Wednesday, July 31, 2019




जहाँ अति आधुनिक युग में हम विकास के चरम शिखर पर हैं वहीं बहुत कुछ पीछे छूटता जा रहा है. जैसे अब पल भर में दूर बैठे व्यक्ति से बात करना सम्भव हो गया है वहीं हाथ की लिखी चिट्ठियों की परम्परा पीछे छूटती जा रही है-


फोन वो खुशबू कहाँ से लाएगा।
वे जो आती थीं तुम्हारी चिट्ठियों से।
                        ममता किरन

Tuesday, July 30, 2019



ईर्ष्या से नहीं
प्रतिस्पर्द्धा से ही
जीतोगे तुम।

                                         डॉ. मंजूश्री गर्ग


Monday, July 29, 2019



रात भोली सी
और अनूठे दिन
बचपन में।

                                    डॉ. मंजूश्री गर्ग


Sunday, July 28, 2019



दिल के सौदे बेमोल हुआ करते हैं,
लेन-देन से तो व्यापार चलते हैं।
  
                  डॉ. मंजूश्री गर्ग







Saturday, July 27, 2019



गले में नाग
बाल चंद्र भाल पे
शिव का रूप।
1.

शिवरात्री पे 
सजे हैं शिवालय
मुस्कायें शिव।
2.

                                 डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, July 26, 2019




चाँदनी रात है औ
नदी का जल शांत है,
उदास है धरा आज।
बादलों की ओट में,
चाँद के आगोश में,
सो रही है चाँदनी।

                  डॉ. मंजूश्री गर्ग

Thursday, July 25, 2019




दौड़ते रहे
काले घने बादल
बिन बरसे।
1.

तरसे हम
झूम-झूम बरसो
बरखा रानी।
2.

                               डॉ. मंजूश्री गर्ग


Wednesday, July 24, 2019



बाती ही जली
प्रीत निबाहने को
पिघला मोम।

                                 डॉ. मंजूश्री गर्ग

Tuesday, July 23, 2019



तरूनी लसति प्रकास तें मालति लसति सुवास।
गोरस गोरस देत नहिं गोरस चहति हुलास।
                                हरिनाथ

Monday, July 22, 2019



सावन ऋतु
मनमीत मिले तो
 सरसे मन।

                                          डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, July 21, 2019



भिगो लो मन
बारिशों का मौसम
आये ना रोज।

                                         डॉ. मंजूश्री गर्ग

Saturday, July 20, 2019



ममतामयी
हर धूप में छाँव
बनी माँ मेरी।

                                     डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, July 19, 2019



ओछे को सतसंग, रहिमन तजहु अंगार ज्यों।
तातो जारै अंग, सीरै पै कारो लगै।।
                                                                         रहीमदास

Thursday, July 18, 2019



अति पावन
गोमुख से निकली
गंगा की धारा।

1.

श्यामल धारा
बहे अति पावन
यमुनोत्री से।

2.

                                                डॉ. मंजूश्री गर्ग


Wednesday, July 17, 2019



जिज्ञासु मन
खुद से ही करते 
लाखों प्रश्न।

                 डॉ. मंजूश्री गर्ग

Tuesday, July 16, 2019



व्यथित कलियाँ मत मुरझाओ,
कोई ना तुमको चाहेगा.
पल भर जो मुस्काओगी,
किसी के गजरे, किसी के
गले का हार बनोगी.

                  डॉ. मंजूश्री गर्ग





दर्शन क्या है?
डॉ. मंजूश्री गर्ग

दर्शन से अभिप्राय है दृष्टिकोण. प्रत्येक व्यक्ति की चिंतन धारा अलग होती है, जीव और जगत को जानने और समझने की राह अलग होती है. सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म ईश्वरीय सत्ता को पाने का मार्ग अलग होता है.

ज्ञानमार्गी ज्ञान के माध्यम से ईश्वर को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं, उनके अनुसार आत्मा और परमात्मा एक ही तत्व के दो रूप हैं जैसे नदी के जल और उससे भरे घड़े में कोई फर्क नहीं होता.

भक्तिमार्गी भक्ति के माध्यम से ईश्वर को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं, उनके अनुसार जो कुछ है वो ईश्वर है चाहे वो कृष्ण रूप में हो या राम रूप में या किसी अन्य रूप में.

प्रकृतिवादी प्रकृति के माध्यम से ईश्वर को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं, उनके अनुसार चर-अचर, प्रकृति के कण-कण में ईश्वर व्याप्त हैं. ईश्वर को पाना है तो उसकी बनायी सृष्टि से प्रेम करो.

