Thursday, August 31, 2023

 

हंस ही नहीं

हंस की सी चाल भी

मन मोहती।


                 डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, August 30, 2023


 


एक माह में आयें दो पूर्णिमा।

कहलाये चंद्रमा ब्लू मून।।

                  डॉ. मंजूश्री गर्ग          

Tuesday, August 29, 2023


रक्षाबन्धन के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनायें


 


 

 


पद्-चिह्न हों तो प्रज्ञान रोवर जैसे

चले चंद्र की धरा पर तो धरा के चिह्न छोड़े।

                        डॉ. मंजूश्री गर्ग         

 

Monday, August 28, 2023


चलो तो सही

पगडंडी खुद ही

जायेगी बन।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, August 27, 2023

 

कालिदास! सच-सच बतलाना

इन्दुमती के मृत्यु शोक से

अज रोया या तुम रोये थे?

कालिदास! सच-सच बतलाना

X             X             X             X

पर पीड़ा से पूर-पूर हो

थक-थक कर और चूर-चूर हो

अमल-धवल गिरि के शिखरों पर

प्रियवर! तुम कब तक सोये थे?

रोया यक्ष कि तुम रोये थे?

कालिदास! सच-सच बतलाना

 

                                                नागार्जुन

 


Saturday, August 26, 2023

 

अलौकिक प्रेम......

डॉ. मंजूश्री गर्ग


सिय-राम का प्रेम अलौकिक

धनुष-यज्ञ शाला में देख अधीर सिय को

नयनों से ही करते हैं आश्वस्त श्री राम।

क्षण भर में कर धनुष भंग, जानकी की ही नहीं,

हरते हैं पीड़ा जनक परिवार की श्री राम।

 

पर राम!

 

राम! सच-सच बतलाना

यदि तुमसे पहले कोई और

राजकुमार धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा लेता।

तो तुम क्या करते?

तुम तो पुष्प-वाटिका में धनुष-यज्ञ से पहले ही

सीता को ह्रदय समर्पित कर चुके थे।

सीता तो राजा जनक के प्रण से बँधी थीं;

विवाह उसी से होना था जो यज्ञशाला में रखे

प्राचीन शिवधनुष पर प्रत्यंचा चढ़ायेगा।

राम सच-सच बतलाना

तो तुम क्या करते?

तुम कैसे सीता के प्रति अपना एकनिष्ठ प्रेम

निभाते!

 


Friday, August 25, 2023


चन्द्रयान-उत्सव

आज मोदी जी ने 26 अगस्त, 2023 को प्रातः काल इसरो कमांड सेंटर, बैंगलुरू पहुँचकर इसरो के सभी वैज्ञानिकों को बधाई दी व देश को नया नारा दिया

जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान व जय अनुसंधान

23 अगस्त को देश में स्पेस दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की

 

चन्द्रयान-3 ने जिस जगह चन्द्रमा पर लैंडिंग की उस स्थान को नाम दिया

शिव-शक्ति

और

चन्द्रयान-2 की जिस जगह असफल लैंडिंग हुई थी और वैज्ञानिकों को

चन्द्रयान-3 को सफल बनाने की प्रेरणा दी थी उस स्थान को नाम दिया

तिरंगा

 

 

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 


कटु वचन

बिन अस्त्र-शस्त्र के

करें घायल।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, August 24, 2023


धुआं है कहीं

तो आग भी होगी ही

ना बेफ्रिक सो।


                   डॉ. मंजूश्री गर्ग 


 

सौंप दी जब जीवन-डोर तुम्हारे हाथ कान्हा!

किसी और से क्यों उम्मीद रखें हम।

                  डॉ. मंजूश्री गर्ग         

 

Wednesday, August 23, 2023




गौरव का क्षण

23 अगस्त, 2023 को भारत के चन्द्रयान-3 ने चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कदम रख भारत ही नहीं, विश्व को गौरवान्वित किया है। जो भी व्यक्ति इस पल का साक्षी बना है उसे बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनायें

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

  

Tuesday, August 22, 2023


कोई उसको प्रेम की चादर ओढ़ाकर ले गया,

और हम संबंध का सम्मान करते रह गये।


                            अजहर इकबाल 

Monday, August 21, 2023

 

डॉ. जगदीश गुप्त



डॉ. मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 3 अगस्त सन् 1924 ई.

पुण्य-तिथि- 26 मई सन् 2001 ई.

 

डॉ. जगदीश गुप्त आधुनिक य़ुग के प्रसिद्ध शिक्षाविद्, कवि, आलोचक व चित्रकार थे। नय़ी कविता के प्रमुख कवियों में गुप्त जी का प्रमुख स्थान है। गुप्त जी का माँ श्रीमती रमादेवी व पिता श्री शिवप्रसाद गुप्त था। गुप्त जी की कवितायें जहाँ सरस, सरल व चित्रात्मकता लिये हुये हैं वहीं उनके रेखांकन में कविरूप झलकता है। गुप्त जी ने प्रयाग विश्व विद्यालय से एम. ए. व एम. फिल. किया। गुजराती व ब्रजभाषा कृष्ण-काव्य का तुलनात्मक अध्ययन पर शोधकार्य किया व साहित्य वाचस्पति(पीएच. डी.) की उपाधि प्राप्त की। गुप्त जी का शोधकार्य भारतीय भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन में प्रथम शोधकार्य था। गुप्त जी ने चित्रकला का विधिवत् अध्ययन आचार्य क्षितींद्रनाथ मुजुमदार से प्राप्त किया व विभिन्न शैलियों में अनेकानेक चित्र बनाये। चित्रकला में डिप्लोमा किया।

 

डॉ. जगदीश गुप्त सन् 1950 ई. में प्रयाग विश्व विद्यालय में प्राध्यापक के पद पर नियुक्त हुये और सन् 1987 ई. में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद से सेवा निवृत्त हुये। गुप्त जी ने नयी कविता पत्रिका का संपादन किया। कविताओं में जीवन की विभिन्न विसंगतियों के चित्रण के अतिरिक्त प्रकृति व मानवीय सौंदर्य का आकर्षक वर्णन किया।

 

डॉ. जगदीश गुप्त को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा भारत भारती पुरस्कार व मध्य प्रदेश के मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार से सम्मानित किया गया। गुप्त जी की प्रमुख रचनायें हैं-

नाव के पाँव, शम्बूक, आदित्य एकान्त, हिम-विद्ध, शब्द-दंश, युग्म, गोपा-गौतम, बोधिवृक्ष, नयी कविता-स्वरूप और समस्यायें, प्रागैतिहासिक भारतीय चित्रकला व भारतीय कला के पद चिह्न।

 

डॉ. जगदीश गुप्त द्वारा वर्णित साँझ का प्रकृति-चित्रण-

रवि के श्रीहीन दृगों में

जब लगी उदासी घिरने,

संध्या ने तम केशों में

गूंथी चुनकर कुछ किरनें।

 

जलदों के जल से मिलकर

फिर फैल गये रंग सारे,

व्याकुल है प्रकृति चितेरी

पट कितनी बार सँवारे।

 

 

 

 


Sunday, August 20, 2023


उखड़ेंगे ना

दूब से जुड़े हुये

हम धरा से।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, August 19, 2023


जिंदगी सारी

दो गुना दो में कटी

फिर भी खाली।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, August 18, 2023


हिना बिना ही

रच गयी हथेली

तेरे प्यार में।


             डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, August 17, 2023

 

श्री जगदीश चन्द्र माथुर


डॉ. मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 16 जुलाई सन् 1917 ई. खुर्जा(जिला बुलन्दशहर, उ. प्र.)

पुण्य-तिथि- 14 मई, सन् 1978 ई.

 

जगदीश चन्द्र माथुर हिन्दी के प्रसिद्ध नाटक व साहित्यकार थे। प्रारंभिक शिक्षा खुर्जा में हुई थी। उच्च शिक्षा यूईंग क्रिश्चियन कॉलेज, इलाहाबाद और प्रयाग विश्वविद्यालय में हुई। सन् 1939 ई. में प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम. ए. किया और सन् 1941 ई. में इंडियन सिविल सर्विस में चुन लिये गये। सरकारी नौकरी करते हुये 6 वर्ष बिहार शासन के शिक्षा सचिव के रूप में, सन् 1955 ई. से सन् 1962 तक आकाशवाणी-भारत सरकार के महासंचालक के रूप में, सन् 1963 ई. से सन् 1964 ई. तक उत्तर बिहार(तिरहुत) के कमिश्नर के रूप में कार्य करने के बाद हार्वर्ड विश्वविद्यालय, अमेरिका में विजिटिंग फेलो नियुक्त होकर विदेश चले गये। वहाँ से लौटने के बाद विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते हुये 19 दिसम्बर, सन् 1971 ई. से भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार रहे।

