Thursday, January 31, 2019



विदाई बेटे की नहीं होती.......

विदाई बेटे की नहीं होती,
विदा तो बेटा भी होता है।
किशोर-वय में नन्हें सपने ले,
चला जाता है घर से।
बचपन के खिलौने छोड़,
कुछ किताबें, कुछ यादें संजो
चला जाता है घर से।

आता है कुछ काबिल बन कर
चाहता है अपने माँ-पिता,
भाई-बहन के लिये कुछ करना।
चाहतें बहुत हैं दिल में,
पर टूट जाते हैं सपने,
घर बसाने से पहले ही।
देखता है जब कि उससे
दूध का मोल ही नहीं माँगा जाता
प्रिया के हाथों की मेंहदी का भी
मोल चुकाना होता है।
विदाई बेटे की नहीं होती
विदा तो बेटा भी होता है।

                        डॉ0 मंजूश्री गर्ग

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श्री सुमित्रानंदन पंत

डॉ. मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 20 मई, सन् 1900 ई.(कौसानी)



पुण्य-तिथि- 28 दिसंबर, सन् 1977 ई.

सुमित्रानंदन पंत हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार स्तम्भों- जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला- में से एक हैं. आपका जन्म उत्तराखण्ड के कौसानी नामक गाँव में हुआ था जहाँ पग-पग पर प्राकृतिक सौन्दर्य बिखरा हुआ है. आपका बचपन का नाम गुसाईं दत्त था, लक्ष्मण के चरित्र से प्रभावित होकर आपने अपना नाम सुमित्रानंदन पंत रख लिया. सौम्य व्यक्तित्व के, प्रकृति की गोद में पले-बढ़े, प्रकृति-सौन्दर्य का अनुपम वर्णन करने वाले पंत जी ने अपने जीवन के आगामी वर्षों में गाँधी जी, कार्ल मार्क्स व श्री अरविंदो से प्रभावित होकर गाँधीवादी, प्रगतिवादी व आध्यात्मिक कवितायें लिखीं. आपकी प्रारंभिक शिक्षा कौसानी व अल्मोड़ा में हुई और उच्च शिक्षा बनारस और इलाहाबाद में. सन् 1921 ई. में असहयोग आंदोलन में शामिल हुये. बचपन में अल्मोड़ा से हस्तलिखित पत्रिका सुधाकर व पत्र अल्मोड़ा अखबार निकलते थे जिसमें आपकी भी रचनायें प्रकाशित होती थीं.

सुमित्रानंदन पंत ने एकांकी, उपन्यास, कहानी, आलोचना, आदि विविध विधाओं में लिखा है लेकिन प्रसिद्धि आपको कवि रूप में ही मिली. आपने स्वयं लिखा है, मेरे मूक कवि को बाहर लाने में सर्वाधिक श्रेय मेरी जन्मभूमि के उस नैसर्गिक सौन्दर्य को है जिसकी गोद में पलकर मैं बड़ा हुआ जिसने छुटपन से ही मुझे अपने रूपहले एकांत
में एकाग्र तन्मयता के रश्मिदोलन में झुलाया, रिझाया और कोमल कंठ वनपंखियों के साथ बोलना कुहुकन सिखाया.

पल्लविनी में सुमित्रानंदन पंत की सन् 1918 ई. से सन् 1936 ई. तक प्रकाशित काव्य-संग्रहों- वीणा, ग्रंथि, पल्ल्व, गुंजन, ज्योत्सना, युगांत की विशिष्ट कवितायें संकलित हैं. जिनमें प्रकृति-चित्रण, प्रेम और बालपन की कवितायें हैं जो आपके अनुसार आपके प्रथम चरण की कवितायें हैं.
उदाहरण-

अरे! ये पल्लव-बाल!
सजा सुमनों के सौरभ-हार
गूँथते वे उपहार।
अभी तो है ये नवल-प्रभात,
नहीं छूटी तरू डाल;
विश्व पर विस्मित-चितवन डाल,
हिलाते अधर-प्रबाल।
दिवस का इनमें रजत-प्रसार
उषा का स्वर्ण-सुहाग;
निशा का तुहिन-अश्रु-श्रृंगार,
साँझ का निःस्वन-राग;
नवोढ़ा की लज्जा सुकुमार,
तरूणतम सुन्दरता की आग।

आपके अनुसार आपके द्वितीय चरण की कवितायें चिदंबरा में संकलित हैं. चिदंबरा में युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, स्वर्णधूलि, युगांतर, उत्तरा, रजत शिखर, शिल्पी, सौवर्ण, अतिमा काव्य-संग्रहों की कवितायें संकलित हैं. चिदंबरा के लिये आपको भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. द्वितीय चरण की कविताओं में मानवतावादी दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति हुई है.
उदाहरण-
सुन्दर हैं विहग सुमन सुन्दर
मानव तुम सबसे सुन्दरतम!

