फिर किसी ने की है शरारात, हवाओं में घोल दी है शराब।
भौंरों की बात और
है, फूल भी बहक रहे हैं आज।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
आज मिले हैं मेरे.........
डॉ. मंजूश्री गर्ग
आज मिले हैं मेरे पिया से नयन।
सखि री! मेरा
मन थिरके।
तन थिरके।
बिन मौसम कोयल की कुहू-कुहू।
गूँजे
मन मेरे।
सखि री! मेरा
मन
थिरके।
तन थिरके।
बिन मेंहदी रची
हथेली।
महके मन
मेरे।
सखि री! मेरा
मन थिरके।
तन थिरके।
बिन दीपक रोशन आँगन।
उजाला
मन मेरे।
सखि री! मेरा
मन
थिरके।
तन थिरके।
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साँझ का तारा हूँ मैं, भोर
का नहीं
साँझ का तारा हूँ मैं, भोर
का नहीं
जाग सको तो जागो एक रात संग
मेरे।
देखो प्रकृति सुन्दरी करती
है कैसे,
विहान* के स्वागत की तैय्यारी।
चुपचाप रात-रानी खिला देती
है।
सोई कलियों में नवरंग, सौरभ
भर देती है।
गगन पटल पर आँकती चित्र
रेखायें,
आयेंगे सूरज राजा भरने रंग
उनमें।
सोये पक्षियों को जगा नव
राग सिखा देती है।
आओ! जागो एक रात संग मेरे।
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*सबेरा