Tuesday, July 31, 2018


सोचा ना था, प्यार क्या से क्या बना देगा।
माटी था जीवन, सोना बना दिया।

                            डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Monday, July 30, 2018



बैठो दो क्षण बाँध लें, फिर हाथों में हाथ।
जाने कब झड़ जायेंगे, ये पियराने पात।।


                                                                             यतीन्द्र राही

Sunday, July 29, 2018



जिन्दगानी दो निगाहों में सिमटती जा रही है,
प्यास बढ़ती जा रही है, उम्र घटती जा रही है।

                               वीरेन्द्र मिश्र

Saturday, July 28, 2018



तुम निहारो गुलाब,
मैं निहारूँ तुमको।
निहार-निहार में,
निखार आ जायेगा।
नजरों से मिलेंगी नजरें
और प्यार हो जायेगा।

                     डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Wednesday, July 25, 2018



चलो फिर से बचपन जीते हैं,
बारिश के पानी में नावें चलाते हैं।

                                                     डॉ0 मंजूश्री गर्ग



प्रेम बिन जीवन ऐसा,
जैसे रस बिन हो ऊख।

                                    डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Tuesday, July 24, 2018




श्री बनारसी दास चतुर्वेदी


(प्रसिद्ध पत्रकार)

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि -  24 दिसम्बर, सन् 1892 ई0
पुण्य-तिथि  -  2 मई, सन् 1985 ई0

बनारसी दास चतुर्वेदी का पत्रकारिता जीवन विशाल भारत के सम्पादन से शुरू हुआ. प्रवासी भारतीयों की समस्याओं में इनकी विशेष रूचि थी. बनारसी दास चतुर्वेदी की सेवा भावना, राष्ट्रीय भावना व लगन से प्रभावित होकर विशाल भारत और मॉडर्न रिव्यू के मालिक श्री रामानन्द चटर्जी ने इन्हें विशाल भारत का संपादक बना दिया. अपने परिश्रम से आपने विशाल भारत को एक साहित्यिक और सामान्य जानकारी से परिपूर्ण मासिक पत्रिका बनाया. इसमें प्रायः सभी प्रमुख लेखकों की रचनायें प्रकाशित होती थीं. आप पत्रकारिता के क्षेत्र में श्री गणेश शंकर विद्यार्थी को अपना आदर्श मानते थे.

बनारसी दास चतुर्वेदी ने विशाल भारत छोड़ने के बाद टीकमगढ़ से प्रकाशित मधुकर का संपादन किया. तोताराम सनाढ्य से उनके फीजी द्वीप के अनुभव सुनकर तोताराम जी के नाम से फीजी में मेरे 21 वर्ष नामक पुस्तक तैय्यार की. स्वयं भी प्रवासी भारतवासी नामक पुस्तक की रचना की.

बनारसी दास चतुर्वेदी ने पत्रकारिता के साथ-साथ रेखाचित्र भी लिखे हैं, जो बहुत ही सजीव हैं. आप बारह वर्ष तक राज्यसभा के सदस्य रहे. संसद सदस्य के रूप में दिल्ली में रहते हुये संसदीय हिन्दी परिषद्, हिन्दी पत्रकार संघ, आदि संस्थाओं के संचालन में रूचि ली. साथ ही आपने दिल्ली में हिन्दी भवन खोलने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

बनारसी दास चतुर्वेदी को उनके साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान के कारण ही सन् 1973 ई0 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।


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Monday, July 23, 2018



शुक्रिया आपका,
बेबफाई की आपने।
जीने की नयी राह,
दिखा दी आपने।

                      डॉ0 मंजूश्री गर्ग



Sunday, July 22, 2018



हसीन जुल्मों को हम उम्र भर भुला न सके,
नया चिराग मोहब्बत का हम जला न सके।
हमें तो उनकी नजर ने तबाह कर डाला
तमाम उम्र किसी से नजर मिला न सके।

                                    डॉ0 श्री मोहन प्रदीप


Saturday, July 21, 2018




दिन में ही नहीं, रात में भी
रोशन होता नगर, सौर ऊर्जा से।
 
                         डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Friday, July 20, 2018



गोपाल दास नीरज जी को श्रद्धांजलि---------

एक ही कील पर घूमती है धरा
एक ही डोर से बस बँधा है गगन
एक ही साँस में जिन्दगी कैद है
एक ही तार से बुन गया कफन।

                                    गोपाल दास नीरज


Thursday, July 19, 2018


याद बरबस आ गई माँ, मैंने देखा जब कभी
मोमबत्ती को पिघलकर, रोशनी देते हुये।

                                                                   लक्ष्मीशंकर वाजपेयी

Wednesday, July 18, 2018


खतरे से बाहर कहाँ,
खतरा ही खतरा बाहर।

                                                डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Tuesday, July 17, 2018



बादलों से झाँक रहा चाँद
धीरे-धीरे नदी के जल में
उतर  रहा  चाँद।
कर रहा अठखेलियाँ
बिखरा रहा चाँदनी।
नदी के सौंदर्य में
लगा रहा चार चाँद।

