Thursday, June 23, 2016

हिंदी भाषा का क्रमिक विकास एवम भविष्य

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

विश्व के विशालतम भाषा परिवार भारत-यूरोपीय भाषा-परिवार से हिंदी भाषा  का सम्बंध हैक्योंकि भारत की महान भाषा संस्कृत, जिसे देववाणी भी कहा जाता है, भारत-यूरोपीय परिवार की है और हिंदी भाषा की जननी संस्कृत ही है. हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है, जिसका क्रमिक विकास ब्राह्मी लिपिसे हुआ है.
भारत-यूरोपीय भाषा परिवार की भारतीय शाखा को भारतीय आर्य-भाषा शाखाभी कहा जाता है. इसकी प्राचीनतम भाषा वैदिक संस्कृतहै. इसका समय 1500 ई0पू0 से 800 ई0पू0 तक माना जाता है. इसी में चारों वेदों(ऋग्वेद, सामवेद, अर्थवेद, यजुर्वेद) की रचना हुई है. इसके बाद लौकिक संस्कृत का विकास हुआ, जिसका समय 800 ई0पू0 से 500 ई0पू0 तक माना जाता है. लौकिक संस्कृत भाषा में ही आदिकवि वाल्मीकि ने रामायणमहाकाव्य की रचना की और वेदव्यास जी ने महाभारतकी. लौकिक संस्कृत का परिवर्तित रूप पाली प्राकृत के रूप में विकसित हुआ, जिसमें बौद्ध साहित्य की रचना हुई. इसका समय 500 ई0पू0 से 500 ई0 तक माना जाता है. प्राकृत भाषा का परिवर्तित रूप अपभ्रंश है, जिसका समय 500 ई0 से 1000 ई0 तक माना जाता है. इसी में हिंदी साहित्य के आदि काल के कुछ प्रमुख ग्रंथों की रचना हुई; जैसे- पृथ्वीराज रासो’, ‘हम्मीर रासो’, ‘वीसलदेव रासो’, आदि. इसी समय अमीर खुसरो ने खड़ी बोली में पहेलियाँ और मुकरियों की रचना कीं. जिसका वास्तविक विकास बीसवीं शताब्दी में हुआ. द्रविड़-परिवार की तमिल, तेलगू, मलयालम और कन्नड़ भाषाओं को छोड़कर भारतकी प्रमुख भाषा हिंदी व अन्य भाषायें(सिंधी, पंजाबी, गुजराती, मराठी, उड़िया, असमिया, बंगला, आदि) अपभ्रंश से ही विकसित हुई हैं.

1000 ई0 के बाद हिंदी साहित्य की रचना हिंदी या हिंदी की उपभाषाओं या प्रादेशिक भाषाओं में हुई. हिंदी के प्रमुख पाँच रूप हैं. पहला रूप - पश्चिमी हिंदी- इस के अंतर्गत खड़ी बोली, ब्रज भाषा, हरियाणवी, बुंदेली, कन्नौजी, आदि बोलियाँ आती हैं. खड़ी बोली हिंदी को स्वतंत्र भारत में राष्ट्र भाषा का सम्मान प्राप्त है. भारतेंदु जी के समय से खड़ी बोली हिंदी का निरंतर विकास हो रहा है. हिंदी गद्य-साहित्य की यही प्रमुख भाषा है. पश्चिमी हिंदी की ब्रज भाषा हिंदी काव्य साहित्य की प्रमुख भाषा रही है. मध्यकाल में तो ब्रज भाषा साहित्य की प्रमुख भाषा थी ही, कृष्ण काव्य इसी भाषा में लिखा गया. रीतिकालीन काव्य भी इसी भाषा में लिखा गया. आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रणेता भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने भी काव्य के लिये ब्रज भाषा को ही उपयुक्त माना. सूरदास, बिहारीलाल, आदि ब्रज भाषा के प्रमुख कवि हैं. दूसरा रूप - पूर्वी हिंदी -  इसके अंतर्गत अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी बोलियाँ आती हैं. हिंदी साहित्य में अवधी भाषा का विशेष स्थान है. गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानसऔर मलिक मोहम्म्द जायसी कृत पद्मावतमहाकाव्य की रचना अवधी भाषा में ही हुई है. तीसरा रूप – बिहारी हिंदी – इसमें मैथिली, मगही, भोजपुरी बोलियाँ आती हैं. मैथिल कोकिल विद्यापति की पदावलीमैथिली में लिखी गई महत्वपूर्ण रचना है. चौथा रूप – राजस्थानी हिंदी – इसके अंतर्गत मारवाड़ी, जयपुरी, मेवाती, मालवी बोलियाँ आती हैं. पाँचवा रूप – पहाड़ी हिंदी – इसके अंतर्गत गढवाली, कुमायूँनी और हिमाचली बोलियाँ आती हैं.राजस्थानी और पहाड़ी बोलियों ने भी हिंदी साहित्य के भण्डार को समृद्ध किया है.

