Friday, June 30, 2023


कौन रोकेगा

सूरज की चमक

औ' कब तक।


           डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, June 29, 2023


 किनारे-किनारे चलोगे, तो कैसे पार लगोगे।

पानी है मंजिल तो, बीच धार में नाव चलाओ।।


                         डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, June 28, 2023

 

 पात-पात निखरे, बारिश की बूँदों से।

जैसे रोम-रोम हरषे, साजन के प्यार से।।


                  डॉ. मंजूश्री गर्ग


Tuesday, June 27, 2023

 

फूल को ताजी हवा, पानी न मिले सूख जाता है।

जलते दीप को स्नेह न मिले बुझ जाता है।

मीठी नदी को प्रवाह न मिले सड़ जाती है।

जिंदगी को गति न मिले मर जाती है।

                    डॉ. मंजूश्री गर्ग         

 


Monday, June 26, 2023


गजल

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

पानी में पानी की बूँदें लगती हैं सुन्दर।

जीवन में जीवन की झलकें लगती हैं सुन्दर।।

 

ऐसे भी ना रूठिये कि मना भी ना पायें।

प्यार की बातें रूठने में लगती हैं सुन्दर।।

 

सुर-ताल को ना तोड़कर गीत गाइये।

पुरवा में पत्तों की सरगमें लगती हैं सुन्दर।।

 

हर भाव को ना छंद के बंधन में बाँधिये।

कभी-कभी लहरों की मुक्तकें लगती हैं सुन्दर।।

 

पंख जल गये हैं सभी कड़ी धूप में।

फिर भी मन की उड़ानें लगती हैं सुन्दर।।

 

 

  

  

Sunday, June 25, 2023

     

    

 पपइया

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

बाग के कोनों में

देख उगा

पपइया

बाल-मन मुस्काया.

 

निकाल कर उसे

मिट्टी से

धोया, घिसा

बाजा बनाया.

जब मन में आया

पपइया बजाया.

 

नहीं सोच पाया

तब उसका मन

जुड़ा रहता ये पपइया

कुछ बरस यदि मिट्टी से

एक दिन

बड़ा बनता रसाल-वृक्ष

और

बसंत बहार में

बौरों से लद जाता.

 

पत्तों में छुप के

कोयल कूकती

गर्मी के आते ही

डाली-डाली

आमों से लद जाती.

 

 

 

 

Saturday, June 24, 2023

    पुरूरवा की कलम से

        डॉ. मंजूश्री गर्ग


देवलोक की परी हो तुम

जानता हूँ, इसी से

चाहकर भी कभी

पाने की कोशिश नहीं की।

 

मुस्कानों के फूल

खिलाता रहा

और गंध की स्याही में

डुबो-डुबो कर लिखता रहा।

 

भेजता रहा संदेशे

पवन के हाथ।

गंध तुम्हें पसन्द थी

आखिर तुम बेचैन हो गयीं

पाने को उसी गंध को।

 

प्यार मेरा सच्चा था

इसी से मजबूर हो गयीं

आने को भूलोक पर।

 

 

उर्वशी! सच कहूँ

तुम्हे पाकर

जीवन मेरा

सार्थक हुआ है

बरसों की तपस्या का फल

आज मुझे मिला है।

 

 

 

 

 

  

Friday, June 23, 2023


    रात गुम है

    गम के अँधेरे में।

    उसे मालूम ही नहीं,

    कितने सितारे जड़े हैं,

    उसके आँचल में।


                        डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

Wednesday, June 21, 2023


 

फलों का राजा-आम

 

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

आम भारत का राष्ट्रीय फल है और इसे फलों का राजा कहा जाता है। भारत में हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक व आसाम से लेकर पंजाब तक सभी जगह पाया जाता है। आम को आम्र, रसाल, सहकार, आदि अनेक नामों से जाना जाता है। कोई नाम स्थान विशेष पर उत्पन्न होने के कारण पड़ गया जैसे- मलीहाबाद, बॉम्बेग्रीन, बैंगनपल्ली; तो कोई नाम आम के रंग के आधार पर जैसे- केसर, तोतापरी, सफेदा, आदि। सभी आमों की अपनी-अपनी विशेषतायें हैं फिर भी उत्तर भारत का दशहरी व बॉम्बे का अल्फांजों बहुत प्रसिद्ध हैं। आम का फल स्वादिष्ट, मीठा व गुणकारी होता है। साथ ही इसका प्रयोग हम किसी न किसी रूप में सालभर करते हैं। वनस्पति वैज्ञानिक वर्गीकरण के आधार पर आम ऐनाकार्डियेसी कुल का वृक्ष है।

