Friday, March 31, 2017



बात-बात पे टोकना बडों का
बुरा तो बहुत लगता था बचपन में
पर आज बड़े हो के
वही बातें अमृत वचन सी हैं लगती।

            डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Thursday, March 30, 2017


प्राकृतिक चिकित्सा

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

हमारा शरीर पंच भौतिक तत्वों से बना है- जल, वायु, अग्नि, आकाश, पृथ्वी. इन  पाँचों तत्वों के संतुलन से ही व्यक्ति का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य स्वस्थ रहता है. प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति अलग होती है और अलग-अलग समय पर इन तत्वों का प्रभाव भी अलग-अलग होता है. व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिये अपनी प्रकृति को समझना चाहिये, उसी के अनुसार अपने खाने-पीने का ध्यान रखना चाहिये. जैसे-

जल-  प्रायः हमारे शरीर में 70% पानी की मात्रा होती है किन्तु प्रत्येक व्यक्ति में कम-ज्यादा भी होती है. कभी हमें पानी की अधिक आवश्यकता होती है और कभी कम. अपनी प्रकृति को समझकर ही पानी का उपयोग करना चाहिये.

वायु- वायु का सेवन हम प्रत्येक पल श्वास के माध्यम से करते ही रहते हैं. हर समय संभव ना भी हो, तो दिन में कुछ मिनट या घंटे हमें शुद्ध ताजा हवा में टहलना या बैठना अवश्य चाहिये.

अग्नि- प्रत्येक व्यक्ति में अग्नि होती है, इसके बिना व्यक्ति जी नहीं सकता. इसीलिये मृत व्यक्ति का शरीर ठंडा होता है. आवश्यकतानुसार अग्नि(तेज) का सेवन करना चाहिये. चाहें वो शुद्ध सूर्य की किरणों से प्राप्त हो या भोज्य पदार्थों के माध्यम से.

आकाश- आकाश को शून्य भी कहते हैं. हमें दिन में कुछ मिनट ध्यान अवश्य करना चाहिये जिससे हमारा मन-मस्तिष्क शून्य हो जाता है अर्थात् पुरानी बातों से हट जाता है. शून्य पटल पर ही स्वस्थ विचारों का आगमन होता है.

पृथ्वी- पृथ्वी का सबसे बड़ा गुण गुरूत्वाकर्षण है. जिससे व्यक्ति के पैर धरती पर टिके रहते हैं, वहीं अगला कदम सोच-समझकर उठाता है और धरती के महत्व को समझता है.

अपने इन्हीं पाँचों तत्वों को समझना और उनके अनुसार आचार-विचार करना प्राकृतिक चिकित्सा का मूल मंत्र है.

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तनुश्री-अनन्त(नानू के साथ)


परू




अभिषेक-पल्लवी-परू



Wednesday, March 29, 2017



पुरातन पीढ़ी का अनुभव और युवा पीढ़ी के नव विचारों के सामंजस्य से ही प्रगति का पथ प्रशस्त होता है।

                   डॉ0 मंजूश्री गर्ग


माँ को भूले, माटी भूले
भूल गये गाँव शहर।
पिज्जा, बर्गर की खुशबू में
भूले रोटी की महक।

          डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Tuesday, March 28, 2017


जब हिमालय कैद हुआ बक्से में
डॉ0 मंजूश्री गर्ग

बात सन् 1965 ई0 की है, बड़े भैय्या की शादी थी. सारा घर मेहमानों से भरा था, जहाँ देखो वहाँ उत्साह ही उत्साह था. दादी-बाबा के बड़े पोते की, अम्मा-बाबूजी के बड़े बेटे की पहली शादी का दिन था. घुड़चढ़ी के लिये सभी नये-नये वस्त्र-आभूषण पहन कर तैय्यार होने में व्यस्त थे. बड़ी जीजी भी अपने बच्चों को, स्वयं तैय्यार होने के लिये बक्से से पोशाक निकालने गईं. देखती क्या हैं कि सारे कपड़े गीले हो चुके हैं, कपड़ों के ऊपर छोटा सा बर्फ का टुकड़ा तैर रहा है. जीजी यह देखकर बहुत ही अचंभित हुईं, सोचने लगीं किसने करी होगी यह बेहुदा हरकत. देखती क्या हैं कि पास ही उनका बड़ा बेटा जो मात्र छः साल के लगभग होगा, सहमा खड़ा है. जब मनोज से पूछा तो उसने भोलेपन से सब कहानी कह दी कि, हमारे यहाँ बुगरासी* में तो बर्फ मिलती नहीं है, इसीलिये हमने बर्फ अपने बक्से में चुपचाप रख ली थी.

