Thursday, February 6, 2020



अँधेरे कब रूके हैं उजालों के आगे।
निराशायें कब रूकी हैं आशाओं के आगे।
आकाश कब दूर है उड़ानों के आगे।
मंजिल कब दूर है चाहतों के आगे।

                          डॉ. मंजूश्री गर्ग



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