 

आम का पेड़ 30 फुट से 90 फुट तक ऊँचा होता है और फैला हुआ होता है। आम की पत्तियाँ वर्ष भर नयी निकलती रहती हैं, इनकी लंबाई 8 इंच से 10 इंच तक होती है और चौड़ाई 1.5 इंच से 2 इंच। पत्तियाँ का अग्र भाग नुकीला सा होता है। कुछ पत्तियाँ किनारे से लहरदार होती हैं। शुभ अवसरों पर घर के मुख्य द्वार पर पत्तियों के तोरण बनाकर सजाते हैं व कलश में भी डंडी सहित आम की पत्तियों को रखा जाता है। आम की पत्तियों की विशेषता है कि इनसे बराबर ऑक्सीजन निकलती रहती है जिस कारण हवन के समय कक्ष में ऑक्सीजन की कमी नहीं होती है। आम का तना भूरे या काले रंग का खुरदुरा होता है। अधिकांशतः हवन में आम की लकड़ियों का ही प्रयोग होता है।

 

बसंत के मौसम में आम पर बौर आना शुरू होता है। आम्रमंजरी को कामदेव के पंचवाणों में भी स्थान प्राप्त है। इसकी भीनी गंध आस-पास के समस्त वातावरण को गंधमय बना देती है। इसकी गंध से आकर्षित हो कोयल भी मधुर राग में कुहुकना शुरू कर देती है। आम के फूल छोटे, हल्के बसंती रंग के या लालिमा लिये हुये होते हैं। नर और उभयलिंगी फूल एक ही बार(पैनिकल) पर होते हैं. आम का फल सरस, गूदेदार होता है और हर फल में एक ही गुठली(बीज) होती है।

 

कच्चे आम का पन्ना बनाया जाता है जो स्वादिष्ट व गर्मी में लू लगने से बचाता है। कच्चे आम को सुखाकर, पीसकर अमचूर बनता है जिसका प्रयोग हम सालभर दाल और सब्जी में मसाले के रूप में करते हैं। कच्चे आम से ही विभिन्न प्रकार के खट्टे-मीठे अचार बनाये जाते हैं। पके आम खाने में सभी को प्रिय होते हैं चाहे कोई बच्चा हो या वृद्ध। पका आम बहुत ही स्वस्थ्यवर्धक, पोषक, शक्तिवर्धक होता है। आम में विटामिन और विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होते हैं।

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Tuesday, June 20, 2023


डोर ऊपर

कठपुतली सम

नाचते हम।


                 डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, June 19, 2023


जामुन


डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

जामुन प्रायः जामुन, राजमन, काला जामुन, जमाली, ब्लैकबैरी, आदि नामों से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम सिजगियम क्यूमिनी(syzgium cumini) है। जामुन का फल बहुत ही स्वादिष्ट, मीठा व स्वास्थयवर्धक होता है। इसकी प्रकृति अम्लीय व कसैली होती है, इसीलिये इसे नमक के साथ खाया जाता है। इसमें ग्लूकोज और फ्रक्टोज दो मुख्य स्रोत होते हैं। फलों में खनिजों की मात्रा अधिक होती है।

 

जामुन का पेड़ लगभग 15 मी. से 20 मी. ऊँचा होता है। ऊँचाई के अनुपात में तने का व्यास कम ही होता है लेकिन तना मजबूत होता है। आँधियों में भी जामुन का पेड़ आसानी से गिरता नहीं है. जामुन के पेड़ की लकड़ी पानी में सड़ती भी नहीं है। जामुन की पत्तियाँ 5-6 इंच लंबी व 1.5-2 इंच चौड़ी होती हैं। पत्तियों की ऊपरी सतह बहुत ही चमकीली स्निग्ध होती है। जामुन की पत्तियों की विशेषता है कि ये वृंत पर प्रायः य़ुग्म रूप में निकलती हैं जो देखने में बहुत ही सुन्दर लगती हैं। जामुन की पत्तियाँ भी आम की पत्तियों की तरह वर्षभर हरी-भरी रहती हैं।

