हिन्दी साहित्य
Monday, January 28, 2019
जुबाँ बेची, कला बेची, यहाँ तक कल्पना बेची
नियत फनकार की अब
‘
कम्बरी
’
जानी नहीं जाती।
-अंसार
‘
कम्बरी
’
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