Saturday, January 29, 2022


जिन्होंने बर्फ में भी शौर्य की चिंगारियाँ बो दीं

पहाड़ी चोटियों पर भी अभय की क्यारियाँ बो दीं।

भगाकर दूर सारे गीदड़ों, सारे श्रृंगालों को

जिन्होंने सिंह वाले युद्ध में खुद्दारियाँ बो दीं।

 

अहर्निश जो बढ़े आगे विजय-अभियान की खातिर

उन्हें शत्-शत् नमन मेरा, उन्हें शत्-शत् नमन मेरा।

                                          उर्मिलेश शंखधार 

Friday, January 28, 2022


सापेक्ष विश्व निर्मित है

कल्पना कला के लेखे।

यह भूमि दूसरा शशि है

कोई शशि से जा देखे।

                  जगदीश गुप्त 

Thursday, January 27, 2022


भूलेहूँ कबहूँ न जाइए, देस-विमुखजन पास।

देश-विरोधी-संग तें, भलो नरक कौ वास।।

सुख सौं करि लीजै सहन, कोटिन कठिन कलेस।

विधना, दै न मिलाइयो, जे नासत निज देस।।

सिय-विरंचि-हरिलोकें, विपत सुनावै रोय।

पै स्वदेस-विद्रोहि कों, सरन न दैहै कोय।।

                                    वियोगी हरि 

Tuesday, January 25, 2022



हिम श्रेणी अंगूर लता सी

फैली, हिम जल है हाला।

चंचल नदियाँ साकी बनकर

भरकर लहरों का प्याला।

कोमल कूल करों में अपने

छलकाती निशिदिन चलतीं।

पीकर खेत खड़े लहराते

भारत पावन मधुशाला।

                 डॉ. हरिवंशराय बच्चन 




73 वें गणतंत्र दिवस, 26 फरवरी 2022

की

हार्दिक शुभकामनायें

  

Monday, January 24, 2022


गुनगुनी सी धूप रंग लाई सर्दी में,

सूनी पड़ी मुंडेरे सज आई सर्दी में.

 

काजू, बादाम, तिलगोजे सब सपन हो गये,

मूँगफली के दाने मेवा बन आईं सर्दी में.

 

                                 डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, January 20, 2022


गजल

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

उगते हुये सूरज को ये ढ़कता है कौन।

घनघोर अँधेरे को फिर तोड़ता है कौन।।

 

जलती हुई शमा दम तोड़ चुकी कब का।

परवानों का राग फिर सुनाता है कौन।।

 

पंछियों का राग आज बंद हुआ नीड़ों में।

रात के सपनों को फिर चुराता है कौन।।

 

पथिक आज खो गये घनघोर कोहरे में।

सड़कों को आज फिर जगाता है कौन।।

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Tuesday, January 18, 2022



ओस भीगी सुबह

कोहरे में लिपटी शाम

बस एक टुकड़ा धूप

आस जिंदगी की।


           डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, January 16, 2022


धुंध हटेगी

आज नहीं तो  कल

होगा उजाला।


                      डॉ. मंजूश्री गर्ग

Saturday, January 15, 2022


हर रिश्ते को थोड़ी परवरिश चाहिये,

थोड़ी धूप, थोड़ी छाँव चाहिये।

स्नेह का जल, प्यार के छींटे चाहिये,

अपनेपन की थोड़ी हवा चाहिये।। 


                           डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, January 14, 2022


आँखों की ज्योति तुम ही,

अधरों की मुस्कान तुम ही।

दिल की धड़कन ही नहीं,

स्पन्दन भी हो तुम ही।।


           डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, January 13, 2022


14 जनवरी, 2022  शुभ मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनायें



एवम् अस्तु बनारसी कहै, जैसी जाहि परै सो सहे।

जैसा काते तैसा बुने, जैसा बोबे तैसा लुनै।

                            बनारसी दास जैन 

Wednesday, January 12, 2022



माना घड़ी संकट की है, खतरे बड़े हैं।

हिम्मत मत हारना, प्रभु पीछे खड़े हैं।।


                              पं. राम कृपा मुबरेले 

Tuesday, January 11, 2022


गजल

 

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

यादों के दिये, जब-जब जले,

निशान और भी, गहरे हुये।

 

उजालों के लिये, जब-जब लड़े,

अँधेरे  और  भी, गहरे हुये ।

 

फूलों के लिये, जब-जब बढ़े,

उपवन ने दिये, चुभते हुये।

 

पानी के लिये, जब-जब झुके,

नदी  ने  दिया, सहमे हुये।


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Monday, January 10, 2022


विश्व हिन्दी दिवस पर विश्व के सभी हिंदी भाषी एवम् सभी हिंदी भाषी प्रेमियों को हार्दिक शुभकामनायें

10 जनवरी, 2022


                                                                           डॉ. मंजूश्री गर्ग 


हजार दीप

जगमगाये मन

बँधी है आस।


                 डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, January 8, 2022


बिन कहे बहुत कहा तुमसे।

 

दिल का हाल छुपाया हमने

मौन रहे कुछ भी ना कहा.

महफिल में भी रहे, तो

मुस्कान, गहने सी रहे पहने.

फिर भी, नयनों की उदासी ने

बिन कहे बहुत कहा तुमसे।


               डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, January 7, 2022



जब हम हुते तवै तुम्ह नांही, अब तुम्ह हौं मैं नांही।

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कहै रैदास भगति एक उपजी, सहजै होइ स होइ।

                                           रैदास

  

Thursday, January 6, 2022


उखड़ेंगे ना

दूब से जुड़े हुये

हम धरा से।


                डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, January 3, 2022

 


जीतने के लिये ही नहीं, हारने के लिये भी साथी चाहिये और ऐसा साथी जिससे हारने पर भी आनन्द की अनुभूति हो।

              डॉ.मंजूश्री गर्ग

 


सुबह हुई तो,

 

सुबह हुई तो,

रात के

मधुर सपने

चुरा ले गयी।

कुछ लालिमा

आकाश तले,

कुछ मधुरता

फूलों पे

बिखरा गयी।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, January 1, 2022


समय की दहलीज पर जला दो आज चिराग।

रोशन होंगी आने वाली राह अँधेरी।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग