Sunday, April 30, 2023


सब कुछ कह दूँगी

 

सब कुछ कह दूँगी,

राज सारे खोल दूँगी।

लगता नहीं; क्योंकि?

सामने जब तुम होते हो,

कुछ भी कहने की हालत में,

तब हम नहीं होते।


                     डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, April 28, 2023

 

कान्हा का प्यार ------

राधा और ललिता दोनों

सखी थीं कान्हा की.

करती थीं प्यार कान्हा से।

पर, जानती थी ललिता

मैं चाहे कितना करूँ प्यार कान्हा से

कान्हा का प्यार राधा, सिर्फ राधा के लिये है।


                        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Thursday, April 27, 2023



आम्र-मंजरी

कामदेव के वाण

पंचवाणों में।


                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, April 26, 2023


जिंदगी सारी

दो गुना दो में कटी

फिर भी खाली।


      डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, April 25, 2023


गीत

 

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

चाँदनी रात में फिर-फिर के आया करो,

सो भी जाऊँ मैं अगर, तुम जगाया करो,

      गीत प्यार के गाया करो।

 

हर-सिंगार सी बिछकर जीवन में,

सूने मन को महकाया करो,

      गीत प्यार के गाया करो।

 

निर्झर सी बहकर जीवन में

तन की  तपन बुझाया करो,

     गीत प्यार के गाया करो।

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Monday, April 24, 2023


अंश हो तुम

काँटा भी चुभे तुम्हें

होती चुभन।


             डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, April 23, 2023


कृष्ण दीवानी

विष का पियाला पी

नाची है मीरा।


                                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, April 22, 2023


दर्पण जैसे

आईना बनो तुम

रूप निहारूँ।


                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, April 21, 2023

 


छंद-विधान

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

हिन्दी भाषा के शब्द छन्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों से सम्भव है- छन्दस और छन्दक। छन्दक का अर्थ होता है हाथ में धारण करने वाला विशेष आभूषण और पाणिनी की अष्टाध्यायी में छन्दस शब्द को वेदों का बोधक बताया है। अमर कोश(छठी शताब्दी) में छन्द शब्द से अर्थ मन की बात या अभिप्राय लिया गया है। छन्द को वेद मंत्रों का आधार माना गया है। इसीलिये कहा गया है कि छन्दः पादौ तु वेदस्य

 

छन्द में आबद्ध पंक्तियाँ सहज ही कंठस्थ हो जाती हैं, इसीलिये संस्कृत-साहित्य से लेकर अब तक हिन्दी-कविता साहित्य, अपवाद स्वरूप प्रगतिवादी कविता को छोड़कर, छंदबद्ध ही लिखा जाता रहा है। छन्द के लिये कुछ बातों का होना आवश्यक है जैसे- चरण, गति, यति, लय और मात्रा।

1. चरण- चरण से अभिप्राय पंक्ति से है। छंद की प्रत्येक पंक्ति में वर्ण की संख्या या मात्राओं की संख्या या वर्ण वृत्तों की संख्या समान रहती है।

2. गति- गति से अभिप्राय प्रवाह से है। गति के कारण ही काव्य-पाठ में लय बनती है, बीच में रूकावट पैदा नहीं होती। गति के विषय में पं राम बहोरी शुक्ल ने कहा है- प्रत्येक छंद में मात्राओं या वर्णों की नियमित संख्या होने से ही काम नहीं चलता। उसमें एक प्रकार का प्रवाह भी होना चाहिये, जिससे पढ़ने मे कहीं रूकावट सी न जान पड़े। इस प्रवाह को गति कहते हैं।

3. यति- छंद बद्ध कविता के गायन के समय, समय-समय पर कुछ देर रूकना होता है, इसे यति कहते हैं। यति के माध्यम से कविता पाठ के समय ना तो पाठक का साँस टूटता है और ना लय बिगड़ती है। यति के विषय में पं राम बहोरी शुक्ल ने कहा है, बहुत से छंदों में बहुधा चरण के किसी स्थल पर रूकने या विराम की भी आवश्यकता होती है। इसके लिये नियमित वर्णों या मात्राओं पर थोड़ी देर रूकना पड़ता है। इस रूकने की क्रिया को यति, विराम या विश्राम कहते हैं।

4. लय- छंद में लय का विशेष महत्व है। लय का शाब्दिक अर्थ है- एक पदार्थ का दूसरे में मिलना, विलीन होना , मग्न होना। लय के माध्यम से ही एक पंक्ति के भाव दूसरी पंक्ति में विलीन होते जाते हैं।