वर्तमान समय में खड़ी बोली हिंदी में साहित्य रचना के साथ-साथ समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, पाठ्य पुस्तकों का भी प्रकाशन हो रहा है. हिंदी भाषा का अपना एक सर्वमान्य मानक रूप है, अपना व्याकरण है, जिसके माध्यम से हिंदी भाषा का शुद्ध एवं सर्वमान्य रूप बोलना, समझना, लिखना तथा पढ़ना सरल हो गया है. सरकारी कार्यालयों और प्रतिष्ठनों में भी हिंदी भाषा का प्रचलन है. पठन-पाठन का माध्यम भी खड़ी बोली को ही स्वीकार किया गया है. इसी कारण साहित्य के साथ-साथ ज्ञान-विज्ञान, वाणिज्य-व्यापार, शिक्षा माध्यम और तकनीकी कार्यों की भाषा के रूप में भी हिंदी भाषा का विकास हो रहा है. न केवल भारत में वरन विदेशी विश्व विद्यालयों में भी हिंदी भाषा पढ़ाई जाने लगी है. हिंदी भाषा की कुछ विशेषतायें हैं जो उसके महत्व को प्रतिपादित करती हैं; जैसे--------                                         
1.  हिंदी भाषा पर्याप्त वैज्ञानिक है. इसमें जो बोला जाता है, वही लिखा जाता है.
2.  विश्व की लगभग सभी भाषाएँ हिंदी की देवनागरी लिपि में लिखी जा सकती हैं.
3.  हिंदी भाषा सरल, व्यवहारिक व जीवंत है.
4.  हिंदी भाषा का शब्द-भण्डार विपुल है. संस्कृत के साथ-साथ अन्य भाषाओं(अरबी, फारसी, अंग्रेजी, उर्दु,आदि) के हजारों शब्दों को आत्मसात करने के साथ-साथ अन्य भाषाओं के उपसर्ग व प्रत्ययों का प्रयोग कर अनेक शब्दों का निर्माण किया है.  
5.  ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा देने में भी हिंदी भाषा सक्षम है. इसमें तकनीकी व वैज्ञानिक शब्दावली का पर्याप्त विकास हुआ है.
6.  विज्ञान के साथ-साथ वाणिज्य-व्यापार की शिक्षा देने में भी हिंदी भाषा समर्थ है.
7.  भारत के अधिकांश भाग में बोली व समझी जाने के कारण हिंदी भाषा राष्ट्रीय एकता का माध्यम रहा है.
हिंदी भाषा अपने महत्व व व्यापकता के आधार पर ही भारत की राष्ट्र भाषा है और भविष्य में अपनी कोमलकांत पदावली और सरलता के कारण विश्वभाषा का स्थान प्राप्त करने में सक्षम होगी. आज भी हिंदी विश्व की तीन प्रमुख भाषाओं में से एक है. बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से हिंदी का स्थान केवल चीनी और अंग्रेजी के बाद है.
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी का स्वरूप निर्धारित करते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि अंतर्राष्ट्रीय हिंदी का व्याकरण और शब्द-भण्डार मानक हिंदी का ही होना चाहिए, जो भाषा के केंद्रीय तत्त्वों से सम्बंधित हैं. भाषा में अन्य परिवर्तन देश-विदेश अपनी सुविधानुसार परिधीय तत्त्व के रूप में कर सकते हैं. उदाहरणार्थ- अंग्रेजी भाषा की संरचना में जो केंद्रीय तत्त्व हैं वे ब्रिटिश अंग्रेजी, अमरीकी अंग्रेजी, आस्ट्रेलियाई अंग्रेजी, आदि अंग्रेजी के सभी रूपों में समान हैं  और केंद्रीय तत्त्वों के आधार पर वह अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनी है; जबकि ब्रिटिश अंग्रेजी और अमेरिकी अंग्रेजी में वर्तनी, उच्चारण, शब्द-भण्डार, अर्थ, वाक्य-रचना, सभी दृष्टियों से पर्याप्त विभिन्नता पाई जाती है.


