रेमिका से अलग एक लगन होती है
एक बैचेनी होती है
एक अगन होती है
सूरज जैसी लगन और अगन
धरती के प्रति
और किसी में नहीं है।

रोज चला आता है
पहाड़ पार करके
उसके द्वारे
और रूका रहता है
दस-दस बारह-बारह घंटों

मगर वह लौटा देती है उसे
शाम तक शायद लाज के मारे.

और चला जाता है सूरज
चुपचाप
टाँक कर उसकी चुनरी में
अनगिनत तारे
इतनी सारी उपेक्षा के
बाबजूद।


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ऋतु बदली
झर रहे हैं पत्ते
पतझड़ में।
1.


खिलेंगे फूल
मौसम आने पर
धीरज धरो।
2.

                             डॉ. मंजूश्री गर्ग

Thursday, March 5, 2020



आँचल हिले
तारे झिलमिलोये
चाँद चमके।

                            डॉ. मंजूश्री गर्ग


Wednesday, March 4, 2020




सम्बन्धों के मोती

जीवन के धागे में पिरे
सम्बन्धों के मोती
देते हैं आभा
प्रेम की, अनुराग की
मान की, सम्मान की।
कभी जो पड़ी गाँठ
जीवन की सहजता
रहती है जाती
वाद में, प्रतिवाद में
टूट जाती हैं गाँठ
बिखर जाते हैं मोती।
कभी समय बीतते
धीरे-धीरे
होती है सहज गाँठ भी
और बनी रहती है आभा
सम्बन्धों के मोती की।


                   डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, March 2, 2020



वंशावली में
माता-पिता शामिल
सदा रहेंगे।

                                डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, March 1, 2020




चलें दो कदम,
चलें निरन्तर,
मंजिल की ओर।
पा लेंगे हम,
मंजिल एक दिन।

                   डॉ. मंजूश्री गर्ग