हम मनः स्वर्ग के अधिवासी
जग जीवन के शुभ अभिलाषी,
नित विकसित, नित वर्धित, अर्पित,
युग युग के सुरगण अविनाशी!
हम नामहीन, अस्फुट नवीन,
नवयुग अधिनायक, उद्भासी!

आपने तृतीय चरण की कवितायें मानव कल्याण के लिये लिखीं थीं. आपने कहा है, आने वाला कल निश्चय ही न पूर्व का होगा न पश्चिम का. आप सार्वभौम मनुष्यता के विश्वासी थे.

सुमित्रानंदन पंत ने दो महाकाव्य लिखे- लोकायतन और सत्यकाम. लोकायतन में लोक जीवन के प्रति प्रतिबद्धता अभिव्यक्त हुई है. आपने लोकायतन अपने पिता को समर्पित किया है और सत्यकाम अपनी माता को, जो जन्म देते ही स्वर्ग सिधार गईं थीं. सत्यकाम महाकाव्य प्रस्तुत पंक्तियों द्वारा अपनी माँ को समर्पित किया है-

मुझे छोड़ अनगढ़ जग में तुम हुईं अगोचर,
भाव-देह धर लौटीं माँ की ममता से भर।
वीणा ले कर में, शोभित प्रेरणा हंस पर,
साध चेतना-तंत्रि रसौ वै सः झंकृत कर
खोल ह्रदय के भावी के सौन्दर्य दिगन्तर।

सुमित्रानंदन पंत जी को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार के अतिरिक्त लोकायतन के लिये सोवियत लैंड पुरस्कार, कला और बूढ़ा चाँद के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार और सन् 1961 ई. में पद्म भूषण से भारत सरकार ने सम्मानित किया.

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Wednesday, January 30, 2019



आँगन में बीज बोकर नेह से सींचा
पौध शजर होकर बदल जाता क्यों है।

                         उर्मिल




Tuesday, January 29, 2019



सापेक्ष विश्व निर्मित है
कल्पना कला के लेखे।
यह भूमि दूसरा शशि है
कोई शशि से जा देखे।

                  जगदीश गुप्त



Monday, January 28, 2019




जुबाँ बेची, कला बेची, यहाँ तक कल्पना बेची
नियत फनकार की अब कम्बरी जानी नहीं जाती।

                                                                                      -अंसार कम्बरी

Sunday, January 27, 2019



जो गिरकर वक्त की आँधी में फिर उठ कर अड़ा होगा
वो छोटा आदमी, उस वक्त से कितना बड़ा होगा।

                                          डॉ0 रामदरश मिश्र



Saturday, January 26, 2019




एक तुम्हारे
आ जाने से
रसमय सभी प्रसंग हुये हैं।

चौक पुरे
आँगन
गलियारे
कोई
इनकी नजर
उतारे

जीवन
जी-भर जी लेने को
उत्सुक सारे अंग हुये हैं।

      इसाक अश्क





70 वें गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनायें-


राष्ट्रीय पर्व-गणतंत्र दिवस



गणतंत्र दिवस परेड राजपथ पे।
प्रदर्शन शौर्य वीरों का राजपथ पे
इन्द्रधनुषी झाँकियाँ राजपथ पे।
नृत्य करते बालक-बालिकायें राजपथ पे।
राष्ट्रपति दे सलामी राष्ट्र-ध्वज को
राष्ट्र-गान की धुन राजपथ पे।
तिरंगे गुब्बारे उड़े आकाश राजपथ पे।
वीर, धीर हों पुरस्कृत राजपथ पे।

                    डॉ. मंजूश्री गर्ग






Friday, January 25, 2019




रूके नहीं, झुके नहीं,
बढ़े चलें, बढ़े चलें।
प्रगति पथ पे,
निरन्तर चलें।
देश का हो नाम जग में,
काम ऐसा कर चलें।

                  डॉ. मंजूश्री गर्ग



Thursday, January 24, 2019



मन मोहनी प्रकृति की गोद में जो बसा है।
सुख स्वर्ग-सा जहाँ है वह देश कौन-सा है।

जिसका चरण निरंतर रतनेश धो रहा है।
जिसका मुकुट हिमालय वह देश कौन-सा है।

नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं।
सींचा हुआ सलोना वह देश कौन-सा है।

                          राम नरेश त्रिपाठी




Wednesday, January 23, 2019



मैं और तुम
तुम और मैं
क्या अलग हैं?
नहीं ना। कहो!
फिर कैसी दूरी?