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Wednesday, June 22, 2016

भाषा(सम्पत्ति)

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

भाषा हमारी वह सम्पत्ति है जो हमें परम्परा से प्राप्त होती है. हिन्दी भाषा बोलने वाले परिवारों के बच्चे स्वतः ही हिन्दी भाषा सीख जाते हैं, ऐसे ही अंग्रेजी भाषा बोलने बाले परिवारों के बच्चे अंग्रेजी भाषा और अन्य किसी भाषा के बोलने बाले परिवारों के बच्चे अपने परिवार की भाषा साधारण रूप से सीख जाते हैं. इस प्रकार भाषा हमारी पैतृक सम्पत्ति है. स्वाभाविक रूप से सीखी भाषा साधारण बोल-चाल की ही भाषा होती है, उसके व्याकरणिक रूप का ज्ञान अध्ययन द्वारा प्राप्त किया जाता है. अपनी मातृभाषा के अतिरिक्त अन्य भाषाओं का ज्ञान भी अध्ययन के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है. कुछ विद्वानों को अनेक भाषाओं का ज्ञान होता है. इस प्रकार भाषा हमारी अर्जित सम्पत्ति भी है. साथ ही व्यक्ति जिस समाज में रहता है, धीरे-धीरे वहाँ की भाषा स्वभावतः सीख जाता है. जैसे दक्षिण भाषी प्रदेशों का व्यक्ति जब हिन्दी भाषी प्रदेशों में आता है, तो धीरे-धीरे हिन्दी भाषा सीख जाता है. इस प्रकार भाषा हमारी सामाजिक सम्पत्ति भी है।

भाषा परिवर्तनशील और स्थिर है-
भाषा का निरन्तर विकास होता रहता है. समय-समय पर कुछ शब्दों के रूप परिवर्तित हो जाते हैं, कुछ अन्य भाषाओं के शब्द सम्मिलित हो जाते हैं, कुछ नये प्रयोग होते हैं. हिन्दी भाषा का विकास संस्कृत भाषा से हुआ है, काफी कुछ शब्द हिन्दी भाषा में ऐसे ही ले लिये गये, तो कुछ शब्दों का रूप परिवर्तित हो गया. जैसे- संस्कृत का पत्र शब्द हिन्दी में पत्ता बन गया और कुम्भकार कुम्हार. कुछ नये प्रयोग भी किये गये हैं. जैसे आजकल वर्णमाला के अनुनासिक वर्ण के लिये को ही मान्यता मिल गयी है और इसकी मात्रा के रूप में बिन्दु को ही. विराम चिह्न भी अब बिन्दु (.) रूप में प्रयोग में लाया जाता है. फिर भाषा का एक निश्चित मानक रूप व व्याकरण होने के कारण भाषा स्थिर रह पाती है. इस तरह हम कह सकते हैं कि भाषा परिवर्तनशील भी है और स्थिर भी.


Monday, June 20, 2016

                            विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
भारत में शिवजी भगवान के बारह ज्योतिर्लिंग मंदिर हैं, जहाँ साक्षात् शिवजी भगवान ज्योतिर्लिंग रूप में अवतरित हुये हैं, इनमें से वाराणसी के ज्ञानवापी नगर में प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर सबसे प्राचीन है, जहाँ शिवजी भगवान सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग रूप में अवतरित हुये. ज्ञानवापी नगर में एक प्रसिद्ध कुआँ भी है. कहा जाता है कि विश्वनाथ के लिंग को शीतल करने के लिये स्वयं भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से इस कुँए को खोदा था. यह पृथ्वी का प्रथम जलस्रोत माना जाता है.

वाराणसी के विख्यात विश्वनाथ मंदिर का निर्माण समय-समय पर अनेकों राजाओं ने करवाया और समय-समय पर अनेकों विदेशी आक्रमणक्रियों द्वारा मंदिर को खंडित भी किया गया. अकबर ने  भी सन् 1585 ई0 में विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया, किंतु सन् 1669 ई0 में औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया, जो ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से आज भी मौजूद है. मस्जिद के बीचों बीच मन्दिर की अलंकृत दीवार भारत की पुरानी निर्माण शैली का एक सुन्दर और अद्भुत नमूना है.

वर्तमान विश्वनाथ मंदिर(विश्वेश्वर मंदिर) का निर्माण सन् 1777 ई0 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था. इसकी वास्तुकला में हिन्दू व इस्लामी शैलियों का सुन्दर समन्वय है. मंदिर में मुख्य शिवलिंग के अतिरिक्त अन्य मूर्तियाँ और समाधियाँ भी हैं.
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Thursday, June 16, 2016

हाइकु

डॉ0 मंजू गर्ग

पक्षी समूह
तीर सा बनाकर
उड़े आकाश ।

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Monday, June 13, 2016

हाइकु

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

दादा ने जिया
तीसरा बचपन
पोते के साथ।

वृक्ष ना देते
समय से पहले
धरा को फल।

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Thursday, June 2, 2016

सुभद्रा और अर्जुन का विवाह
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
सुभद्रा कृष्ण और बलराम की बहन थीं और अर्जुन कुन्ती-पुत्र थे. यद्यपि अर्जुन का विवाह द्रौपदी से हो चुका था किन्तु द्रौपदी पाँचों पांडवों की पत्नी थी और उस विवाह के कुछ नियम थे. एक बार किसी कारणवश अर्जुन ने विवाह का नियम भंग कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें बारह वर्ष तक वन में वास करना था. तब अर्जुन वन में घूमते हुये एक बार द्वारिकापुरी आये, वहाँ सुभद्रा के विवाह के विषय में सुना. श्रीकृष्ण सुभद्रा का विवाह अर्जुन से करना चाहते थे, किन्तु बलराम जी दुर्योधन से. अर्जुन ने जब सुभद्रा को देखा तो उसके रूप, गुण व शील पर मोहित हो गये और उसको पाने की लालसा मन में उत्पन्न हुई, इधर सुभद्रा भी मन ही मन अर्जुन को चाहने लगी. जब श्रीकृष्ण ने अर्जुन और सुभद्रा के मन के भाव को जाना तो दोनों के मिलन का उपाय सोचने लगे. तब एक दिन अर्जुन से कहा तुम शिव-रात्री तक यहीं रूको. शिव-रात्रि के दिन सभी द्वारिकावासी रैयत-पर्वत पर शिव की पूजा के लिये जायेंगे, सुभद्रा भी जायेगी. तुम वहाँ से सुभद्रा का हरण कर सीधे हस्तिनापुर चले जाना. यदि कोई तुम्हारा सामना करे, तो निर्भय होकर युद्ध करना. श्रीकृष्ण के कहने के अनुसार शिव-रात्रि के दिन अर्जुन ने सुभद्रा का हरण किया और सीधे हस्तिनापुर चले गये.
श्री बलराम ने जब सुभद्रा-हरण का समाचार सुना तो अत्यन्त क्रोधित हुये और यदुवंशियों को साथ लेकर  अर्जुन से युद्ध करने को तैय्यार हुये. तब श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया, हे दादा! अर्जुन हमारी बुआ का बेटा, मित्र और कुलीन है, उसके बराबर यदुवंशियों में कोई भी नहीं है. यद्यपि उसने यह अनुचित कार्य किया है फिर भी उससे युद्ध करना उचित नहीं है. अच्छा है हम अर्जुन और सुभद्रा के विवाह को स्वीकार कर लें और विवाह के उपलक्ष्य में उचित उपहार लेकर हस्तिनापुर जायें. इस तरह सर्वसम्मति से हस्तिनापुर में अर्जुन और सुभद्रा का विवाह हुआ, जिनसे वीर और तेजस्वी अभिमन्यु उत्पन्न हुआ.
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