अरून्धती-महाकाव्य
डॉ. मंजूश्री गर्ग
जगद्गुरू रामभद्राचार्य द्वारा अरून्धती-महाकाव्य लिखा गया है जो 7 जुलाई,
1994 को प्रकाशित हुआ था. लेखक का जन्म वशिष्ठ गोत्र में होने के कारण वशिष्ठ जी
की पत्नी अरून्धती का चरित्र लेखक के लिये प्रेरणादायी रहा. सप्तऋषियों में से
केवल वशिष्ठजी की पत्नी अरून्धती ही पूजा की अधिकारिणी हैं. यह सम्मान किसी और ऋषि
पत्नी को प्राप्त नहीं है.
अरून्धती कर्दम ऋषि और देवहुति की आठवीं संतान हैं. उनका विवाह ब्रह्मा जी के
आठवें पुत्र वशिष्ठ जी के साथ सम्पन्न हुआ. ब्रह्मा जी ने ही वशिष्ठ जी और
अरून्धती को राम दर्शन का वर दिया था. गाधि राजा का पुत्र विश्वरथ वशिष्ठ से
कामधेनु गाय को छीनने का प्रयास करते हैं किन्तु वशिष्ठ के ब्रह्म दण्ड के सामने
अपने को असमर्थ पाते हैं. घोर तप करके विश्वरथ विश्वामित्र बनते हैं. विश्वामित्र
प्रतिशोध लेने के लिये वशिष्ठ और अरून्धती के एक सौ एक पुत्रों को मृत्यु का शाप
देते हैं. पुत्रों के वियोग में दम्पत्ति संयास धारण करते हैं लेकिन ब्रह्मा जी के
कहने पर कि तुम्हें श्री राम के दर्शन गृहस्थ आश्रम धारण करने पर ही होंगे. तब वह
अयोध्या के पास ही गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हैं. श्रीराम के साथ उनके यहाँ भी एक
पुत्र का जन्म होता है जिसका नाम वह सुयश रखते हैं. जब राम चौदह वर्ष के वनवास के
बाद अयोध्या आते हैं तो अरून्धती राम और सीता से मिलती हैं.
No comments:
Post a Comment