Wednesday, May 30, 2018




मुबारकें-------

डॉ0 मंजूश्री गर्ग


मेरी छुअनों को
महसूस कर लो तुम।

बहुत अँधेरा है
उजाला कर लो तुम।

ईद का चाँद हूँ
दीदार कर लो तुम।

मुबारकें मेरी भी
कबूल कर लो तुम।

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एक नदी को सर्वप्रथम स्वयं भीगना होता है. तभी वह भूमि तर और वृक्षों को भिगोने की सामर्थ्य रख सकती है. एक कवि को अग्नि में जलकर राख होना पड़ता है. तभी वह फीनिक्स पक्षी की तरह अपनी ही राख से पुनर्जन्म लेता है.

                                         एकान्त श्रीवास्तव

Monday, May 28, 2018



इंटरव्यू

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

इंटरव्यू हिन्दी गद्य साहित्य की नव्यतम विधाओं में से एक है. इसके प्रवृतन का श्रेय श्री बनारसी दास चतुर्वेदी जी को है जिन्होंने अपने द्वारा सम्पादित पत्रिका विशाल भारत  में रत्नाकर जी का इंटरव्यू(रत्नाकर जी से बातचीत) और प्रेमचंद जी का इंटरव्यू(प्रेमचंद जी के साथ दो दिन) क्रमशः सितम्बर, 1931 और जनवरी, 1932 के अंकों में प्रकाशित किया.

परिभाषा
इंटरव्यू से अभिप्राय उस रचना से है जिसमें लेखक व्यक्ति विशेष के साथ साक्षात्कार करने के बाद प्रायः निश्चित प्रश्नमाला के आधार पर उसके व्यक्तित्व और कृतित्व के सम्बन्ध में प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करता है और फिर अपने मन पर पड़े प्रभाव को लिपिबद्ध करता है.

साक्षात्कार, भेंट-वार्ता, इंटरव्यू के ही पर्यायवाची हैं. कुछ विद्वान परिचर्चा को भी इटंरव्यू का पर्यायवाची मानते हैं जबकि इंटरव्यू और परिचर्चा में बहुत अन्तर है.

परिचर्चा

परिचर्चा किसी विषय पर विभिन्न विद्वानों के विचार प्राप्त करने के लिये आयोजित की जाती है. परिचर्चा में लेखक विषय से सम्बन्धित एक प्रश्नावली तैय्यार करता है और विषय से सम्बन्धित विद्वानों से उनके मत प्राप्त करता है. या तो लेखक एक-एक प्रश्न पर विविध विद्वानों के मत लिपिबद्ध करते हैं या क्रमशः एक-एक विद्वान से सभी प्रश्नों के प्राप्त उत्तरों को लिपिबद्ध करते हैं. परिचर्चा अधिकांशतः समसामयिक विषयों पर ही होती है.

इंटरव्यू और परिचर्चा में अन्तर

1.     इंटरव्यू एक समय में एक व्यक्ति का लिया जाता है जबकि परिचर्चा दो या दो से अधिक व्यक्तियों के साथ की जाती है.
2.     इंटरव्यू में व्यैक्तिकता अधिक रहती है जबकि परिचर्चा में पूर्व निर्धारित प्रश्नमाला के आधार पर ही लेखक प्रश्न पूछता है.

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सुबह-सबेरे
न जाने कौन परिंदा
दे जाता प्रेम-पाती।
मंत्र-मुग्ध से रहते हम
बाँचता रहता मन दिन-भर।

             डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Saturday, May 26, 2018


बरगद हो या पीपल
आम हो या जामुन।
बढ़ रहे घर-आँगन
जितना चाहें हम।
जैसे तराशें ख्बाब
बोनसाई से हम।

                                    डॉ0 मंजूश्री गर्ग

रिपोर्ताज

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

रिपोर्ताज हिन्दी गद्य साहित्य की नयी विधा है इसका प्रारम्भ शिवदाससिंह चौहान की रचना लक्ष्मीपुरा(रूपाभ, दिसम्बर 1938) से माना जाता है. रिपोर्ताज फ्रांसीसी भाषा का शब्द है और इसका प्रारम्भ द्वितीय विश्व युद्ध सन् 1936 ई0 के समय हुआ था. रूसी साहित्यकारों ने रिपोर्ताज का विशेष प्रचार-प्रसार किया.

परिभाषा-
जिस रचना में वर्ण्य विषय का आँखों देखा तथा कानों सुना ऐसा विवरण प्रस्तुत किया जाये कि पाठक की ह्रदय-तन्त्री के तार झंकृत हो उठें और वह उसे भूल न सके, उसे रिपोर्ताज कहते हैं.

रिपोर्ट और रिपोर्ताज में अन्तर-
रिपोर्ट में जहाँ विवरण में कलात्मक अभिव्यक्ति का अभाव होता है तथा तथ्यों का लेखा-जोखा मात्र रहता है वहीं रिपोर्ताज में तथ्यों को कलात्मक एवम् प्रभावोत्पादक ढ़ंग से अभिव्यक्त किया जाता है.











