Friday, March 4, 2022


साँझ का तारा हूँ मैं, भोर का नहीं

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

साँझ का तारा हूँ मैं, भोर का नहीं

जाग सको तो जागो एक रात संग मेरे।

देखो प्रकृति सुन्दरी करती है कैसे,

विहान* के स्वागत की तैय्यारी।

चुपचाप रात-रानी खिला देती है।

सोई कलियों में नवरंग, सौरभ भर देती है।

गगन पटल पर आँकती चित्र रेखायें,

आयेंगे सूरज राजा भरने रंग उनमें।

सोये पक्षियों को जगा नव राग सिखा देती है।

आओ! जागो एक रात संग मेरे।

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*सबेरा

  

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