Monday, October 31, 2022

 

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने रामायण के धनुष-यज्ञ-प्रसंग का वर्णन किया है-

फूलि उठे कमल से अमल हितू के नैन,

कहै रघुनाथ भरे चैन रस सियरे।

दौरि आए भौंर से करत गुनी गुनगान,

सिद्ध से सुजान सुख सागर सों नियरे।

सुरभी सों खुलन सुकवि की सुमति लागी,

चिरिया सी जागी चिंता जनक के जियरे।

धानुष पै ठाढ़े राम रवि से लसत आजु,

भोर के से नखत नरिंद भए पियरे।


                                                     रघुनाथ(कवि


Sunday, October 30, 2022

 

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने गोपी-उद्धव संवाद का वर्णन किया है- गोपियों को लगता है कि कान्हा कूबरि के प्रेम में आसक्त हैं इसी कारण हमें भूल गये हैं. गोपियाँ ऊधो से कूबरि के पास ले जाने की विनती करती हैं ताकि वे भी कूबरि से प्रेम-मंत्र सीख सकें और उन्हें भी कान्हा का सामीप्य मिल सके.

ऊधौ! तहाँई चलौ लै हमें जहँ कूबरि कान्ह बसैं एक ठौरी।

देखिए दास अघाय अघाय तिहारे प्रसाद मनोहर जोरी।

कूबति सों कछु पाइए मंत्र, लगाइए कान्ह सों प्रीति की डोरी।

कूबरि भक्ति बढ़ाइए बंदि, चढ़ाइए चंदन वंदन रोरी।

                                       भिखारीदास


Saturday, October 29, 2022

 

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने शरद ऋतु का वर्णन किया है-

कातिक की रति थोरी-थोरी सियराति,

सेनापति है सुहाति सुखी जीवन के गन हैं।

फूले हैं कुमुद, फूली मालती सघन वन,

फूलि रहे तारे मानो मोती अनगन हैं।

उदित विमल चंद, चांदनी छिटकी रही,

राम कैसो जस अध-ऊरध गगन है।

तिमिर हरन भयो, सेत है बरन सबु,

मानहु जगत छीर-सागर मगन है।

                           सेनापति


Friday, October 28, 2022


प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने श्रृंगार व प्रेम के स्वरूप का वर्णन किया है-

सब सुख दायक नायिका-नायक जुगत अनूप,

राधा हरि आधार जस रस सिंगार सरूप।

                           देव 

Thursday, October 27, 2022


प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने काव्य-प्रयोजन पर विचार करते हुये लिखा है-

 

एक तहँ तप पुंजनि के फल ज्यों तुलसी अरू सूर गोसाईं,

एक तहँ बहु संपति केशव भूषण ज्यों वरवीर बड़ाई।

एकनि को जस हीं सों प्रयोजन है रसखानि रहीम की नाईँ,

दस कवित्तन की चर्चा बूढ़ी वंतनि को सुख दै सब ठाई।

 

                                   भिखारी दास

  

Monday, October 24, 2022

 


24 अक्टूबर, 2022, शुभ दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें

दीपावली का पर्व हम सभी के जीवन में हर्षोल्लास, उमंग, वैभव, सुख-समृद्धि व ज्ञान का प्रकाश लेकर आये।

Friday, October 21, 2022


अयोध्या नगरी की शोभा का वर्णन भक्तिकाल के कवि नाभादास के शब्दों में-

अवधपुरी की शोभा जैसी। कहि नहिं सकहिं शेष श्रुति तैसी।।

रचित कोट कलधौत सुहावन। विविधा रंग मति अति मनभावन।।

चहुँदिसि विपिन प्रमोद अनूपा। चतुर बीस जोजन रस रूपा।।

सुदिसि नगर सरजू सरि पावनि। मनिमय तीरथ परम सुहावनि।।

विगसे जलज भृंग रस भूले। गुंजत जल समूह दोउ कूले।।

परिखा प्रति चहुँदिसि लसति, कंचन कोट प्रकास।।

विविधा भाँति नग जगमगत, प्रति गोपुर पुरपास।।

 

