Sunday, September 30, 2018

बड़े साब हैं आप तो

डॉ0 मंजूश्री गर्ग


बड़े साब हैं आप तो
दिल्ली में रहकर
दिल्ली से
अनजान हैं आप तो।

वातानुकूलित
सड़कें आपकी
सर्दी-गर्मी से
अनजान हैं आप तो।

लाल बत्ती में सफर
ट्रैफिक में रहकर
ट्रैफिक जाम से
अनजान हैं आप तो।

चौबीस घंटे बिजली
पावर में रहकर
पावर कट से
अनजान हैं आप तो।
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Thursday, September 27, 2018



श्री सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय


डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 7 मार्च, सन् 1911 ई0
पुण्य-तिथि- 4 अप्रैल, सन् 1987 ई0

श्री सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय निबन्धकार, कथाकार, सम्पादक, अध्यापक, स्वतन्त्रता सेनानी, एक सैनिक बहुमुखी प्रतिभा के कवि थे. आपने हिन्दी साहित्य में प्रयोगवाद एवम् नयी कविता को प्रतिष्ठित किया. आपके पिता पं0 हीरानंद शास्त्री प्राचीन लिपियों के विशेषज्ञ थे. पिता की नौकरी में स्थान परिवर्तन के कारण आपका बचपन कई नगरों में बीता व शिक्षा भी अलग-अलग जगह हुई. सन् 1921 ई0 में आपके पिता ने आपका यज्ञोपवीत संस्कार कराके आपको वात्स्यायान कुल नाम दिया. अज्ञेय आपका उपनाम है. आपने लाहौर से बी0 एस0 सी0 और अंग्रेजी में एम0 ए0 किया.

अज्ञेय जी ने स्वतन्त्रता आंदोलन में भी भाग लिया. सन् 1930 ई0 में भगतसिंह के साथ बम बनाते हुये पकड़े गये और जेल गये. छह वर्ष तक जेल और नजरबंदी भोगने के बाद स्वतन्त्रता आंदोलन छोड़कर सन् 1936 ई0 में आगरा से प्रकाशित सैनिक समाचार पत्र के संपादक मंडल में शामिल हो गये. कुछ दिन ऑल इंडिया रेडियो में रहने के बाद सन् 1943 ई0 में अंग्रेजी सेना में सैनिक के पद पर नियुक्त हुये. सन् 1946 ई0 में सैन्य सेवा छोड़कर आप एकनिष्ठ होकर हिन्दी साहित्य की सेवा में संलग्न हुये. प्रतीक, नया प्रतीक, दिनमान, नवभारत टाइम्स, आदि विविध पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया.

अज्ञेय जी ने सन् 1943 ई0 में सात कवियों के वक्तव्य और कविताओं को लेकर एक लंबी भूमिका के साथ संपादन किया, इसके बाद दूसरा सप्तक, तीसरा सप्तक, चौथा सप्तक संपादित किया. चारों सप्तक के माध्यम से आपने नये कवियों को प्रतिष्ठित किया व कविता को नया मोड़ दिया. आपने स्वयं लम्बी कवितायें भी लिखी हैं और बहुत छोटी कवितायें भी; लेकिन सभी में गहन अनुभूति की अभिव्यक्ति हुई है.
उदाहरण-
छोटी कविता-

उड़ गई चिड़िया
काँपी, फिर
थिर
हो गई पत्ती
           अज्ञेय




लंबी कविता का अंश-

किंतु हम हैं द्वीप। हम धारा नहीं हैं।
स्थिर समर्पण है हमारा। हम सदा से द्वीप हैं स्रोतस्विनी के।
किंतु हम बहते नहीं हैं। क्योंकि बहना रेत होना है।
हम बहेंगें तो रहेंगें ही नहीं।

            अज्ञेय
अज्ञेय जी के प्रसिद्ध काव्य-संग्रह हैं- भग्नदूत, इत्यलम्, हरी घास पर क्षण भर, बाबरा अहेरी, इंद्रधनुष रौंदे हुये, अरी ओ करूणा प्रभामय, आँगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार, सागर मुद्रा, आदि. शेखर: एक जीवनी प्रसिद्ध उपन्यास है. इसके अतिरिक्त नदी के द्वीप और अपने-अपने अजनबी उपन्यास भी लिखे. विपथगा, परम्परा, कोठरी की बात, शऱणार्थी, जयदोल आपकी प्रसिद्ध कहानियाँ हैं. आपने यात्रा वृतांत भी लिखे हैं- अरे यायावर रहेगा याद, एक बूँद सहसा उछली. उत्तर प्रियदर्शी नाटक भी लिखा. साथ ही निबंध, संस्मरण, डायरियाँ, आलोचना, आदि भी लिखे.