Friday, May 25, 2018



तप रही है धरा,
तप रहा है गगन।
छाँव भी छाँव
ढ़ूँढ़ती तरू-तले।

                  डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Thursday, May 24, 2018


नजरें मिला के नजरें चुराना
बिना कुछ कहे सब कुछ कह जाना।
अनोखी है अदा तुम्हारी प्रिये!
कहो कहाँ सीखीं ये अदायें।


डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Wednesday, May 23, 2018




कान्हा! मैं द्वारकाधीश को नहीं जानती।
मुझसे मिलना है तो वही ग्वाले का रूप रख,
सिर पर मोर मुकुट लगा आना होगा और जो
बाँसुरी रखी है मेरे पास, उसे बजाना होगा।
तभी खुलेंगें द्वार ह्रदय के तुम्हारे लिये।

                  डॉ0 मंजूश्री गर्ग



Monday, May 21, 2018




आने को कहा है
जब से तुमने
एक-एक पल
इन्तजार का
कट रहा है
मुश्किल में।
घड़ी-घड़ी
घड़ी देखती हूँ।
एक पल उमंग
एक पल उदासी
छा रही है
मन-मन्दिर में।

       डॉ0 मंजूश्री गर्ग




Sunday, May 20, 2018



पं0 श्रीधर पाठक
(छायावाद के प्रवर्तक)



डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 11 जनवरी, सन् 1858 ई0(आगरा)
पुण्य-तिथि- 13 सितंबर, सन् 1928 ई0

पं0 श्रीधर पाठक आधुनिक काल के खड़ी बोली हिंदी के प्रथम कवि हैं. आपने अपनी रचनाओं में ब्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों का प्रयोग किया है. आधुनिक काल के आरंभ में हिन्दी कविता के लिये ब्रजभाषा ही उपयुक्त मानी जाती रही, क्योंकि स्वयं आधुनिक काल के जनक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र(जिन्होंने खड़ी बोली को मानक रूप दिया) हिन्दी कविता के लिये ब्रजभाषा के पक्षधर रहे. किन्तु आधुनिक काल के कुछ समय बाद हिन्दी कविता की माध्यम खड़ी बोली बनी और इसके प्रथम सशक्त हस्ताक्षर रहे कवि पं0 श्रीधर पाठक.

आधुनिक हिन्दी काव्य में यह समय स्वच्छंदतावादी काव्य-धारा का माना जाता है. स्वच्छंदतावादी कविता में प्रकृति चित्रण के अतिरिक्त व्यैक्तिक भावनाओं की अभिव्यक्ति, समाज सुधार, देशप्रेम की भावनाओँ की अभिव्यक्ति, नये-नये छंदो का प्रयोग होता था. पं0 श्रीधर पाठक की कविताओं में यह सभी गुण देखने को मिलते हैं. आगे चलकर यह सभी गुण छायावादी काव्य में विकसित हुये. इस तरह
पं0 श्रीधर पाठक छायावाद के प्रवर्तक के रूप में भी जाने जाते हैं. प्रस्तुत कविता में कवि ने अपनी देश-प्रेम की भावना को अभिव्यक्त किया है-

निज स्वदेश ही एक सर्व पर ब्रह्म-लोक है
निज स्वदेश ही एक सर्व पर अमर-लोक है
निज स्वदेश विज्ञान-ज्ञान-आनंद-धाम है
निज स्वदेश ही भुवि त्रिलोक-शोभाभिराम है
सो निज स्वदेश का, सर्व विधि, प्रियवर, आराधन करो
अविरत-सेवा-सन्नद्ध हो सब विधि सुख-साधन करो।

                                     पं0 श्रीधर पाठक


गुनवंत हेमंत पं0 श्रीधर पाठक की पहली रचना है, मनोविनोद में बाल कवितायें हैं. पं0 श्रीधर पाठक ने गोल्डस्मिथ के द हरमिट का हिन्दी खड़ी बोली पद्य में अनुवाद किया. यह एक खण्ड काव्य है इसका नाम एकांतवास योगी है. यह हिन्दी खड़ी बोली का प्रथम खण्ड काव्य है. यह प्रेम काव्य है जिसमें एक रमणी द्वारा उपेक्षित पुरूष योगी बन जाता है. बाद में वही रमणी उस पुरूष की पुरूष वेश रखकर खोज करती है. बाद में योगी अपनी प्रियतमा को पहचान लेता है. श्रांत पथिक भी प्रसिद्ध रचना है.


