बनोगे संत
अहंकार अपना
तोड़ो तो सही।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
जग को दे दें।
महक औ' उजाला
फूल, दीप सा।
30 मई, 2023 ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष की दशवीं तिथि, गंगा दशहरा की हार्दिक शुभकामनायें
स्वर्ग से गंगा,
भगीरथ प्रयत्न,
धरा पे आईं।
कौन कहता है मोहब्बत की जबान होती है,
ये हकीकत तो निगाहों से बयान होती है।
मनोज मुंतशिर शुक्ला
अम्बर से बातें करेंगे,
धरा पे गीत लिखेंगे।
हो फुरसत तुम्हें देखने से,
जग से भी दो बातें करेंगे।
मुड़ जायेंगे
लचक है लता सी
चाहोगे जैसे।
छोटी सी बात,
लंबे-लंबे संवाद,
सुलझी नहीं।
नेह की नमी
हँसी की धूप मिले
खिले जीवन।
बेटी सँवारे
दोनों कुल कूल से
बन के नदी।
सिमट गयी
प्रेम धागे के संग
दुनिया सारी।
प्रेम के पल
लालिमा कपोलों की
बनी प्रहरी।
बंद मुठ्ठी में
अनगिन सपने
लेकर आये।
नयनों में डोले, प्यार के डोरे।
दिल में हाँ-हाँ, अधरों पे ना-ना।।
ज्येष्ठ मास
वट-सावित्री पूजा
मावस-तिथि।
वृक्ष ना देते
समय से पहले
धरा को फल।
गजल
पल-पल बदलते मौसम का हाल क्या कहिये।
रंग बदलती दुनिया का हाल क्या कहिये।।
फटी जीन्स फैशन है आजकल का ।
अमीरी-गरीबी का हाल क्या कहिये ।।
कंक्रीटी-जंगलों में रहे हैं बदल।
शहरों का अब और हाल क्या कहिये ।।
बिन बोले ही बहुत बोले हैं नयन।
दिल का अब और हाल क्या कहिये ।।
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यादों के दिये, जब-जब जले,
निशान और भी, गहरे हुये।
उजालों के लिये, जब-जब लड़े,
अँधेरे और भी, गहरे हुये ।
फूलों के लिये, जब-जब बढ़े,
उपवन ने दिये, चुभते हुये।
पानी के लिये, जब-जब झुके,
नदी ने दिया, सहमे हुये।
क्षण मुस्कायें
फिर झरें फूल से
दे के सुगंध।
सात सुरों में
निबद्ध है हमारा
संगीत प्यारा।
उम्र के साथ
जिंदगी में तैरती
यादों की नावें।
अपनों से जंग रणभूमि में नहीं, अपने को हराकर दिल से लड़नी होती है.
चित्रकार तुम चित्र बनाओ, स्वर्णिम नवल सवेरे का।
प्रकृति में पावन प्रकाश हो, नाम न बचे अँधेरे का।।
विश्वास वर्धन गुप्त
मीठे इतने
गाली भी देते हैं वो
लगे है मीठी।
सुहाने पल
अतिथि बन आये
सदा दो पल।
तुमसे मिल
समर्पण का सुख
जाना हमने।
छुअन है, सुगंध है, प्यार है।
सादा कागज भी खास है।
क्योंकि आपने हमें दिया है।
दौड़ते घोड़े
वेग औ' शक्ति के हैं
प्रतीक सदा।
बिहारी जी की
वृन्दावन में राजे
मृदु मुस्कान।
प्रेम की कनी ह्रदय में गड़ी है,
रस-सिक्त है जीवन उसी से।
कहाँ जाऊँ कासों कहौं, और ठौर न मेरो।
जनम गँवायो तेरे हि द्वारे, मैं किंकर तेरा।
तुलसीदास
संदेश
कोयल की कुहुक सी
आमों की सुगंध सी
महकती हवायें।
चारों दिशाओं से
दे रहीं हैं संदेश
प्रिय के आने का।
बादलों से झाँक रहा चाँद
धीरे-धीरे नदी के जल में
उतर रहा चाँद।
कर रहा अठखेलियाँ
बिखरा रहा चाँदनी।
नदी के सौंदर्य में
लगा रहा चार चाँद।