मानव हूँ मैं,
ना ईश्वर बना तू,
मानव रहूँ।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने ईश्वर के प्रति
अपनी रहस्यमयी भावना को अभिव्यक्त किया है-
मैं कब से
ढ़ूँढ़ रहा हूँ।
अपने प्रकाश की
रेखा।।
तम के तट पर
अंकित है।
निःसीम नियति
का लेखा।।
देने वाले को
अब तक।
मैं देख नहीं
पाया हूँ।।
पर पल भर सुख
भी देखा।
फिर पल भर दुःख
भी देखा।।
किस का आलोक
गगन से।
रवि शशि उडुगन
बिखराते।।
भगवती चरण वर्मा
कवि विद्यापति गंगा मैय्या के बहुत बड़े भक्त
थे. अन्त समय स्वयं गंगा मैय्या दस कोस चलकर कवि के पास तक आयीं थीं उस समय जो कवि
ने रचना की प्रस्तुत है-
बड़ सुखसार
पाओल तुअ तीरे।
छोड़इत निकट
नयन बह नीरे।।
करनोरि बिलमओ
विमल तरंगे।
पुनि दरसन होए
पुनमति गंगे।।
एक अपराध होए
छमब मोर जानी।
परमल माए पाए
तुम पानी।।
कि करब जप-तप
जोग-धेआने।
जनम कुतारथ
एकहिं सनाने।।
भनई विद्यापति
समदजों तोही।
अन्तकाल जनु
बिसरह मोही।।
विद्यापति
ग. रीति काल
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अपने आत्म सम्मान
का वर्णन किया है- एक बार अकबर ने कुम्भनदास को फतेहपुर सीकरी बुलाया, कवि राजा की
भेजी हुई सवारी पर न जाकर पैदल ही गये और जब राजा ने कुछ गायन सुनने की इच्छा
प्रकट की तो कवि ने गाया-
भक्तन को कहा सीकरी सों काम।
आवत जात पनहिया टूटी बिसरि गयो हरि नाम।
जाको मुख देखे दुख लागे ताको करन करी परनाम।
कुम्भनदास लाला गिरिधर बिन यह सब झूठो धाम।
कुम्भनदास
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अगले जन्म में
प्रभु से किसी ना किसी तरह सामीप्य बनाये रखने की कामना की है-
मानुष हौं तो
वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जौ पसु हौं तो
कहा बस मेरौं चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।।
पाहन हौं तो
वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन।
जो खग हौं
बसेरो करौं मिल कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन।।
रसखान
ऊदल के जन्म का वर्णन-
जौन घड़ी यहु
लड़िका जन्मो दूसरो नाय रचो करतार
सेतु बन्ध और
रामेश्वर लै करिहै जग जाहिर तलवार।
किला जीती ले
यह मांडू का बाप का बदला लिहै चुकाय
जा कोल्हू में
बाबुल पेरे जम्बे को ठाड़ो दिहे पिराय।
किला किला पर
परमाले की रानी दुहाई दिहे फिराय
सारे गढ़ों पर
विजय ये करिके जीत का झंडा दिहे गड़ाय।
तीन बार गढ़
दिल्ली दाबे मारे मान पिथौरा क्यार
नामकरण जाको
ऊदल है भीमसेन क्यार अवतार।
जगनिक