 

जामुन के पेड़ पर अप्रैल-मई के महीने में बौर आना शुरू हो जाता है और जून-जुलाई के महीने में फल आते हैं। फल जामुनी रंग के 1-1.5 इंच लंबे व लगभग .5-1 इंच व्यास के होते हैं। वर्षा अधिक होने पर जामुन के फल का उत्पादन भी अधिक होता है। जामुन का फल गुच्छे के रूप में लगता है और अधिक पकने पर जमीन पर गिरने लगते हैं। फल वर्ष में लगभग दो महीने ही आता है लेकिन इसका लाभ हम पूरे वर्ष उठा सकते हैं। जामुन के फल की गुठली भी बहुत गुणकारी होती है। इसे सुखाकर, पीसकर इसका प्रयोग हम सालभर कर सकते हैं।

 

जामुन में आयरन, विटामिन बी, कैरोटिन, मैग्नीशियम और फाइबर होते हैं। मधुमेह(डायबिटिज) के रोगियों के लिये तो यह फल बहुत ही लाभकारी है।

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रहो कहीं भी

हो के रहो मेरे ही

हर पल ही।


               डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, June 17, 2023


बरसे नेह

अविरल तुम्हारा

सरसे घर।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, June 16, 2023


अँधेरी रातें

टिमटिमाते तारे

देते सहारा।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, June 15, 2023


खिले रात में

बेला, जूही,जैस्मीन

फूल एक ही।


                         डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, June 14, 2023

 

 अर्जुन वृक्ष

डॉ. मंजूश्री गर्ग



 

अर्जुन का पेड़


अर्जुन का फल

 

अर्जुन वृक्ष भारत में पाये जाने वाला औषधीय वृक्ष है। औषधि के रूप में अर्जुन वृक्ष का प्रयोग होता है, जिसका रस ह्रदय रोग में बहुत ही लाभकारी है। आयुर्वेद ही नहीं होम्योपैथी में भी इसकी महत्ता स्वीकार की गयी है और आधुनिक विद्वान भी वर्षों से अर्जुन की छाल पर शोधकार्य कर रहे हैं और धीरे-धीरे इसकी महत्ता स्वीकार कर रहे हैं।

 

अर्जुन के वृक्ष को धवल, ककुभ तथा नदीसर्ज(नदी नालों के किनारे होने के कारण) भी कहते हैं। यह 60 फीट से 80 फीट ऊँचा सदाबहार पेड़ है जो हिमालय की तराई के इलाकों में, शुष्क पहाड़ी क्षेत्रों में नाले के किनारे तथा बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान में बहुतायत से पाये जाते हैं। यह एक सदाबहार पेड़ है। अर्जुन वृक्ष की छाल का ही प्रयोग किया जाता है लेकिन अर्जुन के पेड़ की कम से कम पन्द्रह प्रजाति पाई जाती हैं। इसलिये यह जानना अति आवश्यक है कि किस पेड़ की छाल का दवाई के रूप में प्रयोग करना चाहिये। सही अर्जुन की छाल अन्य पेड़ों की तुलना में कहीं अधिक मोटी व नरम होती है। शाखा रहित यह छाल अंदर से रक्त-सा रंग लिये होती हैं। पेड़ पर से छाल चिकनी चादर के रूप में उतर आती है। वर्ष में लगभग तीन बार पेड़ स्वतः छाल गिरा देता है।

 

