बे-वक्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे।
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा।
बशीर बद्र
तेरी बाहों में
सावन के झूलों की
पेंगे मिली हैं।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
सूर के पद
तुलसी की चौपाई
युगों ने गायी।
एक तुम्हारे आ जाने से
कितने मौसम बदल गये।
आँखों की बरसात थम गयी
अधरों पे धूप खिल गयी।
प्यार की बयार क्या बही
आँगन खुशबू बिखर गयी।
ख्बाबों में गुम थे कि सहसा तुम आ गये।
खड़े सोचते रहे कि ख्बाब है या हकीकत।
सुबह-सबेरे आशा की किरण कहती है,
बरसेंगे आज उम्मादों के बादल।
दिन कड़ी धूप में गुजर जाता है,
शाम होते ही फिर छा जाते उदासी के बादल।
जादुई खेल
चमत्कार हाथों का
धोखा आँखों को।
उत्सव वाले दिन कहाँ?
दो-चार फूलों के खिलने से
उपवन नहीं सजा करते।
दो-चार दीपक के जलने से
दीपावली नहीं सजतीं।
दो-चार बूँदों के गिरने से
बरसात नहीं होती।
दो-चार जन के सजने से
उत्सव नहीं मना करते।
कोमल तंतु
मुड़ जायेंगे, पर
टूटेंगे नहीं।