हिन्दी साहित्य
Sunday, May 31, 2020
पीताभ गुच्छ
झमरों से झूमते
अमलतास।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
Friday, May 29, 2020
लाल वितान
छत्र सा सजे द्वार
गुलमोहर।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
Thursday, May 28, 2020
पासा पलटा
बाप से बड़ा होते
बेटे का कद।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
Wednesday, May 27, 2020
ग्रीष्म ऋतु में
लू के थपेड़े सह
तपती धरा।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
Monday, May 25, 2020
लालिमा लिये
साँझ का सूरज औ'
ज्यादा दमके।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
Sunday, May 24, 2020
रंगों पे रंग
फूलों पे तितलियाँ
उड़ती हुई।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
Friday, May 22, 2020
सन्ध्या दीप सा
जलना पल-पल
उजाले लिये।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
Wednesday, May 20, 2020
कब तक तने रहोगे यूँ ही पेड़ की तरह.
झुककर गले मिलो कभी डाल की तरह.
कविता किरण
Tuesday, May 19, 2020
बोल्यो नेह पपीहरा, जीवन तरू पर बैठि।
पिऊ? पिऊ? की ध्वनि गई, अन्तरिक्ष में पैठि।।
बाल कृष्ण शर्मा 'नवीन'
Monday, May 18, 2020
ज्ञानदीप से
उजियारा जग में
हर युग में।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
Sunday, May 17, 2020
रूप बढ़ाये।
सौ गुना, भाल सज।
बिंदिया प्यारी।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
Saturday, May 16, 2020
सिंहासन पे
राम की पादुकायें
राम वन में।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
Thursday, May 14, 2020
मित्र वो सच्चा
आईना बनकर
साथ निभाता।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
Wednesday, May 13, 2020
लौ है उसमें
आलोकित है जग
सारा उससे।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
Sunday, May 10, 2020
चाहे-अनचाहे मोड़ों ने, जीवन का दिया नया रूप।
जैसे सीधा-सपाट कागज कोई, बन गया हो नाव।।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
प्यार, ममता,
सदभावना पले
जन-मन में।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
Friday, May 8, 2020
झरते दिन
मुरझाये पत्ते से
बिना उमंग।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
Thursday, May 7, 2020
'अक्षय' है वो
जो क्षर नहीं होता
ब्रह्म स्वरूप।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
Wednesday, May 6, 2020
आम के बाग
सौंधी सी महक औ'
मीठी सी धूप।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
Tuesday, May 5, 2020
हरी घास पे
शबनम के मोती
लगें सुहाने।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
Monday, May 4, 2020
पानी कितना भी गहरा हो, डूबना नहीं, उबरना ही है।
रात कितनी भी काली हो, सबेरा तो होना ही है।।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
Sunday, May 3, 2020
नदी मिले तो
सागर हरषाये
महा मिलन।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
Saturday, May 2, 2020
पार उतारा।
केवट ने राम को।
या स्वयं तरा।।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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