अर्जुन का वृक्ष लगभग दो वर्षा ऋतुओं में विकास कर लेता है। इसके पत्ते 7 से.मी. से 20 से. मी. आयताकार होते हैं। कहीं-कहीं नुकीले होते हैं। बसंत के मौसम में नये पत्ते आते हैं और छोटी-छोटी टहनियों पर लगे होते हैं। पत्तों का ऊपरी भाग चिकना व निचला भाग रूखा व शिरायुक्त होता है। अर्जुन वृक्ष पर बसंत के मौसम में सफेद या पीले रंग की मंजरियाँ आती हैं, इन्हीं पर कमरक के आकार के लेकिन थोड़े छोटे फल लगते हैं। 2 से.मी. से 5 से. मी. लंबे ये फल कच्ची अवस्था में हरे-पीले तथा पकने पर भूरे लाल रंग के हो जाते हैं। फलों की गंध अरूचिकर व स्वाद कसैला होता है। फल से इस वृक्ष की पहचान आसानी से हो जाती है। अर्जुन के वृक्ष का गोंद स्वच्छ, सुनहरा व पारदर्शी होता है।

 

अर्जुन की छाल में पाये जाने वाले मुख्य घटक हैं- बीटा साइटोस्टेराल, अर्जुनिक अम्ल तथा फ्रीडेलीन। विभिन्न प्रयोगों द्वारा पाया गया है कि अर्जुन से ह्रदय की माँसपेशियों को बल मिलता है, स्पन्दन ठीक व सबल होता है तथा उसकी प्रति मिनट गति भी कम हो जाती है। ह्रदय की रक्तवाही(कोरोनरी) धमनियों में रक्त का थक्का नहीं बनने देता।

 

अर्जुन की छाल को सुखाकर चूर्ण बनाकर किसी सूखे व शीतल स्थान पर रखना चाहिये। अर्जुन की छाल का प्रयोग कब, कितना, कैसे करना है ये किसी आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से परामर्श कर के ही करना चाहिये।

 

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Tuesday, June 13, 2023


दूर बजती

मंदिर की घंटियाँ

देती सुकून।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, June 12, 2023


    जानते हैं

    हम।

    फिर

    किसी मोड़ पर

    मिलोगे 

    तुम।

    मुस्कुराओगे

    और

    दो आंसू ले

    चले जाओगे। 


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, June 11, 2023

 

महुआ



डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

महुआ एक भारतीय उष्ण कटिबन्धीय वृक्ष है जो भारत के मैदानी भागों में व जंगलों में बहुतायत से पाये जाते हैं। महुआ का वानस्पतिक नाम लोंगफोलिआ है। इसकी ऊंचाई 25 मी. तक होती है और पत्तियाँ हमेशा हरी रहती हैं। पत्तियों की लंबाई 6-7 इंच और चौड़ाई 3-4 इंच होती है। पत्तियाँ दोनों तरफ से नुकीली होती हैं। पत्तियों का ऊपरी भाग हल्के हरे रंग का व पृष्ठ भाग भूरे रंग का होता है। इसका वृक्ष बीस से पच्चीस बर्षों के बीच फूलना-फलना शुरू होता है और सैंकड़ों वर्षों तक फूलता-फलता रहता है। लेकिन महुआ की कुछ प्रजाति जैसे ऋषिकेश, अश्विनकेश, जटायुपुष्प, आदि 4-5 वर्ष में ही फूल-फल देने लगते हैं, ये प्रायः दक्षिणी भारत में पाये जाते हैं।

 

महुआ में मार्च-अप्रैल के महीने में फूल आते हैं। फूल आने से पहले पत्तियाँ झड़ जाती हैं और सिरे पर गुच्छे के रूप में कलियाँ निकलती हैं और ये कूँची के आकार की होती हैं। कलियों के खिलने पर कोश के आकार का सफेद फूल निकलता है जो दोनों ओर से खुला होता है, फूल के अंदर जीरे होते हैं। यही फूल खाने के काम आता है और महुआ कहलाता है। इसका प्रयोग हरे और सूखे दोनों रूप में होता है। महुआ का रस तलने के काम आता है और सूखा महुआ पीसकर आटे में मिलाया जाता है। दुधारू पशुओं को भी खिलाया जाता है। साथ ही महुआ से शराब भी बनायी जाती है। महुये के बीज से तेल निकालने के बाद खली पशुओं को खिलाने के काम आती है।

 