5. मात्रा- मात्रा की परिभाषा देते हुये पं. राम बहोरी शुक्ल ने कहा है- किसी स्वर के उच्चारण में जो समय लगता है उसकी अवधि को मात्रा कहते हैं। इसी आधार पर दो मात्रायें मानी गयी हैं एक लघु और दूसरी गुरू

लघु मात्रा- जब किसी व्यंजन वर्ण में अ, इ, उ, ऋ,लृ कोई लघु स्वर मिलता है या लघु स्वर स्वतंत्र रूप से आता है तो लघु मात्रा मानी जाती है। इसके उच्चारण में समय कम लगता है। लघु मात्रा का चिह्न( I ) है और गणना करते समय एक मात्रा गिनी जाती है।

जब किसी व्यंजन वर्ण में आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ कोई दीर्घ स्वर संयुक्त होता है या दीर्घ स्वर स्वतंत्र रूप से आता है तो गुरू मात्रा मानी जाती है। इसके उच्चारण में समय अधिक लगता है। इसका चिह्न( S ) है और गणना करते समय दो मात्रायें गिनी जाती हैं।

 

हिन्दी में छंदों की तीन कोटियाँ हैं- वर्णिक, मात्रिक एवम् वर्णवृत्त।

वर्णिक छंद- वर्णिक छंदों में वर्णों(अक्षरों) की संख्या गिनी जाती हैं इनमें मात्राओं का महत्व नहीं होता। जैसे- कवित्त, मनहरण, हाइकु या घनाक्षरी छंद।

कवित्त का उदाहरण-

पहला चरण- भर दीजिये दिलों को, नव चेतना से फिर, रस की बरसती फुहार बन जाइये।

                  8 वर्ण + 8 वर्ण + 15 वर्ण

दूसरा चरण- नयनों मे आये तो भी, हँसने की प्रेरणा दे, आप ऐसी आँसुओं की धार बन जाइये।

                  8 वर्ण + 8 वर्ण + 15 वर्ण

तीसरा चरण- पापियों के पाप का विनाश करने के लिये, आज फिर तीर-तलवार बन जाइये।

                  8 वर्ण + 8 वर्ण + 15 वर्ण

चौथा चरण- एक प्रज्वलित भाव-पुंज बन जाइये कि खौलता हुआ कोई विचार बन जाइये।

                  8 वर्ण + 8 वर्ण + 15 वर्ण

मात्रिक छंद- मात्रिक छंदों में प्रत्येक पंक्ति में मात्रायें गिनी जाती हैं। आधे अक्षर को कोई मात्रा नहीं दी जाती। आधे अक्षर से पहले वाले अक्षर को गुरू मान लिया जाता है यदि आधे अक्षर से ठीक पहले वाला अक्षर गुरू है तो आधे अक्षर को कोई मात्रा नहीं दी जाती। दोहा, चौपाई छंद मात्रिक छंद हैं। दोहा में दो पंक्तियाँ होती हैं। 13 और 11 मात्रा पर यति होती है और अंत में तुकांत होता है।

दोहा का उदाहरण-

पहली पंक्ति- भरी दुपहरी में खिले, गुलमोहर के फूल।

            13 मात्रायें+11 मात्रायें

दूसरी पंक्ति- मन में सारे घुल गये उदालियों के शूल।।

            13 मात्रायें +11 मात्रायें

वर्ण वृत्त छंद- वर्ण वृत्त छंदों की रचना गणों के आधार पर होती है। इसका सूत्र है यमाता राजभान सलगा। तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं। इन तीन वर्णों में दो एक जाति का और एक एक जाति का होता है। केवल दो गण ऐसे हैं जिनमें एक जाति के ही तीनों वर्ण होते हैं। यहाँ जाति से अभिप्राय लघु एवम् गुरू वर्णों से है। गुरू और लघु के आधार पर गणों के तीन वर्ग बनते हैं-

प्रथम- भजसा-      भगण        S I I

                  जगण       I S I

                  सगण        I I S

द्वितीय- यरता-     यगण        I S S

                  रगण        S I S

                                    तगण        S S I

तृतीय- मन-        मगण        S S S

                  नगण        I I I

उपर्युक्त वर्गीकरण में गणों का नामकरण गण में जाति(गुरू या लघु) विशेष के आधार पर किया गया है जैसे- भगण में भ वर्ण आदि में आया है और भजसा में भ आदि में आया है शेष दो वर्ण बाद में आये हैं, इसी प्रकार अन्य गणों का भी नामकरण किया गया है। अधिकांश हिन्दी गजलें वर्ण वृत्त् छंदों में ही लिखी जा रही हैं। सवैया वर्ण वृत्त छंद है।

