काँच की चार चूड़ियाँ
गुलाबी
बस की रफ्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं.......
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानों झटका
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती
मुनिया
टाँगे हुये हैं कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नजरों के
सामने
मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस जुर्म पे हटा दूँ इनको
यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नजर मुझे
देखा
और मैंने एक नजर उसे देखा
झलक रहा था दूधिया वात्सल्य
बड़ी-बड़ी आँखों में।
नागार्जुन
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