*बुलन्दशहर जिले में एक कस्बा है जहाँ जीजी रहती थीं.


Friday, March 24, 2017




रक्त कमल
कामदेव के वाण
पंचवाणों में।
    
             डॉ0 मंजूश्री गर्ग




अशोक पुष्प
कामदेव के वाण
पंचवाणों में।

          डॉ0 मंजूश्री गर्ग



आम्र मंजरी
कामदेव के वाण
पंचवाणों में।

          डॉ0 मंजूश्री गर्ग


मल्लिका फूल
कामदेव के वाण
पंचवाणों में।

                   डॉ0 मंजूश्री गर्ग




नील कमल
कामदेव के वाण
पंचवाणों में।

                           डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Thursday, March 23, 2017


 गीत

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

कैसे मन की बात कहें
मन पे मन का बोझ है।

रात अँधेरी चमके तारे
सजन हमारे कहाँ छुपे हो?
हम तो सजनि! साथ तुम्हारे
पूनम मावस हाथ तुम्हारे।

चाँद-चाँदनी साथ चले
धरती औ आकाश तले।
फूलों में फूलों की खुशबू
ऐसे मन में आन बसे हो।


Wednesday, March 22, 2017


सागर मे ंरहे, जलते रहे फिर भी प्यास में
सुख से लदे हुये रहे सुख की तलाश में
कितना तो चैन मिल रहा है छाँव में घर की
है लग रहा कि माँ कहीं बैठी है पास में।

        -        रामदरश मिश्र

Tuesday, March 21, 2017



नानी-मम्मी-परू


गीत

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

चाँदनी रात में फिर-फिर के आया करो,
सो भी जाऊँ मैं अगर तुम जगाया करो,
      गीत प्यार के गाया करो।

हर-सिंगार सी बिछकर जीवन में,
सूने मन को महकाया करो,
      गीत प्यार के गाया करो।
       चाँदनी रात में----------

निर्झर सी बहकर जीवन में
तन की  तपन बुझाया करो,
     गीत प्यार के गाया करो।
     चाँदनी रात में-----------

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Monday, March 20, 2017



आँधियों में दीपक की लौ को देखो।
बारिशों में नदी के वेग को देखो।।
उछाल के देखो गमों की सौगातें।
व्यक्तित्व में निखार फिर और देखो।।

             डॉ0 मंजूश्री गर्ग


हिन्दी गजलों में पर्यावरण प्रदूषण की अभिव्यक्ति

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

आधुनिक समय में पर्यावरण प्रदूषण हमारे देश व समाज की प्रमुख समस्याओं में से एक है. जनसंख्या बढ़ोत्तरी व औद्योगीकरण के कारण  उत्पन्न प्रदूषण की समस्या को हिन्दी भाषी गजलकारों ने हिन्दी गजलों में अभिव्यक्त किया है. जनसंख्या बढ़ोत्तरी के कारण भवन निर्माण का कार्य भी बढ़ा है, भवन निर्माण के लिये, ईंधन के लिये दिन-प्रतिदिन पेड़ों के कटने की संख्या बढ़ती जा रही है. पेड़ों और जंगलों के कटने से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है जैसा कि प्रस्तुत शेअरों में कहा गया है-

          इसलिए ऋतुएं खफा हैं
          पेड़ कटते जा रहे हैं। 
                          - राजगोपाल सिंह

          आपने खुद ही पुकारा है चिलकती धूप को
          लोग पहले काटते थे नीम या पीपल कहीं।
                                     - राजगोपाल सिंह

