Wednesday, November 30, 2022


मानव हूँ मैं,

ना ईश्वर बना तू,

मानव रहूँ।


                           डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, November 29, 2022


शिशिर ऋतु

अगहन महीना

बढ़ती सर्दी।


           डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, November 28, 2022


झील के तट पर खड़े थे इस तरह मैं और तुम

बिन छुये ही झील का जल थरथराने लग गया।

                             डॉ. कुँअर बेचैन 

Sunday, November 27, 2022


सब कुछ कह दूँगी

 

सब कुछ कह दूँगी,

राज सारे खोल दूँगी।

लगता नहीं; क्योंकि?

सामने जब तुम होते हो,

कुछ भी कहने की हालत में,

तब हम नहीं होते।


             डॉ. मंजूश्री गर्ग 


Saturday, November 26, 2022

 

जिंदगी बस

चार दिन की चाँदनी

दो दिन का बचपन

दो दिन जवानी

शेष ढ़लती शाम

है बस जिंदगी।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, November 25, 2022


तुम्हीं कान्हा हो, कन्हैया हो तुम।

तुम्हीं नन्दलाला, वासुदेव हो तुम।

तुम्हीं माखनचोर, चितचोर हो तुम।

तुम्हीं बाँसुरी वादक, सुदर्शन चक्रधारी हो तुम।

गोपों संग ग्वाला, गोपियों की प्रीत हो तुम।

राधा के मनमीत, द्वारकाधीश रूक्मिणी के।

 

                        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, November 24, 2022


 

तेरी जुल्फों के साये में शामें सुहानी हैं,

हैं रोशन रातें तेरी ही मुस्कानों से।

बज उठते हैं जब तेरी यादों के घुँघरू

जिंदगी कई सरगमें सुनाती है हमें।।

 

                          डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, November 23, 2022


प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने ईश्वर के प्रति अपनी रहस्यमयी भावना को अभिव्यक्त किया है-

 

मैं कब से ढ़ूँढ़ रहा हूँ।

अपने प्रकाश की रेखा।।

 

तम के तट पर अंकित है।

निःसीम नियति का लेखा।।

 

देने वाले को अब तक।

मैं देख नहीं पाया हूँ।।

 

पर पल भर सुख भी देखा।

फिर पल भर दुःख भी देखा।।

 

किस का आलोक गगन से।

रवि शशि उडुगन बिखराते।।

               भगवती चरण वर्मा

 

 

Monday, November 21, 2022


मंजिल मिली,

सफर के हैं साथी,

बिछुड़ गये।


                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

 

प्रत्येक व्यक्ति को उम्र-भर अपने बचपन की बातें याद आती रहती हैं. इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवियत्री ने प्रस्तुत पंक्तियों में की है-

बार-बार आती है मुझको

मधुर याद बचपन तेरी,

आ जा बचपन, एक बार फिर

दे दो अपनी निर्मल शान्ति

व्याकुल व्यथा मिटाने वाली

वह अपनी प्राकृत विश्रांति।

                   सुभद्रा कुमारी चौहान

 

 


Sunday, November 20, 2022

 

तारे झिलमिलायें

चाँद मुस्कुराये।

रात में तुम आये

मन भी गुनगुनाये।।


          डॉ. मंजूश्री गर्ग


Saturday, November 19, 2022

 


प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने नायिका के सौन्दर्य का वर्णन किया है-

कुंदन का रंग फीको लगै, झलकै अति अंगन चारू बुराई,

साखिन में अलसानि चितौनी में मंजु विलसन की सरसाई।

को बिन मोल विकात नहीं, मतिराम लहै मुस्कानि मिठाई,

ज्यों-ज्यों निहारिये तेरे ह्वै नैननि, त्यों-त्यों खरी निकरे सी निकाई।

                                                      मतिराम

Friday, November 18, 2022


जिंदगी में छाँव बनकर आप आये हैं।

अब हमें धूप सुहानी लग रही है।।


                  डॉ. मंजूश्री गर्ग

  

Thursday, November 17, 2022

 


कवि विद्यापति गंगा मैय्या के बहुत बड़े भक्त थे. अन्त समय स्वयं गंगा मैय्या दस कोस चलकर कवि के पास तक आयीं थीं उस समय जो कवि ने रचना की प्रस्तुत है-

 

बड़ सुखसार पाओल तुअ तीरे।

छोड़इत निकट नयन बह नीरे।।

करनोरि बिलमओ विमल तरंगे।

पुनि दरसन होए पुनमति गंगे।।

एक अपराध होए छमब मोर जानी।

परमल माए पाए तुम पानी।।

कि करब जप-तप जोग-धेआने।

जनम कुतारथ एकहिं सनाने।।

भनई विद्यापति समदजों तोही।

अन्तकाल जनु बिसरह मोही।।

 

                       विद्यापति

 

 

 

 

 

 

 

ग. रीति काल

Wednesday, November 16, 2022


जीवन खिले तो खिले ऐसे जैसे खिले डाल पर फूल,

उपवन को सजाये और पवन को महकाये।

यश फैले तो फैले ऐसे जैसे फैलें प्रातः की किरणें

अंधकार को दूर करें और उजियारा फैलायें।।


                  डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

 

  