                  डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Sunday, July 15, 2018


केसर की क्यारियाँ
डॉ0 मंजूश्री गर्ग


आतंक के बीज बो दिये,
केसर की क्यारियों में।
बारूद की खाद बिछा दी,
केसर की क्यारियों में।

मेरे देश के वीर जवानों!
शौर्य-गाथा नयी रच दो।
निर्मूल कर आतंक की फसलें
महका दो केसर की क्यारियाँ।

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Saturday, July 14, 2018



भीगे रहे, भीगे रहे,
भीगे ही रहे हम।
कभी अश्रु से, कभी स्वेद से,
कभी बारिश की बूँदों से।
भीगे ही रहे हम।
                      डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Friday, July 13, 2018




सिंदुरी शामें
आवाजाही रंगों की
आकाश तले।
                     डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Thursday, July 12, 2018




प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपनी राष्ट्रीयता की खातिर आम आदमी को नवीन क्रांति के लिये उत्साहित कर रहा है-

उठें कि हम जो सो रहे हैं अब उन्हें झिंझोड़ दें
नवीन क्रांति दें, स्वदेश को नवीन मोड़ दें
समस्त भ्रष्ट-दुष्ट मालियों का साथ छोड़ दें
स्वदेश के चरित्र को पवित्रता से जोड़ दें
न छोड़ें मानवीयता
न भूलें भारतीयता
विवेक से अनेकता में एकता बनी रहे।

                            उर्मिलेश शंखधार




दृश्य बदलते हैं
मध्यान्तर से
अन्त से नहीं।
 
      डॉ0 कुँवर नारायण

Wednesday, July 11, 2018




आचार्य रामचन्द्र शुक्ल


डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 4 अक्टूबर, सन् 1884 ई0
पुण्य-तिथि- 2 फरवरी, सन् 1941 ई0

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण पुस्तक हिन्दी साहित्य का इतिहास है. सन् 1940 ई0 तक के हिन्दी साहित्य के काल-निर्धारण व कालों के नामकरण के लिये सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक के रूप में जानी जाती है. जबकि अनेक विद्वानों ने हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखा है. शुक्ल जी ने हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखते समय कवियों के परिचय के साथ उनके काव्य की प्रवृत्तियों पर विशेष ध्यान दिया है. साथ ही समीक्षायें भी लिखी हैं.

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के पिता पं0 चंद्रबली शुक्ल आपको वकील बनाना चाहते थे. लेकिन आपकी रूचि हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य में थी. सन् 1903 ई0 से सन् 1908 तक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आनंद कादम्बिनी पत्रिका के सहायक संपादक का कार्य किया. आपकी प्रतिभा से प्रभावित होकर बाबू श्याम सुंदर दास ने आपको हिन्दी शब्द सागर के सहायक संपादक का भार सौंपा. जिसे आपने सफलतापूर्वक पूरा किया. बाबू जी के शब्दों में हिन्दी शब्द सागर की उपयोगिता और सर्वांगपूर्णता का अधिकांश श्रेय आचार्य रामचन्द्र शुक्ल को प्राप्त है. आप नागरी प्रचारिणी पत्रिका के भी संपादक रहे. सन् 1919 ई0 में काशी हिंदू विश्व विद्यालय में हिन्दी के प्राधायापक पद पर नियुक्त हुये. आपने काशी नागरी प्रचारिणी सभा में रहते हुये हिन्दी की बहुत सेवा की.

हिन्दी साहित्य का इतिहास में स्वयं आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कहा है  इस तृतीय उत्थान(सन् 1918 ई0) में समालोचना का आदर्श भी बदला. गुण-दोष के कथन से आगे बढ़कर कवियों की विशेषताओं और अन्तःप्रवृत्ति की छानबीन की ओर ध्यान दिया गया. समीक्षक के रूप में शुक्ल जी ने अपनी पद्धति को युग के अनुरूप बनाया. कवियों की कृतियों की समीक्षा करते समय रस, अलंकार के साथ-साथ कृतियों को मनोविज्ञान के आलोक में भी परखा. नलिन विलोचन शर्मा ने अपनी पुस्तक साहित्य का इतिहास दर्शन में कहा है, शुक्ल जी से बड़ा समीक्षक सम्भवतः उस युग में किसी भी भारतीय भाषा में नहीं था.

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल आलोचक, समीक्षक, निबन्धकार होने के साथ-साथ कवि भी थे. उदाहरण-
देखते हैं जिधर ही उधर ही रसाल पुंज
मंजू मंजरी से मढ़े फूले न समाते हैं।
कहीं अरूणाभ, कहीं पीत पुष्प राग प्रभा,
उमड़ रही है, मन मग्न हुये जाते हैं।
कोयल उसी में कहीं छिपी कूक उठी, जहाँ-
नीचे बाल वृन्द उसी बोल से चिढ़ाते हैं।

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Tuesday, July 10, 2018




सहज, निर्मल, निश्छल, बह रही प्रेम-धार।
मानों नदी के तटों-बीच, बह रही हो जल-धार।।
                                डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Monday, July 9, 2018




अक्षर तो केवल
गूँदी कच्ची मिट्टी हैं
हम उनसे
नई-नई मूर्तियाँ बनाते हैं

        गीत तभी
        होठों से होंठों तक जाते हैं।

                   माहेश्वर तिवारी






Sunday, July 8, 2018



जब पैसे के लिये वैद्य, हकीम या डॉक्टर व्यक्तियों की जान के दुश्मन बन जाते हैं तब आप किस पर भरोसा करके अपना इलाज करायेंगे. इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में की है-

सेर भर सोने को हजार मन कण्डे में
खाक कर छोटू वैद्य रस जो बनाते हैं,
लाल उसे खाते तो यम को लजाते
और बूढ़े उसे खाते देव बन जाते हैं।
रस है या स्वर्ग का विमान है या पुष्प रथ
खाने में देर नहीं, स्वर्ग ही सिधाते हैं
सुलभ हुआ है खैरागढ़ में स्वर्गवास
और लूट धन छोटू वैद्य सुयश कमाते हैं।

                                   पदुमलाल पन्नालाल बख्शी



Saturday, July 7, 2018



प्लेटोनिक लव पर लिखी अमर कहानी उसने कहा था के रचियता के जन्म-दिन पर शत्-शत् नमन-

चन्द्रधर शर्मा गुलेरी


डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 7 जुलाई, सन् 1883 ई0
पुण्य-तिथि- 12 सितम्बर, सन् 1922 ई0

चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी को हम हिन्दी साहित्य में प्लेटोनिक लव पर लिखी अमर प्रेम कथा उसने कहा था के रचनाकार के रूप मे अधिक जानते हैं जबकि वह हिन्दी भाषा के अनन्य प्रेमी व हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के रचनाकार हैं. पिता ज्योतिर्विद महामहोपाध्याय पं0 शिवराम शास्त्री मूलतः हिमाचल प्रदेश के गुलेर गाँव के रहने वाले थे. जयपुर के राजा से राज सम्मान पाकर जयपुर में बस गये थे. गुलेर गाँव के होने के कारण ही आपके नाम के आगे उपनाम गुलेरी लगा. गुलेरी जी ने बचपन में ही वेद, पुराणों का अध्ययन कर लिया था. उन्हें हिन्दी, संस्कृत, बांग्ला, मराठी ही नहीं अंग्रेजी, फ्रेंच व जर्मन भाषाओं का भी ज्ञान था.


चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी ने अपने अध्ययन काल में ही सन् 1900 ई0 में जयपुर में नागरी मंच की स्थापना की थी. सन् 1902 ई0 में समालोचक के संपादक बने. गुलेरी जी काशी की नागरी प्रचारिणी सभा के संपादक मंडल में भी रहे. सन् 1920 ई0 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राचार्य बने. गुलेरी जी सन् 1912 ई0 में जयपुर में वेधशाला के जीर्णोद्धार के लिये गठित मण्डल में सम्मिलित रहे व कैप्टेन गैरेट के साथ मिलकर द जयपुर ऑब्जरवेटरी एण्ड इट्स विल्डर्स शीर्षक ग्रंथ की रचना की.

चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी की रूचि व ज्ञानक्षेत्र धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुरातत्व, दर्शन, भाषाविज्ञान, शिक्षाशास्त्र और साहित्य से लेकर संगीत, चित्रकला, लोककला, विज्ञान, राजनीति, समसामयिक सामाजिक स्थिति तक फैला हुआ था. अपने संक्षिप्त जीवन काल में किसी स्वतन्त्र ग्रंथ की रचना न कर पाने पर भी विविध विषयों पर लेख, समीक्षायें, आदि लिखीं. हिन्दी साहित्य में भी कहानियों के अतिरिक्त विवेचनात्नक निबन्ध व कवितायें लिखीं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी की कविता का उदाहरण-
आए प्रचंड रिपु, शब्द गुन उन्हीं का
भेजी सभी जगह एक झुकी कमान
ज्यों युद्ध चिह्न समझे सब लोग धाए,
त्यों साथ ही कह रही यह व्योम वाणी
सुना नहीं क्या रण शंखनाद?
चलो पके खेत किसान छोड़ो
पक्षी इन्हें खाएँ, तुम्हें पड़ा क्या?
भाले भिदाओ, अब खड्ग खोलो
हवा इन्हें साफ किया करेगी
लो शस्त्र, हो लालन देख छाती
स्वाधीन का सुत किसान सशस्त्र दौड़ा
आगे गई धनुष के संग व्योमवाणी।
                     
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