क्योंकि पेड़ कटने के कारण ऋतुएं खफा हो गयी हैं राहगीर को छाया नहीं मिल पाती , इसलिए शायर ने अपने स्वार्थ के लिए पेड़ काटने वाले व्यक्ति को सचेत करते हुए प्रस्तुत शेअर में कहा है-

          मांगने से पहले कुछ भी, सोच लो फिर माँगना।
          एक चौखट के लिए क्या पेड़ कटवाओगे।। 
                                       -राजगोपाल सिंह

ऐसे ही अन्य शेअरों में जंगलों की कटाई से उत्पन्न संवेदना को अभिव्यक्त किया गया है-

          पेड़ कटता कोई नजर आया,
          दिल घने जंगलों का भर आया।

-    मख्मूर सईदी

           जिसके जब जी में आता है लगता वही गिराने पेड़,
          तुम्हीं बताओ आखिर किसको जायें जख्म दिखाने पेड़।
          इक अरसे से मन का आँगन हरी घास को तरस गया।
          सिर्फ वही पिछली यादों के जर्जर, जर्द, पुराने पेड़।

                                           माधव कौशिक

औद्योगीकरण के कारण उत्पन्न प्रदूषण की समस्या की अभिव्यक्ति भी हिन्दी गजलों में हुई है जैसे- प्रस्तुत शेअरों में कहा गया है-

     चाँदनी को डस गया, शहरों से उठता ये धुआँ,
     और हवा रोती मिली, रातों के बंजर खेत में।

                                  कु0 मीनाक्षी

          डीजल की बू में फूल एक,
          धीरे-धीरे लापता हुआ।
                        सूर्यभानु गुप्त

अंधाधुंध उद्योगों के लगने के कारण प्रकृति की अनुपम भेंट चाँदनी की छाया, पुरवा हवा के झोंके  सब लुप्तप्राय होते जा रहे हैं. सारा ही प्राकृतिक वातावरण दूषित होता जा रहा है ना कहीं शुद्ध जल है और ना ही शुद्ध वायु. इसी संवेदना से जुड़े हैं प्रस्तुत गजलों के अंश-

          मिल की चिमनी का धुआँ, हर खेत पर छाने लगा।
          अब शहर वाला प्रदूषण, गाँव तक आने लगा।।
          गाँव के नालों, नदी के नीर में बहता हुआ।
          शहर के कारखानों का जहर जाने लगा।।
          अब कहाँ निर्मल हवा, वातावरण वह शुद्ध सा।
          गाँव का दूषित गगन ही राख बरसाने लगा।।

                                      चन्द्रसेन विराट

          चिमनियों से बिखर गया होगा,
          धमनियों में जहर गया होगा।

                                  डॉ0 महेन्द्र कुमार अग्रवाल

औद्योगीकरण ने जहाँ प्रकृति को प्रदूषित किया है, वहीं हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन को सुख-सुविधाओं से भर दिया है और हम भौतिक सुविधाओं के इतने आदी हो चुके हैं कि इनके बिना हमारा जीवन अपाहिज जैसा हो जाता है किन्तु फिर भी हमें समय रहते स्वस्थ पर्यावरण की ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है.

Saturday, March 18, 2017


सुबह सुहानी छाँव में
पक्षी के मधु कुंजन में
गुमसुम सा बैठा है कोई
गुमसाथी की याद में।

                      डॉ0 मंजूश्री गर्ग








घिस-घिस चंदन महक लुटाये,
पिस-पिस मेंहदी रंग लाये।
फूल खिलें, सजें या बिखरें,
हर पल पवन को महकायें।।

            डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Friday, March 17, 2017


सूखे वृक्ष से लिपटी
वल्लरी से पूछो,
है कितना सरस पेड़।
जिसकी छाँव तले
पल्लवित, पुष्पित,
हर्षित, हरित हो रही वल्लरी।


                      डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Wednesday, March 15, 2017


दो दिल, मानों
गंगा के
दो किनारों पे
जलते
दो दिये।

एक प्रवाह
एक गति
एक आभा
एक मिलन आस
मन में लिये।

           डॉ0 मंजूश्री गर्ग