सवैया का उदाहरण- सवैया छंद में चार चरण होते हैं प्रत्येक चरण में तुकांत होता है और गणों की व्यवस्था समान रहती है।

यदि आज मिले न हमें प्रिय तो कल देह में श्वास रहे न रहे।

सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा

आठ सगण के साथ यह दुर्मिल सवैया है।

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Thursday, April 20, 2023


पतंग सम

उडूँ वहीं तक मैं

तुम दो ढ़ील।


                 डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, April 19, 2023


जैसे कोई पेंटिंग फ्रेम में लगकर और भी सुन्दर लगती है।

वैसे ही अनकहे रिश्ते रिश्तों में बँधकर और भी सुन्दर लगते हैं।

                    डॉ. मंजूश्री गर्ग         

  

Tuesday, April 18, 2023


एक बार आ जाओ कान्हा!

 

एक बार आ जाओ कान्हा!

बीहड़ वन में खो गये हैं हम।

अँधेरे में गुम हैं राहे सभी

आ के उजाला दिखा जाओ कान्हा!

एक बार आ जाओ कान्हा!

 

सौंप दी जीवन-डोर तुम्हारे हाथ

किसी और से क्यों उम्मीद रखें हम।

किस राह पर है चलना हमें

आ के हमें बता जाओ कान्हा!

एक बार आ जाओ कान्हा!

                    डॉ. मंजूश्री गर्ग         

  

Monday, April 17, 2023


मैं फूल नहीं कि सुबह होते हुये मुस्कुराऊँ,

ना ही कोई तारा कि रात होते ही जगमगाऊँ।

मुझे महकने और चहकने के लिये,

अपना सूरज-चाँद चाहिये।

                    डॉ. मंजूश्री गर्ग          

Sunday, April 16, 2023


अधर द्वार

दीप राम नाम का

रोशन मन।


                     डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, April 15, 2023

 

अभिमन्यु और उत्तरा का विवाह

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

रणभूमि में वीरगति तो अनेकों वीर प्राप्त करते हैं लेकिन जो वीर अद्भुत रूप से रण लड़ते हैं उनकी कथा अविस्मरणीय रहती है. ऐसी ही कथा है अभिमन्यु की। महाभारत के युद्ध में युद्ध संरचना चक्रव्यूह में से निकलने का मार्ग न जानते हुये भी अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में प्रवेश किया और अकेले अनेकों वीरों से युद्ध लड़ा। अंत में रथ के क्षतिग्रस्त हो जाने पर रथ के पहिये को ही अपना हथियार बना लिया।

 

अभिमन्यु अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र व श्रीकृष्ण के भान्जे(बहन का लड़का) थे। बचपन से ही अभिमन्यु को शस्त्रों से प्रेम था। युद्धाभ्यास करते हुये वह खाना-पीना, खेलना सब भूल जाते थे. एक बार जब सुभद्रा अभिमन्यु को ढ़ूढ़ते हुये श्रीकृष्ण के कक्ष में आयीं तो श्रीकृष्ण ने अभिमन्यु को अपने पीछे छुपा लिया। सुभद्रा अपने पुत्र के इस व्यवहार से बहुत क्षुब्ध थीं। तब श्रीकृष्ण ने अपनी बहन सुभद्रा को समझाते हुये कहा कि हे सुभद्रे! तुम्हारा पुत्र भविष्य में इतिहास रचेगा और जग, अभिमन्यु को तुम्हारे पुत्र के रूप में नहीं वरन् तुम अभिमन्यु की माता हो, के रूप में जानेगा।

 