सन् 1964 ई0 में अज्ञेय जी को आँगन के पार द्वार(काव्य-संग्रह) के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला और सन् 1978 ई0 में कितनी नावों में कितनी बार(काव्य-संग्रह) के लिये भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला.

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Monday, September 24, 2018



माना कि चाँद-सूरज
दूर, बहुत दूर हैं हमसे।
पर, आराधना करना कब मना है,
अर्ध्य देना कब मना है।
पहुँचती ही होंगी स्तुति उन तक,
जल-बिन्दु बाष्प बनकर।
जैसे रजत किरणें, स्वर्ण किरणें
पहुँचती हैं हम तक।

               डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Sunday, September 23, 2018




23 सितंबर, सन् 2018 ई0 राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर
के
जन्म-दिन
पर
शत्-शत् नमन

साँस में सौरभ, तुम्हारे वर्ण में गायन भरा है.
सींचता हूँ प्राण को इस गन्ध की भीनी लहर से,
और अंगों की विभा की वीचियों से एक होकर
मैं तुम्हारे रंग का संगीत सुनता हूँ.

                                                      रामधारी सिंह दिनकर


Friday, September 21, 2018



डॉ0 हरिवंशराय बच्चन



डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 27 नबम्बर, सन् 1907 ई0
पुण्य-तिथि- 18 जनवरी, सन् 2003 ई0

डॉ0 हरिवंशराय बच्चन हिन्दी भाषा के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवि हैं. आपकी सबसे अधिक प्रसिद्ध कृति मधुशाला है. मधुशाला से ही हिन्दी काव्य में हालावाद का प्रारम्भ माना जाता है. आपके पिता का नाम श्री प्रताप नारायण श्रीवास्तव था. आपको बाल्यकाल से ही बच्चन कहा जाता था जिसका शाब्दिक अर्थ है बच्चा या संतान. आप इसी नाम( बच्चन ) से मशहूर हुये और बच्चन नाम आपकी आने वाली पीढ़ियों को भी प्रसिद्धि के शिखर तक पहुँचा रही है जैसे- आपके पुत्र अमिताभ बच्चन( बीसवीं सदी के महानायक ).

डॉ0 हरिवंशराय बच्चन ने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम0 ए0 किया था और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य के प्रसिद्ध कवि डब्लू0 बी0 यीट्स की कविताओं पर शोध कार्य किया था. अंग्रेजी में एम0 ए0 और पीएच0 डी0 करने के बाद भी आपकी रूचि हिन्दी साहित्य में रही और आपने अपना लेखन कार्य हिन्दी भाषा में किया व हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में अपना योगदान दिया.

डॉ0 हरिवंशराय बच्चन कवि सम्मेलनों में भी कविता पाठ करते थे. आपके प्रयासों से कवि सम्मेलनों में आये कवियों को पारिश्रमिक देने की प्रथा शुरू हुई. आपने प्रारम्भ में प्रयाग विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया. बाद में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी भाषा के विशेषज्ञ बने. आप राज्यसभा के भी मनोनीत सदस्य रहे. आपकी कृति दो चट्टानें(1968) को हिन्दी कविता का साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ व आत्मकथा के लिये सरस्वती सम्मान दिया गया. सन् 1976 ई0 में  भारत सरकार ने साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में आपके द्वारा किये गये महत्वपूर्ण कार्य के लिये आपको पद्म भूषण से सम्मानित किया.

डॉ0 हरिवंशराय बच्चन की कवितायें व्यैक्तिक होते हुये भी सहज, सरल व ह्रदयग्राही हैं. मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, तेरा घर, निशा निमंत्रण, मिलन यामिनी, आदि प्रमुख काव्य संग्रह हैं. मधुशाला में प्याला, शराब, साकी और मधुशाला(मयखाना) को प्रतीक बनाकर आपने विविध संवेदनाओं(धार्मिक, सामाजिक, राष्ट्रीय) की अभिव्यक्ति की है. जैसे प्रस्तुत पंक्तियों में राष्ट्रीय भावना की अभिव्यक्ति हुई है-

हिम श्रेणी अंगूर लती सी
फैली, हिम जल है हाला।
चंचल नदियाँ साकी बनकर
भरकर लहरों का प्याला।
कोमल कूल करों में अपने
छलकाती निशिदिन चलती।
पीकर खेत खड़े लहराते
भारत पावन मधुशाला।