                                         नाभादास 

Thursday, October 20, 2022


जगमगाते रहें दिये यादों के, जीवन में उजाला कम ना होगा।

बनी रहे खुशबू सुनहरे पलों की, मन की महक ना कम होगी।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, October 19, 2022


सुबह सुहानी

 

महकने दो,

चहकने दो,

फुदकने दो।

है सुबह सुहानी,

उपवन में फैली हरियाली,

पग-तले बिखरे हैं मोती।


                 डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, October 18, 2022


फिर मनायी छोटी दीवाली

डॉ. मंजूश्री गर्ग 

हम लड़कियाँ भी कितनी बेबफा होती हैं

शादी होते ही भूल जाती हैं वो आँगन वो घर

जहाँ खेले अनेकों बसन्त, मनायी दिवालियाँ.

पिता से ज्यादा ससुर जी का ख्याल

माँ से ज्यादा सासु जी की आज्ञा का पालन

भाई से ज्यादा देवर और बहन से ज्यादा ननद.

पति के दोस्तों की पत्नियाँ ही बन जाती हैं सखियाँ

 

बरसों बाद भाभियाँ दिलाती हैं याद कि

दीदी हमारे यहाँ छोटी दिवाली को भी हठरी पूजन होता है.

तब याद आती है छोटी दिवाली की शाम.

शाम से ही घर में उत्सव का माहौल

 दिवाली के दिन जैसी ही सज-धज.

खील-बताशे, मिठाईयाँ, पूरी पकवान

फुलझड़ी-पटाखे की रौनक.

बरसों बाद मायके में भाभी के साथ

फिर मनायी छोटी दिवाली.

 


Sunday, October 16, 2022

 

दोस्त तो बहुत मिल जाते हैं लेकिन सब सुख के साथी होते हैं जो मित्र परेशानी के समय साथ निभाये वो मित्र बड़ी मुश्किल से मिलते हैं-

मुश्किल मौकों पर ही मुझसे मिलने आया

इक ऐसा भी यारों मुझको यार मिला है।

                                   लक्ष्मण


Saturday, October 15, 2022

 

जन्म शताब्दी वर्ष


पं. हर प्रसाद शास्त्री




डॉ. मंजूश्री गर्ग


जन्म-तिथि- 15 अक्टूबर, सन् 1923 .

पुण्य-तिथि- 8 मार्च,सन् 1992 .


पं. हर प्रसाद शास्त्री का जन्म हापुड़(. प्र.) के पास श्यामपुर गाँव में एक ब्राहम्ण परिवार में हुआ था। इनके पिता पं. सोहनलाल शर्मा और माँ ज्वाला देवी थीं। पं. हर प्रसाद शास्त्री की प्राथमिक शिक्षा गाँव में हुई थी। संस्कृत विश्व विद्यालय, वाराणसी से पं. हर प्रसाद शास्त्री जी ने शास्त्री की परीक्षा पास की थी। इसके बाद गाजियाबाद(. प्र.) के सनातन धर्म इंटर कॉलेज में अध्यापन का कार्य प्रारंभ किया। अद्यापन करते हुये ही आगरा विश्व विद्यालय से हिन्दी और संस्कृत में एम. . किया।


पं. हर प्रसाद शास्त्री विशेष रूप से संस्कृत के विद्वान थे फिर भी शास्त्री जी ने हिन्दी के प्रचार और प्रसार में अपना विशेष योगदान दिया। विशेष रूप से गाजियाबाद शहर में हिन्दी के प्रति आम जन व विद्यार्थियों के मन मे प्रेम जगाया। शास्त्री जी ने स्वयं हिन्दी में गीत और कवितायें लिखीं व युवा पीढ़ी को हिन्दी साहित्य लेखन की ओर प्रोत्साहित किया। पं. हर प्रसाद शास्त्री जी के प्रयासों से गाजियाबाद में हिन्दी भवन की स्थापना हुई व गाजियाबाद लोक परिषद् का गठन हुआ।


गाजियाबाद लोक परिषद् के द्वारा प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस पर विशाल कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाता है जिसमें सम्पूर्ण भारत से हिन्दी कवि आकर काव्य पाठ करते हैं। गाजियाबाद लोक परिषद् के बैनर तले काव्य पाठ करके कवि अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं।


