Wednesday, October 28, 2015

न जाने---------
    डॉ0 मंजूश्री गर्ग


शब्द ना होते, भाव ना होते
ना जाने साहित्य कैसा होता.

फूल ना होते, रंग ना होते
ना जाने उपवन  कैसा होता.

सुर ना होते, वाद्य ना होते
ना जाने संगीत कैसा होता.

तुम ना होते, मुस्कान ना होती
ना जाने जीवन कैसा होता.

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Thursday, October 15, 2015

विजय-पर्व

डॉ0 मंजूश्री गर्ग


विजय-पर्व है
मनाओ दशहरा
जलाओ रावण.
पर पहले
अपने मन की
(ईर्ष्या, द्वेष,
कुंठा, भय,
लोभ, मोह,
अहम्, क्रोध,)
बुराईयों को 
जलाओ, फिर
जलाओ रावण।

और पहले
समाज में 
सिर उठाये
पनपती कुरीतियों
(अपहरण, हत्या,
भ्रष्टाचार, घूसखोरी,)
को भस्म करो, फिर
जलाओ रावण।

विजय-पर्व है
मनाओ धूमधाम से
पर पहले विजयी
स्वयं बनो, फिर
जलाओ रावण।

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Wednesday, October 7, 2015

हाइकु

      डॉ0 मंजूश्री गर्ग

दीनता छाये
लेने बढ़े जो हाथ
मुख मंडल।

प्रभुता छाये
देने बढ़े जो हाथ
मुख मंडल।

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Saturday, October 3, 2015

फल देने को वृक्ष झुके, जल देने को बादल।
तुम क्यों तने खड़े, हुये जो देने लायक।।
        डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Friday, October 2, 2015

उम्र भर
लिखते रहे
जिंदगी का
चिट्ठा
लगवाने
मृत्यु का
अँगूठा
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डॉ0 मंजूश्री गर्ग