महुआ का पेड़ का आदिवासी समाज से गहरा संबंध है। सामाजिक कार्यकर्ता राकेश देवड़े बिरसावादी जयस बिरसा ब्रिगेड ने बताया है कि महुआ के पेड़ और प्राचीन आदिवासी समाज का बहुत गहरा नाता है, जब अनाज नहीं था तब आदिम आदिवासी समाज के लोग महुआ के फल को खाकर अपना जीवन गुजारते थे, आदिवासी समाज के पारंपरिक सांस्कृतिक लोकगीतों में महुआ के गीत गाये जाते हैं। विशेष प्राकृतिक अवसरों पर आज भी महुआ के पेड़ की पूजा की जाती है।

 

 


Saturday, June 10, 2023


हर रिश्ते को थोड़ी परवरिश चाहिये,

थोड़ी धूप, थोड़ी छाँव चाहिये,

स्नेह का जल, प्यार के छींटे चाहिये,

अपनेपन की थोड़ी हवा चाहिये।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, June 9, 2023


फूल ने दिये

रंग, महक और

फल की आस।


                 डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, June 8, 2023


हौंसलों से ही

छूते आकाश हम

परों से नहीं।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, June 7, 2023

 

कल्प वृक्ष-च्यूरा वृक्ष


डॉ. मंजूश्री गर्ग

च्यूरा एक सदाबहार बहुउपयोगी वृक्ष है। इसे तेजी से बढ़ने वाले तिलहन मूल का वृक्ष भी कहते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम डिप्लोवनेमा बूटीरेशिया है। भारत में इसे मक्खन वृक्ष या बटर ट्री(Butter tree) के नाम से भी जाना जाता है। च्यूरा वृक्ष को मैदानी भागों में पाये जाने वाले बहुउपयोगी महुआ वृक्ष की पहाड़ी प्रजाति का माना जाता है। भारत के पहाड़ी राज्यों उत्तराखंड, कश्मीर, सिक्किम और भूटान में बहुतायत सा पाये जाते हैं। उत्तराखंड के कुमायूँ मंडल में अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चम्पावत जिले में काली, पनार, रामगंगा और सरयू नदी, नैनीताल के पास भीमताल के आस-पास के स्थानों में च्यूरा के वृक्ष बहुत अधिक हैं।

 

च्यूरा का वृक्ष ऊँचा और तना मजबूत होता है। इसकी ऊँचाई 15 मी. से 22 मी. तक होती है तथा तने की चौड़ाई 1.5 मी. से 3 मी. तक होती है। च्यूरा वृक्ष की पत्तियाँ 20-25 से. मी. लम्बी और 9-18 से. मी. चौड़ी होती हैं जो शाखाओं के अग्रभाग पर गुच्छे के रूप में लगी होती हैं। इनकी पत्तियाँ शुभ मानी जाती हैं और आम के पत्तों की तरह बंदनवार बनाने के काम आती हैं। साथ ही पौष्टिक होने के कारण दुधारू पशुओं के चारे के रूप में पत्तियों का प्रयोग किया जाता है।

 

च्यूरा के फूल सफेद या पीले रंग के होते हैं जो जनवरी से अक्टूबर महीने के बीच खिलते हैं। फूलों का व्यास 2.0 से 2.5 से. मी. होता है। फूल बहुत ही सुगंधित होता है जिसके कारण मधुमक्खियाँ इनकी ओर आकर्षित होती हैं। इनके फूलों से प्राप्त शहद उत्तम स्वादिष्ट व औषधीय गुणों से भरपूर होता है। च्यूरा के फल का गूदा स्वादिष्ट, मीठा, सुगंधित व रसीला होता है। इसके फल के गूदे में शर्करा की मात्रा बहुत अधिक होती है, जिससे स्थानीय लोग गुड़ बनाते हैं. गूदे के अवशेषों को पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है।

 

च्यूरा के फलों के अन्दर 1.5 से. मी. से 2.0 से.मी. लम्बाई वाले काले चमकदार लगभग बादाम के आकार के बीज होते हैं जिनके अंदर सफेद गिरी होती है। इनके बीजों का उपयोग वनस्पति घी बनाने में किया जाता है और घी की तरह ही खाने में प्रयोग किया जाता है। च्यूरा के बीजों से प्राप्त घी देसी घी के समान ही गुणकारी होता है। च्यूरा वृक्ष की जड़ों की भूमि पर मजबूत पकड़ होती है। जिस कारण यह वृक्ष पहाड़ी ढ़लानों पर भू-कटाव को रोकने में अत्यधिक उपयोगी माना जाता है।