पं. हर प्रसाद शास्त्री बहुत ही सहज, सरल व लक्ष्य के प्रति लगनशील व्यक्ति थे। शास्त्री जी पूर्ण रूप से हिन्दी साहित्य के प्रति समर्पित थे और जीवन भर हिन्दी साहित्य के प्रचार-प्रसार में लगे रहे। इस वर्ष गाजियाबाद पं. हर प्रसाद शास्त्री का जन्म शताब्दी बर्ष मना रहा है, इसी उपलक्ष में 15 अक्टूबर, 2022 को सायं 7 बजे से हिन्दी भवन में कवि सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।






Friday, October 14, 2022


शायद कहीं खिल रही है रात-रानी,

महक रही हैं आने वाली हवायें।


शायद चाँद गगन में चमक रहा है, 

रोशन हो रही हैं राहें सारी।


शायद तुम आ रहे हो मिलने हमसे,

मन में फिर आशा सी जाग रही है।


                                डॉ. मंजूश्री गर्ग

Thursday, October 13, 2022


 

अपनी छवि बनाई के जो मैं पी के पास गई।

जब छवि देखी पीहू की तो अपनी भूल गई।

                            अमीर खुसरो


Wednesday, October 12, 2022


आँचल हिले

तारे झिलमिलायें

चाँद चमके.


       डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, October 11, 2022


और झुके हैं

फूलों से लदे वृक्ष

नतमस्तक।


                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, October 10, 2022


ठहरी बूँद

सीपी सम पाती में 

मोती सी सजी।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, October 9, 2022


9 अक्टूबर, 2022 शरद् पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें



चाँद सी शीतलता, खीर सी मिठास।

साथ आये जीवन में, बरसे बहार जीवन में।  


                                                        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Saturday, October 8, 2022


पृथ्वीराज की कलम से

 

बैर बीज बो दिये परिवारों के बीच

नाना ने देकर सिंहासन दिल्ली का।

क्यों जयचंद देशद्रोही बनते, 'गर

मिलता उन्हें राजपद दिल्ली का।

क्यों आक्रमणकारी का वो साथ देते।

हर संभव प्रयास वो करते दिल्ली की रक्षा का।

और मैं भी सहर्ष साथ देता उनका।

संयोगिता भी सहज प्राप्त होती मुझे.

अजमेर ही बहुत था हम दोनों के लिये।

                               डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

 

 

 

 

  

Friday, October 7, 2022

 

बादलों से झाँक रहा चाँद

 

बादलों से झाँक रहा चाँद

धीरे-धीरे नदी के जल में

उतर  रहा  चाँद।

कर रहा अठखेलियाँ

बिखरा रहा चाँदनी।

नदी के सौंदर्य में

लगा रहा चार चाँद।


           डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

 

 

 

 

 


Thursday, October 6, 2022

 

'इस्माइल प्लीज' और 'क्लिक',

मुस्कुराती फोटो से सजी 'एलबम',

'व्हाट्स एप' और 'फेसबुक',

दिल के दर्द से अनजान हैं सभी।


                          डॉ. मंजूश्री गर्ग



Tuesday, October 4, 2022


5 अक्टूबर, 2022 विजय पर्व पर हार्दिक बधाई एवम् शुभकामनायें


श्री रामचन्द्र जी और श्री लक्ष्मण जी को शत्- शत् नमन
 


शरद ऋतु

सुहावना मौसम

खिली चाँदनी।


                       डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, October 3, 2022



तेरे रूप से

साकार है संसार

गंध जीव में।


                            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, October 2, 2022


अष्टभुजी माँ

बच्चों जैसा दुलारें

विपदा हरें। 

                            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Saturday, October 1, 2022


                            एक दीप

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

एक दीप

मन्दिर में

श्रद्धा का।

 

एक दीप

तुलसी पे

विश्वास का।


एक दीप

आँगन में

प्रेम का।

 

एक दीप

ज्ञान का

दिल में

जलाये रखना।