Tuesday, November 15, 2022


गीत

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

शरद सुहावनि आई रे

नया रंग भर लाई रे।

 

पत्तों पे हरियाली है

कली-कली मुस्काई है,

बादल उड़ते-फिरते रहते

कभी धूप, कभी छाँव है।

 

नदिया की धारा को देखो

मन्द-मन्द सी बहती है,

क्यूँ तेरे मेरे मन में

उथल-पुथल सी होती है।

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प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अपने आत्म सम्मान का वर्णन किया है- एक बार अकबर ने कुम्भनदास को फतेहपुर सीकरी बुलाया, कवि राजा की भेजी हुई सवारी पर न जाकर पैदल ही गये और जब राजा ने कुछ गायन सुनने की इच्छा प्रकट की तो कवि ने गाया-

 

भक्तन को कहा सीकरी सों काम।

आवत जात पनहिया टूटी बिसरि गयो हरि नाम।

जाको मुख देखे दुख लागे ताको करन करी परनाम।

कुम्भनदास लाला गिरिधर बिन यह सब झूठो धाम।

 

                        कुम्भनदास


Monday, November 14, 2022


जग विष भी देगा तो अमृत हो जायेगा।

मीरा की तरह दीवानी हूँ मैं तेरे नाम की।।


डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, November 13, 2022


सुबह सुहानी धूप है, रात मधुर है चाँदनी।

प्रिय! मुस्कान तुम्हारी है जीवनदायिनी।।


                         डॉ. मंजूश्री गर्ग

Saturday, November 12, 2022

 

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने भगवान राम के प्रति अपनी भक्ति भावना को अभिव्यक्त किया है-

राम सो बड़ो है कौन, मोसों कौन छोटो?

राम सो खरो है कौन, मोसों कौन खोटो?

                         तुलसीदास

 

कहाँ जाऊँ कासों कहौं, और ठौर न मेरो।

जनम गँवायो तेरे हि द्वारे, मैं किंकर तेरा।

                         तुलसीदास

 


Friday, November 11, 2022


चमकते हैं जो, सितारे वही नहीं बड़े।

दूर बहुत दूर हैं, सितारे बड़े-बड़े।।


          डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, November 10, 2022


क्या मेरा? क्या तेरा साथी?

जो कुछ है इस जग का साथी।

क्या पाया? क्या खोया हमने?

जो पाया, जो खोया हमने,

सब कुछ इस जग का साथी।


                  डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, November 9, 2022

 


प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अगले जन्म में प्रभु से किसी ना किसी तरह सामीप्य बनाये रखने की कामना की है-

मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।

जौ पसु हौं तो कहा बस मेरौं चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।।

पाहन हौं तो वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन।

जो खग हौं बसेरो करौं मिल कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन।।

                                             रसखान

Tuesday, November 8, 2022


जीवन-तट से चुन लें अनमोल खुशी के पल

जैसे सागर-तट से चुनकर लायें मोती।

सजा लें आभूषण -सा मन-आँगन

जिसकी आभा से हो प्रकाशित जीवन।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, November 7, 2022


सम्बन्धों की देहरी पर खिले प्यार के फूल।

रखना कदम आगे विश्वासों के साथ।।


                 डॉ. मंजूश्री गर्ग



                                            

Sunday, November 6, 2022


प्रभु जी तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग-अंग बास समानी।

प्रभु जी तुम दीपक हम बाती, जाकी ज्योति बरै दिन राती।।

                                           रैदास 

Saturday, November 5, 2022


सहज, निर्मल, निश्छल, बह रही प्रेम-धार।

मानों नदी के तटों-बीच, बह रही जल-धार।।


                   डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

  

Friday, November 4, 2022

 

ऊदल के जन्म का वर्णन-

जौन घड़ी यहु लड़िका जन्मो दूसरो नाय रचो करतार

सेतु बन्ध और रामेश्वर लै करिहै जग जाहिर तलवार।

किला जीती ले यह मांडू का बाप का बदला लिहै चुकाय

जा कोल्हू में बाबुल पेरे जम्बे को ठाड़ो दिहे पिराय।

किला किला पर परमाले की रानी दुहाई दिहे फिराय

सारे गढ़ों पर विजय ये करिके जीत का झंडा दिहे गड़ाय।

तीन बार गढ़ दिल्ली दाबे मारे मान पिथौरा क्यार

नामकरण जाको ऊदल है भीमसेन क्यार अवतार।

                                          जगनिक


Thursday, November 3, 2022


      जब कवि का ह्रदय भाव-प्रवण होता है

      अनुभूति का भी स्रोत गहन होता है

      लहराने लगे बिन्दु में ही जब सिन्धु

      वास्तव में वही सृजन का क्षण होता है।

 

                     उदयभानु हंस

Wednesday, November 2, 2022


आधा चंद्रमा,

आलोकित करता

अपनी प्रभा से

गगन मंडल। 

दिन-दिन बढ़ती

आस पूर्णमासी की।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Tuesday, November 1, 2022


 

विवाह दो दिन का उत्सव नहीं

उल्लास है जीवन भर का.

समर्पण एक दूजे को वर-वधू का

निभानी है परम्परा दोनों कुलों की.

 

                        डॉ. मंजूश्री गर्ग