अभिमन्यु और उत्तरा का विवाह
डॉ. मंजूश्री गर्ग
रणभूमि में वीरगति तो
अनेकों वीर प्राप्त करते हैं लेकिन जो वीर अद्भुत रूप से रण लड़ते हैं उनकी कथा
अविस्मरणीय रहती है. ऐसी ही कथा है अभिमन्यु की। महाभारत के युद्ध में युद्ध
संरचना चक्रव्यूह में से निकलने का मार्ग न जानते हुये भी अभिमन्यु ने चक्रव्यूह
में प्रवेश किया और अकेले अनेकों वीरों से युद्ध लड़ा। अंत में रथ के
क्षतिग्रस्त हो जाने पर रथ के पहिये को ही अपना हथियार बना लिया।
अभिमन्यु अर्जुन और सुभद्रा
के पुत्र व श्रीकृष्ण के भान्जे(बहन का लड़का) थे। बचपन से ही अभिमन्यु को
शस्त्रों से प्रेम था। युद्धाभ्यास करते हुये वह खाना-पीना, खेलना सब भूल जाते थे.
एक बार जब सुभद्रा अभिमन्यु को ढ़ूढ़ते हुये श्रीकृष्ण के कक्ष में आयीं तो
श्रीकृष्ण ने अभिमन्यु को अपने पीछे छुपा लिया। सुभद्रा अपने पुत्र के इस व्यवहार
से बहुत क्षुब्ध थीं। तब श्रीकृष्ण ने अपनी बहन सुभद्रा को समझाते हुये कहा कि हे
सुभद्रे! तुम्हारा पुत्र भविष्य में इतिहास रचेगा और जग,
अभिमन्यु को तुम्हारे पुत्र के रूप में नहीं वरन् तुम अभिमन्यु की माता हो, के रूप
में जानेगा।
अभिमन्यु को बचपन में ना खेलने
का शौक था ना युवा होने पर प्रेम करने का। जहाँ अभिमन्यु के पिता अर्जुन ने न केवल
द्रौपदी और सुभद्रा से विवाह किया वरन् अन्य राजकुमारियों से भी विवाह किया जिनमें
चित्रांगदा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। न जाने क्या आकर्षण था अर्जुन की
आँखों में कि अक्सर राजकुमारियाँ उन पर मोहित हो जाती थीं। यहाँ तक कि अभिमन्यु की
पत्नी उत्तरा(मत्स्य देश के राजा विराट की पुत्री) को भी पहले अर्जुन से ही प्रेम
हुआ था। जब अज्ञातवास के समय पाँचों पांडव और द्रौपदी ने वेष बदलकर राजा विराट के
यहाँ शरण ली थी, तब अर्जुन वृहन्नला बनकर राजकुमारी उत्तरा को नृत्य सिखाया
करते थे। नृत्य सीखते समय कब राजकुमारी अर्जुन पर मोहित हो गयीं पता ही नहीं चला
और मन ही मन उत्तरा अर्जुन से प्रेम करने लगीं। अज्ञातवास समाप्त होने पर जब
उत्तरा को पता लगा कि जो उसे नृत्य सिखाते हैं वे स्वयं अर्जुन हैं तो उत्तरा ने
अर्जुन से विवाह करने की इच्छा प्रकट की।
लेकिन अर्जुन ने कहा, “उत्तरा! तुम मेरी शिष्या
हो और मैंने हमेशा तुम्हें अपनी पुत्री के रूप में देखा है। मैं तुमसे विवाह नहीं
कर सकता। हाँ! यदि तुम चाहो तो मेरे और लुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु
से विवाह कर सकती हो, जो लगभग तुम्हारी ही आयु का है और देखने मेरे जैसा ही है,
वीर है, पराक्रमी है। तुम्हारे लिये उपयुक्त वर रहेंगे।“
अर्जुन का प्रस्ताव उत्तरा
के पिता राजा विराट को भी उचित लगा और उन्होंने उत्तरा को अभिमन्यु से विवाह करने
के लिये समझाया। उत्तरा ने भी कहा, जैसा आप दोनों(उत्तरा के पिता राजा विराट और
उत्तरा के गुरू अर्जुन) उचित समझें। अभिमन्यु ने भी आज्ञाकारी पुत्र की भाँति
अर्जुन द्वारा उत्तरा से विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।
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