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Saturday, May 19, 2018



यूँ ही नहीं बहकते
कदम हमारे
मदहोशी-सी
छाई है हवा में आज।
शायद तुमसे मिल के
आई है पवन आज।

     डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Friday, May 18, 2018



जब तक ना फूटें नयी कोंपलें,
कैसे कह दें जड़ें जमी हैं।

                                                                               डॉ0 मंजूश्री गर्ग



Thursday, May 17, 2018



गुमनाम सही लेकिन बदनाम नहीं।
आशिक हैं तुम्हारे किसी और के नहीं।

        डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Wednesday, May 16, 2018



बनारसी दास जैन
(हिन्दी साहित्य के प्रथम आत्म-कथाकार)

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि   सन् 1586 ई0 (जौनपुर)
पुण्य-तिथि  सन् 1643 ई0 (जौनपुर)

बनारसी दास जैन एक कवि हैं और काव्य में ही आपने अपना आत्म-चरित अर्ध कथानक नाम से लिखा. यह हिन्दी साहित्य का ही नहीं वरन् किसी भी भारतीय भाषा में लिखा प्रथम आत्म-चरित है. कवि ने 675 दोहा, चौपाई और सवैया में अपनी आत्म-कथा लिखी है. जब कवि ने यह ग्रंथ लिखा उस समय उनकी आयु लगभग 55 वर्ष थी. जैन धर्म के अनुसार व्यक्ति की आयु 110 वर्ष होती है, इसीलिये उन्होंने अपने आत्म-चरित का नाम अर्ध कथानक रखा.

बनारसी दास जैन के पिता का नाम खड्गसेन था और जौहरी थे. बनारसी दास जैन  का युवावस्था में व्यापार में मन नहीं लगता था. घर बैठे हुये मधुमालती और मृगावती पढ़ा करते थे, साथ ही छंद-शास्त्र, आदि ग्रंथों का भी अध्ययन करते थे. युवावस्था में इश्कबाजी (अनेक स्त्रियों से अवैध संबंध बनाने) के कारण इन्हें भयंकर रोगों का सामना करना पड़ा. जिसके कारण सगे-सबंधियों ने इनसे नाता तोड़ लिया. नवरस पर भी आपने ग्रंथ लिखा था लेकिन उसमें अश्लीलता का पुट अधिक होने के कारण आपने स्वयं ही ग्रंथ को गंगा में बहा दिया.

आत्म-चरित के लिये आवश्यक है कि रचियता अपने जीवन के, अपने चरित्र के गुण-दोषों का ईमानदारी से वर्णन करे. साथ ही कथा कहते समय समसामयिकी का वर्णन भी होना चाहिये. बनारसी दास जैन के आत्म-चरित में दोनों ही गुण देखने को मिलते हैं. आपने अपने जीवन की अधिकांश घटनाओं का सच्चाई से वर्णन किया है, अपने जीवन के कमजोर पक्ष को भी अभिव्यक्त किया है.
उदाहरण-
कबहु आइ सबद उर धरै, कबहु जाइ आसिखी करै।
पोथी एक बनाइ नई, मित हजार दोहा चौपाई।
                          बनारसी दास जैन

तामहिं णवरस-रचना लिखी, पै बिसेस बरनन आसिखी।
ऐसे कुकवि बनारसी भए, मिथ्या ग्रंथ बनाए नए।
                               बनारसी दास जैन

कै पढ़ना कै आसिखी, मगन दुहू रस मांही।
खान-पान की सुध नहीं, रोजगार किछु नांहि।
                                   बनारसी दास जैन
दूसरे अर्ध कथानक में समसामयिकी का वर्णन भी देखने को मिलता है. बनारसीदास जैन ने अपने जीवन काल में अकबर, जहाँगीर व शाहजहाँ का शासन काल देखा था. जिसका वर्णन आत्म-चरित में किया है.
उदाहरण-
सम्बत सोलह स बासठा, आयौ कातिक पावस नठा।
छत्रपति आकबर साहि जलाल, नगर आगरै कीनौ काल।
                                       बनारसी दास जैन

आई खबर जौनपुर मांह, प्रजा अनाथ भई बिनु नाह।
पुरजन लोग भए भय-भीत, हिरद व्याकुलता मुख पीत।
                                          बनारसी दास जैन
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Tuesday, May 15, 2018



माँ हमें प्यार व ममता ही नहीं देती, हमारे नजदीकी रिश्तों में आई दरारों को कब भर देती है पता ही नहीं चलता. इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में की है-
घर में झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़ते देखे,
चुपके-चुपके कर देती है, जाने कब तुरपाई अम्मा।

                       आलोक श्रीवास्तव



तुम्हारी बोली में है शहद की मिठास
पास बैठो जरा महकेंगे बेला, गुलाब।

                                                                        डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Friday, May 11, 2018



बेटी पढ़ाओ,
बेटा पढ़ाओ,
संस्कारी बनाओ।
अधिकारों का ही नहीं,
कर्तव्यों का भी बोध कराओ।
सँवारो एक-एक कड़ी,
सँवरेगा देश-समाज।
     
          डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Wednesday, May 9, 2018


तन के गहने
हैं अनगिन।
मन का सिंगार
तुम हो प्रियतम।

                     डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Tuesday, May 8, 2018



एक पल की उड़ान क्या होती है?
पिंजरे में कैद पक्षी से पूछो!

जल की शीतलता क्या होती है?
जल विहिन मछली से पूछो!

मिलन का एक पल क्या होता है?
विरह में डूबे प्रेमी से पूछो!


                              डॉ0 मंजूश्री गर्ग