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Sunday, July 14, 2019



आँखें......
डॉ. मंजूश्री गर्ग

बोलती आँखें,
मुस्काती आँखें,
लरजती आँखें,
शराबी आँखें,
डराती आँखें,
बिन कहे, कितना
कहें ये आँखें।

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Saturday, July 13, 2019




चाह नहीं जीने की और मन में
फिर भी चाहतें जिला रही हैं हमें.

                       डॉ. मंजूश्री गर्ग





प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने जनक के माध्यम से पिता के मन में पुत्री के विवाह की चिंता की अभिव्यक्ति की है-
सुरभी सों खुलन सुकवि की सुमति लागी,
चिरिया सी जागी चिंता जनक के जियरे।
धानुष पै ठाढ़े राम रवि से लसत आजु,
भोर के से नखत नरिंद भए पियरे।
                        रघुनाथ(कवि)

Thursday, July 11, 2019



उतरेगी ही
कलई कितनी हो
खुलेगी  पोल।

                              डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, July 10, 2019




बच्चों को विदेस जाने के बाद भी अपने घर की, अपने गाँव की याद आती रहती है. इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने श्रीकृष्ण के माध्यम से की है-
ग्वाल संग जैबो ब्रज, गैयन चरैबो ऐबो,
अब कहा दाहिने ये नैन फरकत हैं।
मोतिन की माल वारि डारौं गुंजमाल पर,
कुंजन की सुधि आए हियो धारकत है।
गोबर का गारो रघुनाथ कछु यातें भारो,
कहा भयो महलनि मनि मरकत हैं।
मंदिर हैं मंदर तें ऊँचे मेरे द्वारका के,
ब्रज के खरिक तऊ हिये खरकत हैं।

                                           रघुनाथ(कवि)

Tuesday, July 9, 2019



हाइकु

पास हो प्रिया
प्रियतम का प्यार
बढ़ता और।

1.

दूर हो प्रिय
प्रियतमा का प्यार
बढ़ता और।

2.

डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, July 8, 2019

पिघलते हिम खंड

डॉ. मंजूश्री गर्ग


पिघलते-
पिघलते
ठोस से
द्रव बन गये।

जहाँ गये
उसी
साँचे में
ढ़ल गये।

जिससे मिले
उसी
रंग में
मिल गये।

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Sunday, July 7, 2019



भाव लहरी
ह्रदय में उमड़ी
शब्दों में बही।
            डॉ. मंजूश्री गर्ग




किसी व्यक्ति को अचानक से कहीं से धन या मान-सम्मान मिल जाता है तो वह समाज में और व्यक्तियों के ऊपर अपना रौब दिखाने लगता है, इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने शतरंज के मोहरों के माध्यम से प्रस्तुत पंक्तियों में की है-
जो रहीम औछो बढ़ै, तो अति ही इतराय।
प्यादे से फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाये।।
                                 रहीमदास

Saturday, July 6, 2019



शत्रुघ्न के वाणों से मूर्छित लव के लिये विलाप करती हुई सीता के प्रति कुश का कथन-
रिपुहिं मारि संहारिदल यम ते लेहुं छुड़ाय।
लवहिं मिलै हों देखिहों माता तेरे पाय।।
                                केशवदास

Friday, July 5, 2019



जो थल कीने विहार अनेकन तो थल काँकरी बैठि चुन्यो करैं।
जा रसना सों करी बहु बातन ता रसना सों चरित्र गुन्यो करैं।
आलम जौन से कुंजन में करी केलि तहाँ अब सीस धुन्यो करैं।
नैनन में जे सदा रहते तिनकी अब कान कहानी सुन्यो करैं।
                                              आलम

Thursday, July 4, 2019




बिगड़ी बात बनै नहीं,  लाख करे किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

                           रहीमदास


Tuesday, July 2, 2019



सात स्वरों में निबद्ध,
      संगीत हमारा।
सात रंगों से रचा,
      इन्द्रधनुष प्यारा।
सात फेरों में बँधा,
      जीवन हमारा।

                        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, July 1, 2019



एक बूँदः

सागर से चुराकर अपना अस्तित्व
वाष्प बन रख लिया बादल रूप।

सूरज से चुराकर उसकी किरणें
इन्द्रधनुषी रंग में रंगा तन-मन।

तपती धरती को देख मन तड़पा
अश्रु लड़ी में पिर आयी धरती पर।

किन्तु सीपी में गिरी, बनी एक मोती
एक बूँद नन्हीं सी, प्यारी सी।

                          डॉ. मंजूश्री गर्ग




सुबह-सबेरे आशा की किरण है कहती
बरसेंगे आज उम्मीदों के बादल।
दिन सारा तेज धूप में है निकल जाता
शाम ढ़ले फिर छा जाते उदासी के बादल।

                                  डॉ. मंजूश्री गर्ग