Saturday, February 29, 2020



भगवती चरण वर्मा
डॉ. मंजूश्री गर्ग



जन्म-तिथि- 30 अगस्त, सन् 1903 ई.
पुण्य-तिथि- 5 अक्टूबर, सन् 1981 ई.

भगवती चरण वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी. ए. और एल. एल. बी की परीक्षा पास की. आप प्रारम्भ में पत्रकारिता से जुड़े. कुछ समय फिल्म और आकाशवाणी में भी कार्य किया. बाद में स्वतंत्र लेखन कार्य किया. आपको राज्यसभा की भी मानद सदस्यता प्राप्त थी.

भगवती चरण वर्मा ने प्रारम्भ में कवितायें लिखीं. आपकी कवितायें किसी वाद में नहीं बँधी हैं. बहुत ही सरल और सहज भाषा में लिखी हुई सरस कवितायें हैं जो सीधे मन को छू लेती हैं फिर भी साहित्य जगत में उनका उपन्यासकार का रूप अधिक प्रसिद्ध है. कवि के रूप में रेडियो रूपक महाकाव्य, कर्ण, द्रौपदी लिखे जो सन् 1956 ई. में त्रिपथगा नाम से प्रकाशित हुये. इसके अतिरिक्त मधुकण, प्रेम संगीत, मानव भी आपके काव्य संग्रह हैं. रूमानीपन, नियतिवाद, प्रगतिवाद, मानवतावाद आपकी कविताओं की विशेषतायें हैं.

सन् 1932 ई. में भगवती चरण वर्मा ने चित्रलेखा उपन्यास लिखा जो पाप और पुण्य की समस्या पर लिखा गया है. यह उपन्यास हिन्दी साहित्य में एक क्लासिक प्रेमकथा के रूप में विख्यात है. चित्रलेखा पर दो बार हिन्दी फिल्म बनी हैं. टेढ़े-मेढ़े रास्ते भी प्रसिद्ध राजनीतिक उपन्यास है. इसके अतिरिक्त भूले बिसरे चित्र, आखिरी दाँव, अपने खिलौने, तीन वर्ष, सबहिं नचावत राम गोसाईं, सीधी सच्ची बातें, आदि प्रसिद्ध उपन्यास हैं.  

भगवती चरण वर्मा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. काव्य-संग्रह और उपन्यासों के अतिरिक्त राख और चिंगारी(कहानी संग्रह), मेरी कहानियाँ(कहानी संग्रह), मोर्चा बन्दी(कहानी संग्रह), अतीत के गर्त से(संस्मरण), रूपया तुम्हें खा गया(नाटक), साहित्य के सिद्धान्त तथा रूप(साहित्य आलोचना), आदि कृतियाँ भी प्रकाशित हुईं.
भगवती चरण वर्मा को सन् 1971 ई. में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला.

भगवती चरण वर्मा की कविताओं के अंश-

अरूण कपोलों पर लज्जा की
 भीनी-सी मुस्कान लिये
सुरभित श्वासों में यौवन के
अलसाए से गान लिये।

बरस पड़ी हो मेरे उर में
तुम सहसा रसधार बनी
तुम में लय होकर अभिलाषा
एक बार साकार बनी।
(1)
               
मैं कब से ढ़ूँढ़ रहा हूँ
अपने प्रकाश की रेखा।

तम के तट पर अंकित है
निःसीम नियति का लेखा।

देने वाले को अब तक
मैं देख नहीं पाया हूँ।
(2)






Friday, February 28, 2020



शाम! शाम होती है
शाम को क्या नाम दें!
तुम साथ हो तो,
सुहानी होती है।
तुम्हारे बिना शाम,
वीरानी होती है।
                          डॉ. मंजूश्री गर्ग







Thursday, February 27, 2020



चमकेगी ही
विरोधों में प्रतिभा
जैसे दीपक।

                             डॉ. मंजूश्री गर्ग


Wednesday, February 26, 2020



सूरज जैसे
दिशायें जगमग
तेरे आने से।

                                    डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, February 9, 2020



चमकते हैं अभी सितारे, सुबह कहाँ हुई है!
सोने दो अभी, नयनों में सपने सुहाने हैं।

                          डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, February 7, 2020




अरून्धती-महाकाव्य
डॉ. मंजूश्री गर्ग

जगद्गुरू रामभद्राचार्य द्वारा अरून्धती-महाकाव्य लिखा गया है जो 7 जुलाई, 1994 को प्रकाशित हुआ था. लेखक का जन्म वशिष्ठ गोत्र में होने के कारण वशिष्ठ जी की पत्नी अरून्धती का चरित्र लेखक के लिये प्रेरणादायी रहा. सप्तऋषियों में से केवल वशिष्ठजी की पत्नी अरून्धती ही पूजा की अधिकारिणी हैं. यह सम्मान किसी और ऋषि पत्नी को प्राप्त नहीं है.

अरून्धती कर्दम ऋषि और देवहुति की आठवीं संतान हैं. उनका विवाह ब्रह्मा जी के आठवें पुत्र वशिष्ठ जी के साथ सम्पन्न हुआ. ब्रह्मा जी ने ही वशिष्ठ जी और अरून्धती को राम दर्शन का वर दिया था. गाधि राजा का पुत्र विश्वरथ वशिष्ठ से कामधेनु गाय को छीनने का प्रयास करते हैं किन्तु वशिष्ठ के ब्रह्म दण्ड के सामने अपने को असमर्थ पाते हैं. घोर तप करके विश्वरथ विश्वामित्र बनते हैं. विश्वामित्र प्रतिशोध लेने के लिये वशिष्ठ और अरून्धती के एक सौ एक पुत्रों को मृत्यु का शाप देते हैं. पुत्रों के वियोग में दम्पत्ति संयास धारण करते हैं लेकिन ब्रह्मा जी के कहने पर कि तुम्हें श्री राम के दर्शन गृहस्थ आश्रम धारण करने पर ही होंगे. तब वह अयोध्या के पास ही गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हैं. श्रीराम के साथ उनके यहाँ भी एक पुत्र का जन्म होता है जिसका नाम वह सुयश रखते हैं. जब राम चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या आते हैं तो अरून्धती राम और सीता से मिलती हैं.




Thursday, February 6, 2020



अँधेरे कब रूके हैं उजालों के आगे।
निराशायें कब रूकी हैं आशाओं के आगे।
आकाश कब दूर है उड़ानों के आगे।
मंजिल कब दूर है चाहतों के आगे।

                          डॉ. मंजूश्री गर्ग



Wednesday, February 5, 2020



प्रातः नमन!
सूरज वही, फिर
क्यूँ शाम भूले?

                                डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, February 3, 2020



छूने आकाश
चल दिये परिंदे
पक्के इरादे।

                                       डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, February 2, 2020



तुमसे मिल
जिॆंदगी मीठी हुई
नीम सरीखी।

                           डॉ. मंजूश्री गर्ग

Saturday, February 1, 2020




मीलों की दूरी तय कर ली सहज ही।
पर तय ना कर पाये दो पग की दूरी।।

                           डॉ. मंजूश्री गर्ग