Friday, March 31, 2023


 तुम्हारी बोली में है शहद की मिठास।

पास बैठो जरा महकेंगे बेला, गुलाब।।


             डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, March 30, 2023

 

जिंदगी को क्या मालूम, मंजिल है सागर।

बस यूँ ही चलती रही, लहरों के साथ-साथ।।


                        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, March 29, 2023




राम, भरत, लक्ष्मण औ' शत्रुघ्न

खेलें दशरथ के आँगन।

हरषे दशरथ, कौशल्या,

कैकयी, सुमित्रा औ' सब जन।


                          डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, March 28, 2023


हाइकु

डॉ. मंजूश्री गर्ग


कला की देवी

कलाओं का ज्ञान दें

माँ सरस्वती.

1.

श्री गणेशजी

रिद्धि-सिद्धी के संग

सदा विराजे.

2.

श्री लक्ष्मीजी

वैभव शालिनी माँ

वैभव देती.

3.

श्री पार्वतीजी

सौभाग्य शालिनी माँ

सौभाग्य दें.

4.

दुर्गा रूप में

शक्ति शालिनी माँ

शक्ति देती.

5.

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Monday, March 27, 2023


तेरे मन ने जान ली, मेरे मन की बात।

क्या तुम्हें पाती लिक्खूँ, क्या करूँ मनुहार।।


     डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, March 26, 2023


अधूरी हैं कामनायें, कैसे मोक्ष की कामना करें?

नवजीवन में पूरी हों, कामनायें यही कामना करें।


                डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

  

Saturday, March 25, 2023

 

दूर तुमसे हूँ प्रिये!

मिठास तुम्हारी बनी रहे।

मैं खारा सागर,

तुम नदी की मीठी धार।।

     

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

 


Friday, March 24, 2023

 

दोस्त तो बहुत मिल जाते हैं लेकिन सब सुख के साथी होते हैं जो मित्र परेशानी के समय साथ निभाये वो मित्र बड़ी मुश्किल से मिलते हैं-

मुश्किल मौकों पर ही मुझसे मिलने आया

इक ऐसा भी यारों मुझको यार मिला है।

                                   लक्ष्मण



Thursday, March 23, 2023


जीवन खिले तो खिले ऐसे जैसे खिले डाल पर फूल,

उपवन को सजाये और पवन को महकाये।

यश फैले तो फैले ऐसे जैसे फैलें प्रातः की किरणें

अंधकार को दूर करें और उजियारा फैलायें।।


  डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

  

Wednesday, March 22, 2023



चैत्री नवरात्रि, 2023 की हार्दिक शुभकामनायें-



 

Tuesday, March 21, 2023

 

पं. नरेन्द्र शर्मा


डॉ. मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 28 फरवरी, सन् 1913 ई. खुर्जा(उत्तर प्रदेश)

पुण्य-तिथि- 11 फरवरी, सन् 1989 ई.

पं. नरेन्द्र शर्मा हिन्दी के प्रसिद्ध कवि, लेखक व गीतकार थे। इन्होंने इलाहाबाद विश्व विद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी व अंग्रेजी में एम. ए. किया था। सन् 1931 ई. में इनकी पहली कविता चाँद में प्रकाशित हुई। शीघ्र ही जागरूक, अध्धयनशील और भावुक कवि नरेन्द्र शर्मा ने नये कवियों में अपना प्रमुख स्थान बना लिया। लोकप्रियता में उनको हरिवंशराय बच्चन के समान ही माना जाता था।

 

पं. नरेन्द्र शर्मा ने सन् 1934 ई. में प्रयाग से अभ्युदय पत्रिका का संपादन किया और 1934 में ही श्री मैथिलीशरण गुप्त की काव्य कृति यशोधरा की समीक्षा लिखी। शर्मा जी काशी विद्यापीठ में हिन्दी व अंग्रेजी के प्राध्यापक रहे और स्वतंत्रता आंदोलन से भी जुड़े रहे। सन् 1940 ई. में ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रशासन विरोधी गतिविधियों के कारण गिरफ्तार कर लिये गये। कुछ समय नजरबंद भी रहे व 19 दिन तक अनशन भी किया। सोहनासिंह जोश, शचीन्द्रनाथ सान्याल, जयप्रकाश नारायण, सम्पूर्णानन्द, आदि महान विभूतियों का सामिप्य मिला। शर्माजी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी स्वराज भवन में हिंदी अधिकारी रहे। शर्मा जी आकाशवाणी से भी संबंधित रहे व हिन्दी फिल्मों के लिये भी गीत लिखे। 3 अक्टूबर, सन्1957 ई. भारतीय रेडियो प्रसारण के क्षेत्र में एक नया अध्याय जुड़ा विविध भारती नाम से। विविध भारती का नाम शर्मा जी ने ही दिया था। शर्मा जी ने 55 फिल्मों में लगभग 650 गीत लिखे थे। हमारी बात, रत्नघर, फिर भी, ज्वार भाटा, सजनी, मालती माधव, चार आँखें, मेरा सुहाग, बिछड़े बालम, चूड़ियाँ, जेल-यात्रा, भाई-बहन, सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् जैसी अनेक फिल्मों के लिये गीत लिखे। बी. आर. चौपड़ा द्वारा निर्देशित धारावाहिक महाभारत की पट कथा भी पं. नरेन्द्र शर्मा जी ने लिखी थी। शर्मा जी द्वारा रचित अंतिम दोहा भी महाभारत का ही है-