 

जगदीश चन्द्र माथुर ने सरकारी नौकरी करते हुये भारतीय इतिहास व संस्कृति को तत्कालीन संदर्भ में व्याख्यायित किया और राष्ट्र निर्माण व राष्ट्र पुनर्जागरण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो(AIR)  का नाम आकाशवाणी किया था। इन्हीं के समय में सन् 1959 ई. में भारत में टेलीविजन शुरू हुआ था। उन्होंने हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों को रेडियो व दूरदर्शन से जोड़ा जैसे- सुमित्रानन्दन पंत, रामधारी सिंह दिनकर, बालकृष्ण शर्मा नवीन, आदि। उन्होंने हिन्दी के माध्यम से सांस्कृतिक पुनर्जागरण का सूचना तंत्र विकसित और स्थापित किया।

 

जगदीश चन्द्र माथुर को बचपन से ही अभिनय कला में रूचि थी। सन् 1930 ई. में तीन लघु नाटक लिखकर अपना लेखन कार्य शुरू किया। वीर अभिमन्यु नाटक में माथुर साहब ने अभिनय भी किया। प्रयाग में उनके नाटक चाँद, रूपाभ पत्रिकाओं में प्रकाशित हुये थे। भोर का तारा में संग्रहीत सभी रचनायें प्रयाग में ही लिखी गयी थीं। अन्य रचनायें हैं-

कोणार्क(1951), ओ मेरे सपने(1950), शारदीया(1959), दस तस्वीरें(1962), परंपराशील नाटक(1968), पहला राजा(1968), जिन्होंने जीना जाना है(1972)।

परंपराशील नाटक एक समीक्षा कृति है। इसमें लोक नाट्य की परंपरा और उसकी सामर्थ्य के विवेचन के अलावा नाटक की मूल दृष्टि को समझाने का प्रयत्न किया गया है। इनके एकांकी जीवन की यथार्थ संवेदना को चित्रित करते हैं।

 

हिन्दी भाषा के विषय में जगदीश चन्द्र माथुर जी के विचार-

सरकार किसी भी भाषा में चलाई जाये पर लोकतंत्र हिन्दी और भारतीय भाषाओं के बल पर ही चलेगा।

 

हिन्दी ही सेतु का कार्य करेगी। सूचना और संचार तंत्र के सहारे ही हम अपनी निरक्षर जनता तक पहुँच सकते हैं। भारत के बहुमुखी विकास की क्रांति यहीं से शरू होगी।

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Wednesday, August 16, 2023


जेठ में नहीं!

बरसती है धूप

सावन-भादों।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, August 15, 2023


तीन रंगों में रंगा है भारत

घर-घर तिरंगा लहराये।

 

आकाश तले केसरिया बाना,

श्वेत रंग संदेश शांति का,

हरित वर्ण हरितिमा दर्शाता।

हर दिल की धड़कन है झंड़ा,

हर घर की शान है तिरंगा।

 

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, August 14, 2023




15 अगस्त 2023, स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

 

  

 

श्याम नारायण पाण्डे



डॉ. मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- सन् 1907 ई. आजमगढ़(उत्तर प्रदेश)

पुण्य-तिथि- सन् 1991 ई.

 

श्याम नारायण पाण्डे का जन्म श्रावण मास कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को दुमरावँ गाँव में हुआ था। श्याम नारायण पाण्डे के पिता का नाम महाराणा उदयसिंह था, वे राजस्थान के कुंभलगढ़ के महाराज थे। माता का नाम रानी जयवंत कुँवर था। प्रारंभिक शिक्षा के बाद आगे की पढ़ाई काशी विद्यापीठ(बनारस) से की थी। काशी से ही हिन्दी में साहित्याचार्य की डिग्री प्राप्त की थी। श्याम नारायण पाण्डे स्वभाव से सात्विक, ह्रदय से विनोदी और आत्मा से निर्भीक स्वभाव वाले व्यक्ति थे। आधुनिक युग के वीर रस के कवि थे और दो दशकों तक कवि मंच से जुड़े रहे। स्वतंत्रता आंदोलन के समय अपनी कविता के माध्यम से स्वतन्त्रता सेनानियों के मन में अप्रतिम जोश का संचार किया। पाण्येजी ने गीतात्मक शैली के साथ-साथ मुक्त छंद का भी प्रयोग किया। भाषा में सरलता व सहजता के गुण हैं इसी कारण इनकी रचनायें पढ़ते समय पाठक के सम्मुख चित्र सा बनता जाता है। इन्होंने इतिहास को आधार बनाकर महाकाव्यों की रचना की व खड़ी बोली का प्रयोग किया।