                डॉ. मंजूश्री गर्ग




आग पीकर भी रोशनी देना
माँ के जैसा है दिया कुछ-कुछ।

                     तारादत्त निर्विरोध

Monday, January 21, 2019



श्री जयशंकर प्रसाद


डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 30 जनवरी, सन् 1889 ई0
पुण्य-तिथि- 15 नवम्बर, सन् 1937 ई0

जयशंकर प्रसाद छायावाद के चार स्तम्भों- जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत- में सो तो एक हैं ही साथ ही कवि होने के साथ नाटककार, उपन्यासकार व कहानीकार भी हैं. आपको एक तरह से युग प्रवृत्तक कह सकते हैं. आपने जहाँ हिन्दी काव्य में कोमलकांत मधुर भावों के साथ-साथ गम्भीर विषयों की अभिव्यक्ति खड़ी बोली हिन्दी में करके हिन्दी खड़ी बोली को प्रतिष्ठापित किया. वहीं पारसी नाटकों से अलग ऐतिहासिक चरित्रों पर देशभक्ति पूर्ण नाटक लिखे जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं. कहानी और उपन्यास में भी आपका भाव गाम्भीर्य और भाषा की प्रांजलता देखने को मिलती है.

जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के प्रसिद्ध साहू वैश्य परिवार में हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा क्वींस कॉलेज में हुई. बाद में हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी भाषाओं का अध्ययन घर पर ही हुआ. किशोरावस्था में घर की जिम्मेदारी निभानी शुरू की और तंबाकू की दुकान का पैतृक व्यापार सँभालते हुये आजीवन हिन्दी साहित्य की सेवा करते रहे. आप नागरी प्रचारिणी सभा के सदस्य भी रहे.

जयशंकर प्रसाद की प्रमुख काव्य रचनायें हैं- आँसू, झरना, लहर, चित्राधार, प्रेम-पथिक, कामायनी(महाकाव्य). प्रारम्भ में ब्रजभाषा में रचना की, बाद में खड़ी बोली हिन्दी में उन्हें रूपान्तरित किया. आँसू काव्य-संग्रह में विश्व कल्याण की भावना को वेदना के स्तर पर अभिव्यक्त किया गया है. लहर मुक्तक रचनाओं का संग्रह है और झरना में छायावादी शैली में रचित कवितायें संग्रहीत हैं. कामायनी महाकाव्य आपकी प्रसिद्धि का मुख्य आधार है. कामायनी में तीन प्रमुख पात्रों(मनु, श्रद्धा, इड़ा) के माध्यम से मानव मन की सूक्ष्म अनुभूतियों, कामनाओं, आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति की है. मनु मन के प्रतीक हैं, श्रद्धा ह्रदय की प्रतीक है, इड़ा बुद्धि की प्रतीक है. कथानक संक्षिप्त होते हुये भी मानव जीवन के विकास के लिये एक आदर्श प्रस्तुत किया है. साथ ही आनंदवाद दर्शन की भी अभिव्यक्ति की है. प्रसाद जी ने कामायनी की भूमिका में स्वयं लिखा है- यह आख्यान इतना प्राचीन है कि इतिहास में रूपक पक्ष का भी अद्भुत मिश्रण हो गया है. इसलिये मनु, श्रद्धा, इड़ा, इत्यादि अपना ऐतिहासिक अस्तित्व रखते हुये सांकेतिक अर्थ की भी अभिव्यक्ति करें तो मुझे कोई आपत्ति नहीं.

जयशंकर प्रसाद के समय पारसी रंगमंच के अनुकूल नाटक लिखे जा रहे थे लेकिन प्रसाद जी ने साहित्यिक नाटक लिखे जो भारतेन्दु युग की परम्परा के थे. आपने ऐतिहासिक पात्रों को नायक-नायिका बनाकर ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर देशभक्ति पूर्ण नाटक लिखे जैसे- चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, अजातशत्रु, राज्यश्री, आदि. इसके अतिरिक्त ध्रुवस्वामिनी, एक घूँट, कामना, आदि नाटक भी लिखे. आपने अपने नाटकों में देशभक्ति पूर्ण गीत भी लिखे हैं जैसे-
1.
अरूण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।।
सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरूशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा।

2.
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो।

जयशंकर प्रसाद जी ने सामाजिक यथार्थवादी उपन्यास लिखे हैं. कंकाल, तितली, इरावती(अपूर्ण) उपन्यासों की भाषा प्रांजल है, कथोपकथन में भावुकता का समावेश हो गया है. आपकी कहानियाँ भी बहुत प्रसिद्ध हैं जैसे- आकाश दीप, गुंडा, आदि. प्रमुख कहानी संग्रह हैं- छाया, प्रतिध्वनि, आकाश दीप, इन्द्रजाल.

जयशंकर प्रसाद जी को कामायनी पर मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ. सन् 1991 ई0 में भारत सरकार ने महादेवी वर्मा के साथ आपका दो रूपये मूल्य का डाक-टिकट जारी किया.



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