 

इस प्रकार च्यूरा वृक्ष का लगभग प्रत्येक भाग किसी न किसी रूप में मानव जीवन में अपनी अहम् भूमिका निभाता है। इसीलिये च्यूरा वृक्ष को कल्प-वृक्ष भी कहते हैं।

 

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Tuesday, June 6, 2023


धुआं है कहीं

तो आग भी होगी ही

ना बेफ्रिक सो।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, June 5, 2023

 


डॉ. कन्हैया लाल नंदन


डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

जन्म-तिथि- 1जुलाई, सन् 1933 ई. उत्तर प्रदेश

पुण्य-तिथि- 25 सितंबर, सन् 2010 ई.

 

कन्हैयालाल नंदन हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध पत्रकार, साहित्यकार, मंचीय कवि व गीतकार थे। नंदन जी का जन्म उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के परदेसपुर गाँव में हुआ था। नंदन जी ने डी. ए. वी. कॉलेज, कानपुर से बी. ए. किया और प्रयागराज विश्वविद्यालय, प्रयागराज से एम. ए. किया। भावनगर विश्वविद्यालय से पीएच. डी. की।

 

प्रारम्भ में कन्हैयालाल नंदन ने अध्यापन कार्य किया। चार बर्षों तक मुबंई विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया. उसके बाद पत्रकारिता से जुड़े। सन् 1961 ई. से 1972 तक टाइम्स ऑफ इंडिया की साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग के संपादक रहे। 1972 से दिल्ली में क्रमशः पराग, सारिका, दिनमान पत्रिकाओं के संपादक रहे। तीन वर्ष तक दैनिक नवभारत टाइम्स में फीचर संपादन किया। 6 वर्ष तक हिंदी संडे मेल में प्रधान संपादक रहने के बाद 1994 में इंडसइंड मीडिया में निर्देशक पद पर रहे।

 

कन्हैयालाल नंदन को 1999 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त भारतेन्दु पुरस्कार, अज्ञेय पुरस्कार, मीडिया इंडिया पुरस्कार, कालचक्र पुरस्कार, रामकृष्ण जयदयाल सद्भावना पुरस्कार, आदि से भी नंदनजी को सम्मानित किया गया।

 

कन्हैयालाल नंदन ने 36 से अधिक पुस्कतें लिखीं, इनमें से प्रसिद्ध कृतियाँ हैं- लकुआ का शाहनामा, घाट-घाट का पानी, अंतरंग नाट्य परिवेश, आग के रंग, अमृता शेरगिल, समय की दहलीज, बंजर धरती पर इंद्रधनुष, गुजरा कहाँ-कहाँ से।

कन्हैयालाल नंदन द्वारा लिखित श्रृंगार रस की एक कविता के कुछ अंश-

 

एक नाम अधरों पर आया,

अंग-अंग चंदन वन हो गया।

 

बोल हैं कि वेद की ऋचायें,

सांसों में सूरज उग आये,

आँखों में ऋतुपति के छंद तैरने लगे,

मन सारा नील गगन हो गया।

 

गंध गुंथी बाहों का घेरा,

जैसे मधुमास का सबेरा,

फूलों की भाषा में देह बोलने लगी,

पूजा का एक जतन हो गया।

 

                                         कन्हैयालाल नंदन

 

 

           

 

 

Sunday, June 4, 2023


हमेशा बहे

अनुकूल ही हवा

संभव नहीं।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, June 3, 2023


तुम आओ या ना आओ,

हम तुम्हारे दरस को आते रहेंगे।

 

कभी चाँदनी बन मुस्कुरायेंगे,

कभी बन बदली बरस जायेंगे।

 

कभी फूल बन मुस्कुरायेंगे,

कभी बन तितली उड़ जायेंगे।

                    डॉ. मंजूश्री गर्ग