 

शंखनाद ने कर दिया, समारोह का अंत।

अंत यही ले जायेगा, कुरूक्षेत्र पर्यन्त।।

    पं नरेन्द्र शर्मा

पं. नरेन्द्र शर्मा की प्रसिद्ध रचनायें हैं-

कविता संग्रह- प्रवासी के गीत, मिट्टी और फूल, अग्निशस्य, प्यासा निर्झर, मुठ्ठी बंद रहस्य।

प्रबंध काव्य- मनोकामिनी, द्रौपदी, उत्तर जय सुवर्णा।

काव्य-संचयन- आधुनिक कवि, लाल निशान।

कहानी संग्रह- कड़वी-मीठी बात।

जीवनी- मोहनदास करमचंद गाँधी- एक प्रेरक जीवनी।

पं. नरेन्द्र शर्मा द्वारा रचित स्वागतम् गान 1982 एशियाड के स्वागत गान के लिये चुना गया, जिसे संगीत पं रविशंकर ने दिया था-

 

स्वागतम् शुभ स्वागतम्

आनंद मंगल मंगलम्

नित प्रियम् भारत भारतम्

 

नित्य निरंतरता नवता

मानवता समता ममता

सारथि साथ मनोरथ का

संकल्प अविजित अभिमतम्

 

आनंद मंगल मंगलम्

नित प्रियम् भारत भारतम्

 

कुसुमित नई कामनायें

सुरभित नई साधनायें

मैत्री मति क्रीड़ांगन में

प्रमुदित बन्धु भावनायें

शाश्वत सुविकसित इति शुभम्

 

आनंद मंगल मंगलम्

नित प्रियम् भारत भारतम्

 

पं नरेन्द्र शर्मा

पं. नरेन्द्र शर्मा द्वारा रचित गीत जयोति कलश छलके, यशोमती मैय्या से बोले नंदलाला, आदि आज भी जन-जन के प्रिय हैं।

 

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Monday, March 20, 2023


 शांत बहुत शांत हैं सागर की लहरें।

तूफान आने की प्रबल संभावनायें हैं।।


   डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, March 19, 2023


फिर आया यादों का मौसम,

बिन मौसम बरसात का मौसम।

बसन्त खिला भी न था मन में,

कि आ गया विरह का मौसम।।


          डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, March 18, 2023


हाल क्या कहिये

बदलते मौसम का।

चढ़ता-उतरता है पारा

सेंसेक्स की तरह।।


         डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, March 17, 2023


गिरने ना देना आँसू कोई,

मन-द्वारे पे सजी अल्पना।।


       डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, March 16, 2023


हवा का झोंका चला,

फूल का मन डोला।

धीरे से मुस्काया,

कि पवन चूम चला।।


              डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, March 15, 2023

 

श्री विनोद कुमार शुक्ल


डॉ. मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 1जनवरी, सन् 1937 ई. राजनादगाँव

 

श्री विनोद कुमार शुक्ल जी हिन्दी के प्रसिद्ध कवि व कथाकार हैं। शुक्ल जी ने व्यवसाय के रूप में प्राध्यापन को चुना और साथ ही साहित्य का सृजन भी किया। शुक्ल जी का पहला कविता संग्रह लगभग जयहिंद नाम से सन् 1971 ई. में प्रकाशित हुआ। सन् 1979 ई. में दीवार में एक खिड़की उपन्यास प्रकाशित हुआ, इसके लिये शुक्ल जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला और फिल्मकार मणिकौल ने दीवार में एक खिड़की नाम से एक फिल्म बनाई।

 

श्री विनोद कुमार शुक्ल जी की लेखन शैली एकदम नयी थी। उनके उपन्यासों में पहली बार एक मौलिक भारतीय उपन्यास की संभावना को दिशा मिली। उन्होंने एक साथ लोक आख्यान और आधुनिक मनुष्य की अस्तित्व मूलक जटिल आंकाक्षाओं की अभिव्यक्ति को समाविष्ट कर एक नयी कथा का स्वरूप प्रस्तुत किया। अपनी विशिष्ट भाषा संरचना, संवेदनात्मक उत्कृष्ट रचनाशीलता से शुक्ल जी ने भारतीय वैश्विक साहित्य को अद्वितीय रूप से समृद्ध किया।

 

श्री विनोद कुमार शुक्ल जी की रचनाओं का अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। भारत की अन्य भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेजी, फ्रेंच और इतालवी भाषाओं में भी शुक्ल जी की रचनाओं का अनुवाद हुआ है। शुक्ल जी की प्रमुख रचनायें हैं-

 

