Tuesday, October 31, 2017


हाइकु

डॉ मंजूश्री गर्ग

पुष्प-वाटिका
सीता-राम मिलन
हरषे मन.

शुभ विवाह
वर हैं श्री राम जी
वधू जानकी.


सजी अयोध्या
आज राम घर में
जलाओ दिये.


श्री रामचंद्र
सीता संग धनुष
सदा विराजे.

Monday, October 30, 2017

हाइकु

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

अधर द्वार
दीप राम नाम का
रोशन मन.


ह्रदय धरें
राम छ्वि प्यारी
श्री हनुमान.

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Sunday, October 29, 2017


हाइकु

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

कृष्ण दीवानी
बिष का प्याला पी
नाची है मीरा.


बिष का प्याला
अमृत बन गया
मीरा के लिये.

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Tuesday, October 24, 2017


प्यार किया है  हमने तुमसे,
बदनाम  नहीं  होने देंगे।
चाहतों को दिल में छुपा लेंगे,
राह में मिले तो नजरें झुका लेंगे।

                                                  डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Wednesday, October 18, 2017


अजीब पहेली है ये जिंदगी।
जीते जी सुलझती ही नहीं।।

                    डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Sunday, October 15, 2017


पंच पर्वों का महापर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें

दीपावली


डॉ0 मंजूश्री गर्ग

अनगिन दीप धरा पे जलें।
जगमग जगमग धरा करे।।

                        डॉ0 मंजूश्री गर्ग

दीपमंत्र- शुभं करोति कल्याणं आरोग्य धनसंपदा

भगवान धन्वन्तरि की जयन्ती


कार्तिक मास की कृष्ण-पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है. इस दिन समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वन्तरि अपने कर-कमलों में अमृत कलश लेकर मानव समाज को जरा-व्याधि से मुक्त कराने  तथा आयुर्वेद का जगत में प्रचार-प्रसार करने के लिये अवतरित हुये थे. भगवान धन्वन्तरि आयुर्वेद के परम उपदेष्टा थे. आयुर्वेद का अर्थ है- आयु का वेद अर्थात् जिसका अनुगमन कर रोग रहित स्वास्थ्य के साथ दीर्घ जीवन की प्राप्ति हो इसी प्रयास में आयुर्वेद सतत् प्रयत्नशील रहा है.

हनुमान जयंती


दीपावली से पूर्व नरक-चतुर्दशी के दिन भगवान शिव ने त्रेता युग में भगवान राम की सहायता के लिये हनुमान रूप में जन्म लिया था. स्कन्द महापुराणअगस्तय संहिता इस मत की पुष्टि करते हैं. अयोध्या के हनुमान गढ़ी मंदिर में नरक चतुर्दशी को ही हनुमान जयंती मनायी जाती है जबकि दक्षिण भारत में व काशी के संकटमोचन मंदिर में चैत्री पूर्णिमा को हनुमान जयंती मनायी जाती है.


श्रीलक्ष्मी-जयन्ती


दीपावली के दिन कार्तिक मास की अमावस्या के दिन श्री लक्ष्मी-जयन्ती मनायी जाती है. इस दिन समुद्र मंथन के समय समुद्र से लक्ष्मी जी अवतरित हुई थीं. इस दिन श्री लक्ष्मी जी का ध्यान इस प्रकार करना चाहिये-
हिमालय के समान विशाल एवं उज्जवल चार हाथी अपने सूँडों में उठाये हुये अमृतपूर्ण कलशों से अमृत धारा द्वारा स्वर्ण के समान देह-कान्तिवाली लक्ष्मी जी का अभिषेक कर रहे हैं. लक्ष्मी जी अपने ऊपरी दायें हाथ में कमल पुष्प, नीचे के दायें हाथ में वर-मुद्रा तथा ऊपरी बायें हाथ में कमल पुष्प, नीचे के बायें हाथ में अभय मुद्रा धारण किये हुये हैं. उनके मस्तक पर उज्जवल रत्न-मुकुट है. लक्ष्मी जी रेशमी वस्त्र धारण किये हुये कमल-पुष्प पर विराजमान हैं. श्री लक्ष्मी जी की मैं वन्दना करता हूँ.
दीपावली के दिन ही श्री राम चौदह वर्ष वनवास के पूरे कर श्री लक्ष्मण और सीता जी के साथ अयोध्या वापस आये थे. अयोध्यावासियों ने खुशी में घर-बाहर अनगिनत दीप जलाये कि अमावस की रात भी जगमगा उठी. जितने तारे आकाश में थे उससे कहीं अधिक दीप पृथ्वी पर जगमगा रहे थे. ना अयोध्यावासियों के मन में अँधेरा था ना अयोध्या में. तभी से कार्तिक मास की अमावस्या का दिन दीपावली पर्व के रूप में मनाया जाने लगा और दीपों की अवली(पंक्ति) सजाने की प्रथा शुरू हुई.
  

