जो कष्टों से घबराऊँ तो मुझमें कायर में भेद कहाँ।
बदले में रक्त बहाऊँ तो मुझमें डायर में भेद कहाँ ।
माखनलाल चतुर्वेदी
29मार्च, 2021, रंगभरी होली की मीठी सी शुभकामनायें
लाल, गुलाबी, हरे, पीले फूल खिलें हैं उपवन में।
मानों अनगिन रंग बिखेरे हों कुदरत ने।।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
मैं चातक हूँ, तू बादल है,
मैं लोचन हूँ, तू काजल है,
मैं प्यासा हूँ, तू गंगाजल है,
तू चाहे गंगाजल कह ले,
या अल्हड़ मस्ताना कह ले,
जिसने मेरा परिचय पूछा, मैं तेरा नाम बता बैठा।
उदयभानु हंस
नयन पिचकारी से छिटक रहे हैं रंग,
खिल रहे दिल के दामन पर सदाबहार फूल.
स्वार्थी राजनेता अपने को जनता का सेवक कहते हैं और चुनावों के समय जनता से झूठे वायदे करते हैं-
ये गरजते रहेंगे यूँ ही
कहने को घन घनेरे हैं।
डॉ. शशि तिवारी
शहर बने
कंक्रीट के जंगल
डरे हैं सब।
फर्ज का एहसास होना चाहिए
कर्म में विश्वास होना चाहिए।
आदमीयत ही ना मिट जाए कहीं
विश्व को आभास होना चाहिए।
बालकृष्ण गर्ग
दर्दे-दिल क्या सुनाये उनको, जो
बीमार बनके बैठे हैं सामने।
पिता समान
निकलते झरने
पत्थरों से ही।
धीरे-धीरे तुम्हारे हो रहे हैं हम।
लगता है खुद को खो रहे हैं हम।।
संध्या दीप सा
जलना पल-पल
उजाले लिये।
सिर्फ अपने गम को रोने से नहीं बनती है बात।
बात औरों की तेरी तहरीर में कोई तो हो।।
डॉ. जानकी प्रसाद शर्मा
अपनी जड़ें
देश हो या विदेश
ना काटो तुम।