सूरज निकलने तो दो,
फूल खिलने तो दो।
महकेंगी हवायें सारी,
बहकेंगी दिशायें सारी।
डॉ. मंजूश्री
गर्ग
जब कोई व्यक्ति किसी कारणवश अपने परिवार, अपने
समाज या अपने देश के साथ विश्वासघात करता है तो उसका अन्तर्मन उसे अन्दर ही अन्दर
धिक्कारता रहता है। इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने मानसिंह के माध्यम से की है
जब मानसिंह राजपूतों की आन के विरूद्ध दुश्मन मुगल सम्राट अकबर से हाथ मिला लेता
है-
अहो जाति को
तिलांजलि दे
हुये भार हम भू
के।
कहते ही यह
ढ़ुलक गये
दो-चार बूँद
आँसू के।
श्याम नारायण पाण्डे
प्रिय पाठकों! आपको यह जानकर हर्ष होगा कि आपके पसंदीदा निबन्ध जैसे-सूरदास
का वात्सल्य वर्णन, तुलसी काव्य में लोकमंगल की भावना, हिन्दी कहानी का विकास,
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प्रकृति के रंग, प्रेम के
रंग, भक्ति के रंग मिलकर जीवन में भावों के अनगिन रंग बनाते हैं जैसे- पीला, लाल
और नीला रंग मिलकर अनगिन रंग बनाते हैं। इन्हीं रंगों के संयोजन से इंद्रधनुष सजते
हैं। प्रस्तुत हाइकु-संग्रह इन्द्रधनुष में विविध संवेदनाओं के
इंद्रधनुषी रंग संजोने का प्रयास किया है। प्रस्तुत पुस्तक इन्द्रधनुष अब
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गजल
डॉ. मंजूश्री गर्ग
उगते हुये सूरज को ये ढ़कता है कौन।
घनघोर अँधेरे को फिर तोड़ता है कौन।।
जलती हुई शमा दम तोड़ चुकी कब का।
परवानों का राग फिर सुनाता है कौन।।
पंछियों का राग आज बंद हुआ नीड़ों में।
रात के सपनों को फिर चुराता है कौन।।
पथिक आज खो गये घनघोर कोहरे में।
सड़कों को आज फिर जगाता है कौन।।
उन्नति के पथ बढ़ रहे हैं हर तरफ।
हार के भाव फिर बढ़ाता है कौन।।
बादल का शोर बंद है हर तरफ।
खिलती बगिया को फिर रूलाता है कौन।।
दम घुटता है इस जिंदगी में जियें किस तरह।
उम्र भर नींद में फिर सुलाता है कौन।।
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3 जुलाई, 2023 सोमवार, आषाढ़ मास की पूर्णिमा, गुरू पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें
एवम्
गुरूओं के साथ-साथ सभी शिक्षक-शिक्षिकाओं को सादर नमन, जिन्होंने हमारे व्यक्तित्व के निर्माण में
महत्वपूर्ण योगदान दिया। माँ, बहनों, भाइयों, मित्रों, परिजनों को सादर नमन।
गुरू गोविंद दोनों खड़े, काके लागौ पाय।
बलिहारी गुरू आपने, गोविंद दियो बताय।।
कबीरदास