 

श्याम नारायण पाण्डे ने जितनी सहजता से युद्ध की विभीषिका वर्णन किया है उतनी ही सहजता से जीवन के कोमल पक्षों का वर्णन किया है वो चाहे भाई-भाई के बीच का प्रेम हो या संतान के प्रति माता-पिता का प्रेम, प्रकृति प्रेम या राष्ट्र प्रेम। हल्दी घाटी युद्ध से पहले का प्रकृति वर्णन-

गिरि अरावली के तरू के थे

पत्ते-पत्ते निष्कम्प अचल।

वन-बेलि-लता-लतिकायें भी

सहसा कुछ सुनने को निश्चल।

 

था मौन गगन, नीरव रजनी,

नीरव सरिता, नीरव तरंग।

केवल राणा का सदुपदेश,

करता निशीथिनी-नींद भंग।

            श्याम नारायण पांडे

 

श्याम नारायण पाण्डे की प्रमुख रचनायें-   

 महाकाव्य- हल्दीघाटी, जौहर, तुमुल त्रेता के दो वीर खण्डकाव्य का परिवर्धित संस्करण

अन्य रचनायें- माधव, रिमझिम, आँसू के कण, गोरा वध, रूपमात्र, जय हनुमान, आरती, परशुराम. जय पराजय।

श्याम नारायण पाण्डे को हल्दीघाटी महाकाव्य के लिये देव पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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Sunday, August 13, 2023


सच की दहलीज पर जब झूठ दम तोड़ेगा।

दिशायें जगमगायेंगी सच पुरजोर मुस्कुरायेगा।।

                  डॉ. मंजूश्री गर्ग          

Saturday, August 12, 2023


ले चल माँझी

जग से दूर कहीं

लागे ना मन।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, August 11, 2023


स्वाती नक्षत्र

सीपी-मुख में बूँदें

बने हैं मोती।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, August 10, 2023


प्यार-सम्मान

शामिल हों अगर

महकें रिश्ते।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, August 9, 2023

 

बारह महीना-बसंत


    डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

बसंत तो हमारे मन में है

बारह महीने रहता है

बस उसे महसूस करना है

आनंद का अनुभव करना है.

 

ग्रीष्म ऋतु में

शीतल पेय और आइसक्रीम

मधुर मुस्कान लाते हैं.

कौन कहता है! ग्रीष्म ऋतु शुष्क ऋतु है

खरबूजे, तरबूज की सरसता

इसी ऋतु में मिलती है.

 

बर्षा ऋतु तो

है पावस ऋतु

चारों ओर हरियाली

भीगी-भीगी हवा

पत्तों से झरता पानी

मन लुभाते ही हैं.

पायस फल आम भी

इसी ऋतु में सरसता भरता है.

 

शरद ऋतु तो

है ही पावन ऋतु

मंद-मंद समीर

स्वच्छ चाँदनी

वृक्षों से झरते

हारसिंगार के फूल

मन में मादकता भरते ही हैं

 

शिशिर ऋतु भी

नहीं है कम सुहावनि

सखियों संग

धूप में चौपालें

रात गये चाय-कॉफी की पार्टी

मेवा की गुटरगूँ

गन्ने की मिठास

इसी मौसम की

सौगातें हैं

 

हेमन्त ऋतु है

ले आती है संदेश बसंत का.

अनायास ही

झड़ते पेड़ों से पत्ते

खेतों में खिलने लगते

सरसों के फूल

सोये हुये अरमान

जागने लगते

फिर एक बार

 

बसन्त ऋतु तो

है बसंत ऋतु

प्रकृति के कण-कण में

नव आनंद, नव उत्साह

नजर आने लगता है.

वृक्ष नये परिधान पहन सज जाते हैं

वहीं पशु-पक्षी ही क्या

वन-तड़ाग तक नव उत्साह से

भर जाते हैं फिर एक बार.

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