श्रीमती महादेवी वर्मा
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
जन्म-तिथि- 26 मार्च, सन् 1907 ई0
पुण्य-तिथि- 11 सितंबर, सन् 1987 ई0
महादेवी वर्मा छायावाद युग
के चार स्तम्भों- जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला,
महादेवी वर्मा – में से एक हैं. आपने खड़ी बोली हिंदी में कोमलता और मधुरता के साथ
सहज रूप से मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति की है. आपका विवाह नौ वर्ष की उम्र में
डॉ0 स्वरूप नरेन वर्मा के साथ इंदौर में हुआ. आप बौद्ध धर्म से बहुत प्रभावित थीं
और भिक्षुणी बनना चाहती थीं. भिक्षुणी तो नहीं बनीं लेकिन सारा जीवन संयासिनी का
जीवन जिया. पति से कोई वैमनस्य नहीं था फिर भी अविवाहित जैसा जीवन जिया. इलाहाबाद
से उच्च शिक्षा प्राप्त की और आजीवन हिन्दी साहित्य की सेवा करती रहीं. यद्यपि
आपका कवि रूप ही अधिक प्रसिद्ध है लेकिन आपने गद्य भी लिखा है- काव्य-पुस्तकों की
भूमिकाओं में आपके विचार पढ़ने को मिलते हैं तो रेखाचित्र, संस्मरण जैसी गद्य विधाओं
को भी आपने हिन्दी साहित्य में प्रतिष्ठापित करने में अपना सहयोग दिया.
वास्तव में महादेवी वर्मा
बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं. दीपशिखा काव्य-संग्रह में काव्य-रचनाओं की
पृष्ठभूमि में आपकी स्वयं की रची गयी चित्र-कृतियाँ भी देखने को मिलती हैं. सत्याग्रह
आंदोलन के समय आप कवि सम्मेलनों में भी जाती थीं. गाँधी जी आपसे बहुत प्रभावित
थे. सन् 1932 ई0 में इलाहाबाद विश्व विद्यालय से आपने संस्कृत में एम0 ए0 किया.
इलाहाबाद में ही आपने अपने प्रयत्नों से प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना
की और आजीवन इससे जुड़ी रहीं. प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य व
कुलपति भी रहीं. चाँद व साहित्यकार पत्रिकाओं का संपादन किया.
हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिये साहित्यकार संसद की स्थापना की. रंगवाणी
नाट्य संस्था की भी स्थापना की.
महादेवी वर्मा ने छः वर्ष
की आयु में काव्य-रचना की-
ठंडे पानी से नहलाती
ठंडा चंदन उन्हें लगाती
उनका भोग हमें दे जाती
तब भी कभी न बोले हैं
माँ के ठाकुर जी भोले हैं।
महादेवी जी के काव्य में
व्यैक्तिक संवेदना की अभिव्यक्ति अधिक हुई है. अज्ञात प्रियतम के प्रति अपनी विरह
वेदना को रहस्यमयी आवरण में प्रकृति के माध्यम से अभिव्यक्त किया है-
(1)
मैं नीर भरी दुःख की बदली
विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही,
उमड़ी कल थी मिट आज चली.
(2)
क्या पूजा क्या अर्चना रे
उस असीम का सुंदर मंदिर
मेरा लघुतर जीवन रे।
महादेवी वर्मा की प्रसिद्ध
काव्य-कृतियाँ हैं- यामा- इसमें नीहार, रश्मि, नीरजा और सांध्यगीत की
रचनायें संकलित हैं. यामा के लिये आपको सन् 1982 ई0 में भारतीय ज्ञानपीठ
पुरस्कार मिला था. दीपशिखा में आपने अपनी काव्य-रचनाओं की पृष्ठभूमि
में चित्र भी बनायें हैं जो बहुत ही सुन्दर हैं. सप्तपर्णा भी काव्य-संग्रह
है. आपकी प्रसिद्ध गद्य रचनायें हैं- अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखायें, पथ
के साथी(संस्मरणात्मक निबंध), श्रृंखला की कड़ियाँ(विचारात्मक निबंध)। दीपशिखा
की भूमिका में आपके द्वारा लिखित उत्कृष्ट गद्य का उदाहरण-
जीवन को जो स्पर्श निकास के
लिये अपेक्षित है उसे पाने के उपरान्त, छोटा, बड़ा, लघु, गुरू, सुन्दर, विरूप,
आकर्षक, भयानक कुछ भी कलाजगत से बहिष्कृत नहीं किया जाता. उजले कमलों की चादर-
जैसी चाँदनी में मुस्कुराती हुई विभावरी अभिराम है. पर अँधेरे के स्तर-पर-स्तर
ओढ़कर विराट बनी हुई काली रजनी भी कम सुन्दर नहीं. फूलों के भार से झुक-झुक पड़ने
वाली लता कोमल है, पर शून्य नीलिमा की ओर विस्मित बालक-सा ताकने वाला ठूँठ भी कम
सुकुमार नहीं. अविरत जलदान से पृथ्वी को कँपा देने वाला बादल ऊँचा है; पर एक बूँद ओस के भार से नत और कम्पित तृण भी कम
उन्नत नहीं. गुलाब के रंग और नवनीत की कोमलता में कंकाल छिपाये हुए रूपसी कमनीय
है, पर झुर्रियों में जीवन का विज्ञान लिखे हुए वृद्ध भी कम आकर्षक नहीं.
बाह्य-जीवन की कठोरता, संघर्ष, जय-पराजय सब मूल्यवान है, पर अन्तर्जगत की कल्पना,
स्वप्न, भावना आदि भी कम अनमोल नहीं.
महादेवी वर्मा को सन् 1956
ई0 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया व सन् 1988 ई0 में आपको मरणोपरांत भारत
सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया. सन् 1991 ई0 में भारतीय डाक-तार विभाग ने
जयशंकर प्रसाद के साथ 2 रूपये मूल्य का डाक टिकट भी जारी किया.
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