गोवर्धन-पूजा


दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन भगवान की पूजा की जाती है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने इन्द्र देवता के प्रकोप से ब्रजवासियों की रक्षा की थी. जब इन्द्र देवता ने ब्रज पर प्रलयकारी बादल भेजकर मूसलाधार वर्षा करायी थी तो सभी ब्रजवासी व पशु-पक्षी बारिश से बेहाल होकर श्रीकृष्ण की शरण में आये तब श्रीकृष्ण ने अपनी अँगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर उसके नीचे सभी ब्रजवासी व पशु-पक्षियों को एकत्रित किया और अपने सुदर्शन चक्र को यह आदेश दिया कि वह पर्वत के चारों ओर घूम-घूम कर पानी को जलाता रहे. वर्षा के रूक जाने पर श्रीकृष्ण ने अपने चतुर्भुजी स्वरूप के दर्शन देकर ब्रजवासियों को कृतार्थ किया. श्रीकृष्ण के आदेश पर सभी ब्रजवासियों ने मिलकर विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाकर गोवर्धन भगवान का भोग लगाया. इस प्रसाद को अन्नकूट नाम दिया. तभी से कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा को गोवर्धन भगवान की पूजा व अन्नकूट की प्रथा शुरू हुई.

भाई-दौज


भाई-दौज का त्यौहार दीपावली से तीसरे दिन कार्तिक शुक्ला द्वितिया को मनाया जाता है, इस दिन नव चन्द्र दर्शन होता है. भाई-दौज को यम-द्वितिया के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन बरसों बाद मृत्यु के देवता यम अपनी जुड़वाँ बहन यमुना(नदी) से मिलने आये थे तब यमुना ने अति प्रसन्न हो अपने भाई के माथे पर मंगल तिलक किया था और विविध प्रकार के व्यंजन से उसका स्वागत किया था. तभी से इस दिन को भाई-बहन के मिलन दिवस के रूप में मनाया जाता है. बहन भाई के माथे पर रोली-चावल से तिलक करके मिठाई खिलाती है और भाई प्रसन्न होकर अपनी बहन को उपहार देता है.


Monday, October 9, 2017


गीत

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

आज मिले हैं मेरे
पिया से नयन
सखि री! मेरा
मन थिरके
तन थिरके।

बिन मौसम
कोयल की
कुहू-कुहू
गूँजे मन मेरे
सखि री! मेरा
मन थिरके
तन थिरके।

बिन मेंहदी
रची हथेली
महके
मन मेरे
सखि री! मेरा
मन थिरके
तन थिरके।

बिन दीपक
रोशन आँगन
उजाला
मन मेरे
सखि री! मेरा
मन थिरके
तन थिरके।






























Friday, October 6, 2017


पहली नजर......

पहली नजर तेरी
जागी दिशायें सारी
मन-आकाश की
मानों चमकी हो
किरण भोर की।

पहली मुस्कान तेरी
हरषा रोम-रोम
मानों खिली हो
कली कोई प्यारी
उपवन में आज।

पहली छुअन तेरी
महका अंग-अंग
मानों मिट्टी से उठी हो
सोंधी महक, पा
बरखा की पहली फुहार।

                      डॉ0 मंजूश्री गर्ग
















Thursday, October 5, 2017


आज स्वरूप को खोकर ही.......

पयस्विनी सी बहना है तो
बर्फ सा गलना होगा।
गहनों में गढ़ना है तो
सोना सा तपना होगा।
आज स्वरूप को खोकर ही
नये रूप में ढ़लना होगा।


                     डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Wednesday, October 4, 2017


नहीं मालूम.....

तुम में खोये,
या खोये खुद में,
नहीं मालूम।
कब सुबह हुई,
कब शाम,
नहीं मालूम।


           डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Tuesday, October 3, 2017


चावल

डॉ0 मंजूश्री गर्ग



चावल का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है. खाद्यान्न के रूप में तो गेहूँ के बाद चावल का प्रयोग सबसे अधिक होता ही है. भारतीय संस्कृति में प्रतीक रूप से भी चावल के विभिन्न रूपों का प्रयोग होता है जैसे-अक्षत, खील, धान.

अक्षत-
अक्षत साबूत चावल को कहते हैं. हर पूजा की थाली में रोली-चन्दन के साथ अक्षत अवश्य रखे जाते हैं, ये श्वेत वर्ण मोती के प्रतीक हैं.

खील-
खील छिलका सहित चावल(धान) से बनायी जाती है. दीवाली पर्व पर लक्ष्मी-पूजन में बतासे-खिलौने के साथ खील का भी भोग लगाया जाता है. जैसे- धान अग्नि के गर्भ में तपकर शुभ्रवर्ण मुस्काती खील में परिवर्तित हो जाती है उसी प्रकार दीवाली की रात असंख्य दीपकों की रोशनी से अँधेरी रात भी जगमग-जगमग करती मुस्कुरा उठती है.

खील का विवाह के समय भी प्रतीक रूप में विशेष महत्व है. विवाह के समय नव-दम्पत्ति अग्नि में खील की आहुति देते हैं, जिसका तात्पर्य है कि जब तक पति-पत्नी दोनों मिलकर रहेंगे उनका जीवन सदा खील की तरह मुस्कुराता रहेगा. जैसे- जब तक धान में चावल के साथ छिलका जुड़ा रहता है धान खील के रूप में अग्नि के गर्भ से भी बाहर मुस्कुराती जाती है.


धान-
कन्या के विवाह के समय गौरी पूजन के समय कन्या के चारों ओर कन्या के माता-पिता, चाचा-चाची, मामा-मामी, आदि सभी रिश्तेदार परिक्रमा करते हुये धान बोते हैं और माँ पानी देकर सींचती है जो इस बात का प्रतीक है कि कन्या का धन धान के समान होता है. जब तक इन्हें अन्य न रोपा जाये ये फलीभूत नहीं होती.