अभिमन्यु को बचपन में ना खेलने का शौक था ना युवा होने पर प्रेम करने का। जहाँ अभिमन्यु के पिता अर्जुन ने न केवल द्रौपदी और सुभद्रा से विवाह किया वरन् अन्य राजकुमारियों से भी विवाह किया जिनमें चित्रांगदा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। न जाने क्या आकर्षण था अर्जुन की आँखों में कि अक्सर राजकुमारियाँ उन पर मोहित हो जाती थीं। यहाँ तक कि अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा(मत्स्य देश के राजा विराट की पुत्री) को भी पहले अर्जुन से ही प्रेम हुआ था। जब अज्ञातवास के समय पाँचों पांडव और द्रौपदी ने वेष बदलकर राजा विराट के यहाँ शरण ली थी, तब अर्जुन वृहन्नला बनकर राजकुमारी उत्तरा को नृत्य सिखाया करते थे। नृत्य सीखते समय कब राजकुमारी अर्जुन पर मोहित हो गयीं पता ही नहीं चला और मन ही मन उत्तरा अर्जुन से प्रेम करने लगीं। अज्ञातवास समाप्त होने पर जब उत्तरा को पता लगा कि जो उसे नृत्य सिखाते हैं वे स्वयं अर्जुन हैं तो उत्तरा ने अर्जुन से विवाह करने की इच्छा प्रकट की।

लेकिन अर्जुन ने कहा, उत्तरा! तुम मेरी शिष्या हो और मैंने हमेशा तुम्हें अपनी पुत्री के रूप में देखा है। मैं तुमसे विवाह नहीं कर सकता। हाँ! यदि तुम चाहो तो मेरे और लुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु से विवाह कर सकती हो, जो लगभग तुम्हारी ही आयु का है और देखने मेरे जैसा ही है, वीर है, पराक्रमी है। तुम्हारे लिये उपयुक्त वर रहेंगे।

 

अर्जुन का प्रस्ताव उत्तरा के पिता राजा विराट को भी उचित लगा और उन्होंने उत्तरा को अभिमन्यु से विवाह करने के लिये समझाया। उत्तरा ने भी कहा, जैसा आप दोनों(उत्तरा के पिता राजा विराट और उत्तरा के गुरू अर्जुन) उचित समझें। अभिमन्यु ने भी आज्ञाकारी पुत्र की भाँति अर्जुन द्वारा उत्तरा से विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।

 

 

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Friday, April 14, 2023


जीवन-ताप

दूध मुँही मुस्कान

खो गयी कहीं।


                          डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, April 13, 2023


बन के खुशबू तेरे नजदीक रहे हैं अक्सर।

खाक बन कर तेरी राहों में बिखर जाते हैं।।


                             मुक्ता शर्मा 

Wednesday, April 12, 2023

 


आ जाओ सनम!

 

आ जाओ सनम!

महावर कर रही इंतजार,

पायल की छम-छम रूठी है।

 

आ जाओ सनम!

मेंहदी कर रही इंतजार,

कंगन की खन-खन रूठी है।

 

आ जाओ सनम!

बिंदिया कर रही इंतजार,

अधरों की मुस्कान रूठी है।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Tuesday, April 11, 2023


मत आँख मिलाओ मुझसे, प्रखर धूप में जल जाओगे।

मैं  सूरज हूँ  भोर का, साँझ  का  नहीँ।। 


      डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, April 10, 2023


खुशबुओं के मेलों में भटकते रहे हम।

मन में बसी खुशबू मिली कहीं नहीं।।


     डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, April 9, 2023



हाइकु

डॉ. मंजूश्री गर्ग


गंगोत्रीतीर्थ

गोमुख से निकली

गंगा की धारा.

1.

यमुनोत्री से

यमुनाजी निकली

श्यामल धारा.

2. 

Saturday, April 8, 2023


हो आदि शक्ति तुम ही

 

निराकार हो या साकार तुम,

हो आदि शक्ति तुम ही।

नदियाँ इठलाती चलतीं,

फलती-फूलती प्रकृति तुम से ही।

गृह-नक्षत्र रहते घूमते,

चाँद चाँदनी बरसाता तुम से ही।

लीन प्रलय में होकर एक दिन,

नव जीवन सब पाते तुम से ही।


                डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, April 7, 2023


काश! हम मोर होते।

मोर पंख बन मुकुट में विराजते कान्हा।

 

काश! हम बाँस होते कान्हा।

बाँसुरी बन अधरों पे विराजते कान्हा।

 

काश! हम कदंब होते।

हमारी ही छाया में मुरली बजाते कान्हा।

 

फिर कभी तुम हमसे

पास-पास रहके, ना दूर रहते कान्हा।

  

   डॉ. मंजूश्री गर्ग

Thursday, April 6, 2023


तेरी जुल्फों के साये में शामें सुहानी हैं,

हैं रोशन रातें तेरी ही मुस्कानों से।

बज उठते हैं जब तेरी यादों के घुँघरू

जिंदगी कई सरगमें सुनाती है हमें।।


    डॉ. मंजूश्री गर्ग