कविता संग्रह-

वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर, विचार की तरह, सब कुछ होना बचा रहेगा, अतिरिक्त नहीं, कविता से लंबी कविता, आकाश धरती को खटखटाता है, पचास कवितायें(2011), कभी के बाद अभी, कवि ने कहा, प्रतिनिधि तवितायें।

 

उपन्यास-

नौकर की कमीज, खिलेगा तो देखेंगे, दीवार में एक खिड़की रहती थी, हरी घास की छप्पर वाली झोंपड़ी और बौना पहाड़, यासि रासा त, एक चुप्पी जगह।

 

कहानी संग्रह-

पेड़ पर कमरा, महाविद्यालय, एक कहानी, घोड़ा और अन्य कहानियाँ।

 

कहानी और कविता पर पुस्तक-

गोदाम, गमले में जंगल।

श्री विनोद कुमार शुक्ल जी को समय-समय पर विविध पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। जैसे- रजा पुरस्कार, शिखर सम्मान, हिन्दी गौरव सम्मान, राष्ट्रीय मैथिली गुप्त सम्मान, गजानन माधवबोध फेलोशिप। सन् 2023 ई. में अमेरिका के पेन/नाबोकोब सम्मान से सम्मानित किया गया। इसे अमेरिका में साहित्य का ऑस्कर सम्मान समझा जाता है।

 

प्रतिबिंब में उसके बालों में

एक फूल खुँसा है।

 

परन्तु उसके बालों में नहीं।

मैंने सोचा काले-तख्ते के चित्र से

फूल तोड़कर उसके बालों में लगा दूँ

या गमले से तोड़कर

या प्रतिबिंब से।

 

प्रेम की कक्षा में जीवन-भर अटका रहा।

                  श्री विनोद कुमार शुक्ल

 


Tuesday, March 14, 2023


कुछ गढ़ लेते हैं, कुछ बुन लेते हैं,

ऐसे ही शब्दों से गीत रच लेते हैं।

कुछ कह देते हैं, कुछ छुपा लेते हैं,

ऐसे ही भावों को अभिव्यक्त करते हैं।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, March 13, 2023


हिमगिरि सा प्रेम, विरह ताप बिन।

कैसे निर्झर बन जीवन को करता सिंचित।।


     डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, March 12, 2023


रात सोती नहीं,

बात होती नहीं।

सूनी छत है,

तारे भी साथ नहीं।

 

        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, March 11, 2023


गजल

 

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

यादों के दिये, जब-जब जले,

निशान और भी, गहरे हुये।

 

उजालों के लिये, जब-जब लड़े,

अँधेरे  और  भी, गहरे हुये ।

 

फूलों के लिये, जब-जब बढ़े,

उपवन ने दिये, चुभते हुये।

 

पानी के लिये, जब-जब झुके,

नदी  ने  दिया, सहमे हुये। 


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Friday, March 10, 2023



गीत

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

कैसे मन की बात कहें

मन पे मन का बोझ है।

 

रात अँधेरी चमके तारे

सजन हमारे कहाँ छुपे हो?

हम तो सजनि! साथ तुम्हारे

पूनम-मावस हाथ तुम्हारे।

 

चाँद-चाँदनी साथ चले

धरती औ आकाश तले।

फूलों में फूलों की खुशबू

ऐसे मन में आन बसे हो।

 

 


Thursday, March 9, 2023

 

वैयक्तिक संवेदना-

आषाढ़ का एक दिन(नाटक-मोहन राकेश) से-

लोग सोचते हैं मैंने उस जीवन और वातावरण मे रहकर बहुत कुछ लिखा है। परन्तु मैं जानता हूँ मैंने वहाँ रहकर कुछ नहीं लिखा। जो कुछ लिखा है वह यहाँ के जीवन का ही संचय था। कुमारसम्भव् की पृष्ठभूमि यह हिमालय है और पयस्विनि उमा तुम हो। मेघदूत के यक्ष की पीड़ा मेरी पीड़ा है और विरह-विमर्दिता यक्षिणी तुम हो-यद्यपि मैंने स्वयं यहाँ होने और तुम्हें नगर में देखने की कल्पना की। अभिज्ञान शाकुन्तलम् में शकुन्तला के रूप में तुम्हीं मेरे सामने थीं। मैंने जब-जब लिखने का प्रयत्न किया तुम्हारे और अपने जीवन के इतिहास को फिर-फिर दोहराया। और जब उससे हटकर लिखना चाहा, तो रचना प्राणवान नहीं हुई। रघुवंश में अज का विलाप मेरी ही वेदना की अभिव्यक्ति है और------। कालिदास पात्र का कथन


Wednesday, March 8, 2023


8 मार्च, 2023, चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि, नव विक्रमी संवत् 2080 की हार्दिक शुभकामनायें

Tuesday, March 7, 2023


 

टेसू बिना ना सोहे रंग होली के,

गुझियाँ बिना ना सोहे पकवान होली के,

भाँग बिना सोहे नशा होली का,

साजन बिना सोहे त्यौहार होली का।

 

   डॉ. मंजूश्री गर्ग