समय की तराजू पे
दुःख का पलड़ा
हरदम रहा भारी
सुख का पलड़ा
हवा में ही रहा झूलता।
डॉ0 मंजूश्री
गर्ग
वैज्ञानिक व्याख्या-
सुख के समय मन आनंदित हो, उमंग से भर उछला-उछला
ही घूमता है जबकि दुःख के समय मन पीड़ा से बोझिल बैठा-बैठा रहता है।
आर्थिक व्याख्या-
जीवन में सुख दुःख की अपेक्षा मात्रा की दृष्टि
से भी कम ही रहते हैं इसीलिये सुख का पलड़ा हवा में झूलता रहता है।
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