                 डॉ0 हरिवंशराय बच्चन

डॉ0 हरिवंशराय बच्चन ने अपनी आत्मकथा चार भागों में लिखी है- क्या भूलूँ क्या याद करूँ(1969), नीड़ का निर्माण फिर(1970), बसेरे से दूर(1977), दशद्वार से सोपान तक(1985). काव्य की तरह आपका गद्य भी सहज, सरल भाषा में लिखा गया है. आपने अपनी अधिकांश कविताओं में अपनी व्यैक्तिक अनुभूतियों की अभिव्यक्ति की है और अपनी आत्मकथा में भी अपने जीवन के बारे में पूरी सच्चाई के साथ वर्णन किया है.

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Tuesday, September 18, 2018



श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान


डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 16 अगस्त, सन् 1904 ई0
पुण्य-तिथि- 15 फरवरी, सन् 1948 ई0

श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान सुप्रसिद्ध कवयित्री, लेखिका व स्वतंत्रता सेनानी थीं. आप बचपन से ही कवितायें रचनें लगीं थीं. आपकी कविताओं में राष्ट्र-प्रेम की भावना भरी हुई है. आपकी रचनायें कविता हो या कहानी बहुत ही सरल व ह्रदयग्राही भाषा में लिखी हुई हैं. झाँसी की रानी कदंब का पेड़ आपकी बहुचर्चित कवितायें हैं. आपने सन् 1921 ई0 में गाँधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया. असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली आप प्रथम महिला थीं. असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण आपको दो बार जेल भी जाना पड़ा.

श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताओं में बच्चे आपस में खेल भी खेलते हैं तो स्वतंत्रता सेनानियों के चरित्र अभिनीत करते हैं. उदाहरण-

सभा-सभा का खेल आज हम खेलेंगे,
जीजी आओ मैं गाँधी जी, छोटे नेहरू, तुम सरोजिनी बन जाओ।
मेरा तो सब काम लंगोटी गमछे से चल जाएगा,
छोटे भी खद्दर का कुर्ता पेटी से ले आएगा।
                   सुभद्रा कुमारी चौहान

ऐसे ही खिलौने भी बच्चे वीर चरित्र के अनुरूप खरीदते हैं-
वह देखो माँ आज
खिलौनेवाला फिर से आया है
कई तरह के सुंदर-सुंदर
नए खिलौने लाया है.


मैं तो तलवार खरीदूँगा माँ
या मैं लूँगा तीर-कमान
जंगल में जा, किसी ताड़का
को मारूँगा राम समान.
            सुभद्राकुमारी चौहान


श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान  के प्रमुख कविता संग्रह हैं- त्रिधारा, मुकुल और कहानी संग्रह हैं- बिखरे मोती, उन्मादिनी, सीधे-सादे चित्र.

भारतीय डाक तार विभाग ने 6 अगस्त, सन् 1976 ई0 में श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में डाक टिकट जारी किया व भारतीय तटरक्षक सेना ने 28 अप्रैल, सन् 2006 को श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान को सम्मानित करने के लिये नये नियुक्त एक तटरक्षक जहाज को सुभद्रा कुमारी चौहान नाम दिया.

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Sunday, September 16, 2018




सूरज ना होता,
सुबह ना होती,
ना जाने दिन कैसे होता!

फूल ना होते,
गंध ना होती,
ना जाने उपवन कैसा होता!

तुम ना होते,
प्यार ना होता,
ना जाने जीवन कैसा होता!

                    डॉ0 मंजूश्री गर्ग



Friday, September 14, 2018




14 सितंबर, सन् 2018 ई0 हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें


हिन्दी भाषा को भारत की राष्ट्र भाषा का गौरव दिलाने वाले
विद्वानों, साहित्यकारों व राजनेताओं को शत्-शत् नमन



हिन्दी दिवस के शुभ अवसर पर हिन्दी प्रेमियों के लिये अनुपम भेंट-

हिन्दी भाषा का मानक रूप
(हिन्दी व्याकरण)



डॉ0 मंजूश्री गर्ग
प्रस्तुत पुस्तक में सरल, सुबोध भाषा में हिन्दी व्याकरण को समझाने का प्रयास किया गया है. साथ ही हिन्दी भाषा का क्रमिक विकास, हिन्दी भाषा की शब्द-संपदा के स्रोतों, पद-बंध, प्रतीक, बिम्ब, लोकोक्ति, मुहावरे, अलंकार, आदि से भी परिचित कराया गया है.

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